By संदीप सिंह:
लोकपà¥à¤°à¤¿à¤¯ जन आनà¥à¤¦à¥‹à¤²à¤¨à¥‹à¤‚ और सिविल सोसायटी की à¤à¥‚मिका तथा लोकतंतà¥à¤° पर उसके असर के बारे में आज à¤à¤• बहस चल रही है. अपने हालिया à¤à¤• बयान में गृहमंतà¥à¤°à¥€ पी चिदंबरम ने कहा कि ‘ चà¥à¤¨à¥‡ हà¥à¤ जन पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¨à¤¿à¤§à¤¿ सिविल सोसायटी के सामने नहीं à¤à¥à¤• सकते ‘ कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि यह ‘ संसदीय लोकतंतà¥à¤° ‘ को कमजोर करेगा. दबंगई पर उतरी यूपीठसरकार, à¤à¥à¤°à¤·à¥à¤Ÿà¤¾à¤šà¤¾à¤° के खिलाफ चल रहे जनांदोलनों और जनाकांकà¥à¤·à¤¾ को लगातार बदनाम करने की कोशिशों में लगी हà¥à¤ˆ है. उसका कहना है कि सिविल सोसायटी को कानून बनाने का अधिकार नहीं है – लोकतंतà¥à¤° में कानून बनाने का अधिकार सिरà¥à¤« चà¥à¤¨à¥‡ हà¥à¤ जन पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¨à¤¿à¤§à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का विशेषाधिकार है. हांलाकि ऊपर से देखने में यह बात लोकतंतà¥à¤° की सà¥à¤¸à¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤“ं के तहत ठीक दिखती है लेकिन आज हमें इस तरà¥à¤• का बारीक विशà¥à¤²à¥‡à¤·à¤£ करना चाहिà¤.
कà¥à¤¯à¤¾ जनांदोलन और सिविल सोसायटी कारà¥à¤¯à¤•à¤°à¥à¤¤à¤¾ सच में लोकतंतà¥à¤° और संसद को कमजोर कर रहे हैं? या लोकतंतà¥à¤° के लिठऔर बड़े खतरे हैं जिनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ चिदंबरम और उनकी à¤à¤¾à¤·à¤¾ बोलने वालों दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ दकà¥à¤·à¤¤à¤¾à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• छà¥à¤ªà¤¾à¤¯à¤¾ जा रहा है ? सबसे पहले यह आरोप कि सिविल सोसायटी कारà¥à¤¯à¤•à¤°à¥à¤¤à¤¾ संसद को ही नजरअंदाज कर रहे हैं, बेबà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾à¤¦ है. सिविल सोसायटी कारà¥à¤¯à¤•à¤°à¥à¤¤à¤¾ तो दरअसल जो कानून बनने वाला है उसके मसौदे को à¤à¤• दिशा देने की कोशिश कर रहे हैं. साथ ही वे इन कानूनों के बारे में लोगों की राय à¤à¥€ तैयार कर रहे हैं और चाहते हैं कि चà¥à¤¨à¥‡ हà¥à¤ जन पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¨à¤¿à¤§à¤¿ लोगों की राय के बारे में जवाबदेह à¤à¥€ हों. इस पà¥à¤°à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ में आम लोगों को इन कानूनों के विशेष पà¥à¤°à¤¾à¤µà¤§à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ और उन पà¥à¤°à¤¾à¤µà¤§à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ पर चल रही बहसों के बारीक नà¥à¤•à¥à¤¤à¥‹à¤‚ के बारे में जानने का और बहसों में शामिल होने का मौका पहले से कहीं जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ मिलता है. लेकिन, अà¤à¥€ à¤à¥€ कानून बनाने की वासà¥à¤¤à¤µà¤¿à¤• जिमà¥à¤®à¥‡à¤¦à¤¾à¤°à¥€ संसद के सदसà¥à¤¯à¥‹à¤‚ पर ही रहती है; यदà¥à¤¯à¤ªà¤¿ यह सच है कि जन à¤à¤¾à¤—ीदारी के लिठचल रहे पà¥à¤°à¤¯à¤¤à¥à¤¨à¥‹à¤‚ के चलते संसद के à¤à¥€à¤¤à¤° चलने वाली बहसें आम नागरिकों दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ सावधानीपूरà¥à¤µà¤• जांची-परख जायेंगी.
चिदंबरम और कांगà¥à¤°à¥‡à¤¸ पारà¥à¤Ÿà¥€, संसद से बनने वाले कानूनों के बारे में लोगों दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ ली जा रही दिलचसà¥à¤ªà¥€ और जांच- परख की इस सचेत पà¥à¤°à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ से असहज दिखाई दे रहे हैं. अपने à¤à¤• लेख में, कांगà¥à¤°à¥‡à¤¸ पà¥à¤°à¤µà¤•à¥à¤¤à¤¾ मनीष तिवारी सड़कों पर चल रहे आनà¥à¤¦à¥‹à¤²à¤¨à¥‹à¤‚ की तà¥à¤²à¤¨à¤¾ सड़कों होने वाली दबंगई और फासीवाद से करते हैं और होशियार रहने की ताकीद करते हैं. सिविल सोसायटी कारà¥à¤¯à¤•à¤°à¥à¤¤à¤¾à¤“ं दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ वितà¥à¤¤ मंतà¥à¤°à¥€ से बहस को टेलीविजन पर लाने की मांग की आलोचना करते हà¥à¤ चिदंबरम ने कहा कि आखिर संसद में होने वाली बहसें तो टेलीविजन पर दिखाई ही जाती ही हैं और ‘ मतदाता समय – समय पर अपने मताधिकार का पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— करते हैं ‘. लगता है कि सरकार यह कहना चाह रही है कि लोकतंतà¥à¤° सिरà¥à¤« मतदाताओं दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ ‘समय – समय पर’ जन पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¨à¤¿à¤§à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का चà¥à¤¨à¤¾à¤µ करने तक सीमित है! à¤à¤• बार वोट करने के बाद कà¥à¤¯à¤¾ लोग, नीतियों को दिशा देने का अपना अधिकार अगले पांच सालों के लिठअपने दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ चà¥à¤¨à¥‡ गठजन पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¨à¤¿à¤§à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को अरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ कर देते हैं? दूसरे शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ में, कà¥à¤¯à¤¾ सरकार ये कहना चाह रही है कि नागरिकों के लिठलोकतंतà¥à¤° पांच साल में सिरà¥à¤« à¤à¤• बार उपलबà¥à¤§ होगा? कà¥à¤¯à¤¾ लोगों के पास, जब जरूरत हो तो सड़कों विरोध पà¥à¤°à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¨ करके, उन जन पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¨à¤¿à¤§à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को यह बताने का अधिकार नहीं है कि वे किस तरह के कानूनों को चाहते हैं? खासकर तब जब कि इन कानूनों का लोगों के जीवन पर बहà¥à¤¤ जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ असर पड़ने वाला है.
ये चौंकाने वाली बात है कि, सरकार, जो नहीं चाहती कि सिविल सोसायटी के लोग संसद को डिकà¥à¤Ÿà¥‡à¤Ÿ करें, को इस बात से कोई दिकà¥à¤•à¤¤ नहीं है कि कॉरà¥à¤ªà¥‹à¤°à¥‡à¤Ÿ CEOs, लाबीइसà¥à¤Ÿ और विदेशी ताकतें हमारे कानूनों, नीतियों और यहाठतक कि मंतà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की नियà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ तक को डिकà¥à¤Ÿà¥‡à¤Ÿ कर रही हैं. इसका जà¥à¤µà¤²à¤‚त उदहारण नीरा राडिया टेप खà¥à¤²à¤¾à¤¸à¥‡ हैं जहाठहमने देखा कि किस तरह मà¥à¤•à¥‡à¤¶ अमà¥à¤¬à¤¾à¤¨à¥€ और उनकी लाबीइसà¥à¤Ÿ मà¥à¤–à¥à¤¯ विपकà¥à¤·à¥€ पारà¥à¤Ÿà¥€ को डिकà¥à¤Ÿà¥‡à¤Ÿ कर रहे हैं कि उरà¥à¤œà¤¾ के महतà¥à¤¤à¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ सवाल पर संसद में उस पारà¥à¤Ÿà¥€ का सà¥à¤Ÿà¥ˆà¤‚ड कà¥à¤¯à¤¾ होगा. विकीलीकà¥à¤¸ ने उजागर किया है कि à¤à¤¾à¤°à¤¤ की संसदीय पà¥à¤°à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤“ं, मंतà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के चà¥à¤¨à¤¾à¤µ ( याद कीजिये कि विकीलीकà¥à¤¸ के खà¥à¤²à¤¾à¤¸à¥‡ जहाठहमने देखा कि मà¥à¤°à¤²à¥€ देवड़ा को पेटà¥à¤°à¥‹à¤²à¤¿à¤¯à¤® मंतà¥à¤°à¥€ बनाने के पीछे अमेरिका का कितना असर था ) विदेश नीति के मà¥à¤¦à¥à¤¦à¥‹à¤‚, आरà¥à¤¥à¤¿à¤• कानूनों और नीतियों पर अमेरिका का अतà¥à¤¯à¤§à¤¿à¤• पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ रहता है. à¤à¤¾à¤°à¤¤ की संपà¥à¤°à¤à¥à¤¤à¤¾ और लोकतंतà¥à¤° के ऊपर इस अमेरिकी निगरानी और दबाव के बारे में चिदमà¥à¤¬à¤°à¤®, मनीष तिवारी का à¤à¤• à¤à¥€ बयान या लेख कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ नहीं दीखता है? अपने देश के नागरिकों दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ उठाये जा रहे सवालों को लोकतंतà¥à¤° के लिठखतरा बताने वाली ये सरकार हमारे संसदीय लोकतंतà¥à¤° की संपà¥à¤°à¤à¥à¤¤à¤¾ पर पड़ने वाले इस सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ बाहरी असर को खतरा कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ नहीं मानती?
गौरतलब है कि सरकार लोकपाल समिति के सिविल सोसायटी कारà¥à¤¯à¤•à¤°à¥à¤¤à¤¾à¤“ं की à¤à¥‚मिका के बारे में तो à¤à¥Œà¤¹à¥‡à¤‚ तान रही है. लेकिन खà¥à¤¦ अनिरà¥à¤µà¤¾à¤šà¤¿à¤¤ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚, जो लगà¤à¤— हर बार कॉरà¥à¤ªà¥‹à¤°à¥‡à¤Ÿ CEOs ही होते हैं, को अति महतà¥à¤¤à¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ रणनीतिक नीति – निरà¥à¤§à¤¾à¤°à¤• जगहों पर à¤à¤¸à¥‡ तरीकों से नियà¥à¤•à¥à¤¤ कर रही है जो संसद और नागरिकों के जानने के अधिकार को कमजोर करते हैं. इसका à¤à¤• निरà¥à¤£à¤¾à¤¯à¤• दृषà¥à¤Ÿà¤¾à¤¨à¥à¤¤ National Intelligence Grid ( NATGRID ) है जिसे अà¤à¥€ हाल- हाल में सिकà¥à¤¯à¥à¤°à¤¿à¤Ÿà¥€ कैबिनेट कमेटी से ‘ सैदà¥à¤§à¤¾à¤‚तिक ‘ सहमति दी गयी है. NATGRID के कारà¥à¤¯à¤•à¤¾à¤°à¥€ निदेशक कैपà¥à¤Ÿà¤¨ रघॠरामन हैं, जो महिंदà¥à¤°à¤¾ सà¥à¤ªà¥‡à¤¶à¤² सरà¥à¤µà¤¿à¤¸ गà¥à¤°à¥à¤ª के पूरà¥à¤µ कारà¥à¤¯à¤•à¤¾à¤°à¥€ निदेशक रह चà¥à¤•à¥‡ हैं. इस पद पर उनकी नियà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ किस संसदीय या लोकतानà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤• पà¥à¤°à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ से की गयी ? गृहमंतà¥à¤°à¥€ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ चà¥à¤¨à¤¾ गया , इस बारे में लोगों को कà¥à¤› पता नहीं है. साथ ही उनके विचार और सà¥à¤Ÿà¥ˆà¤‚डà¥à¤¸ के बारे में à¤à¥€ लोगों को नहीं मालूम है.
सिविल सोसायटी कारà¥à¤¯à¤•à¤°à¥à¤¤à¤¾ public personalities हैं जिनके विचार आम लोगों दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ बहस और विशà¥à¤²à¥‡à¤·à¤£ के लिठखà¥à¤²à¥‡ हैं. अनà¥à¤¨à¤¾ हजारे जो à¤à¥€ कह रहे हैं यह जरूरी नहीं है कि हम उससे सहमत हों, पर उनके विचार आलोचना या मूलà¥à¤¯à¤¾à¤‚कन के लिठहमारे सामने हैं. लेकिन कैपà¥à¤Ÿà¤¨ रघॠरामन जैसे लोगों के मामले में यह बात à¤à¤•à¤¦à¤® à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ है. उदहारण के लिà¤, कितने लोग राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾ और à¤à¤¾à¤°à¤¤ के लोकतंतà¥à¤° पर उनके विचारों से अवगत हैं? जब वे महिंदà¥à¤°à¤¾ सà¥à¤ªà¥‡à¤¶à¤² सरà¥à¤µà¤¿à¤¸ गà¥à¤°à¥à¤ª के चीफ थे ,उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने ” ठंढे लोगों का देश ” नाम से à¤à¤• लेख लिखा. इस लेख में वे कहते हैं, ” उदà¥à¤¯à¤®à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को अपनी सà¥à¤µà¤¯à¤‚ की सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾ टà¥à¤•à¤¡à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ बनाने की जरूरत है…. दरअसल विचार यह है कि अपनी सà¥à¤µà¤¯à¤‚ की सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾ टà¥à¤•à¤¡à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ रखी जायं जो कानून लागू करने वाली अनà¥à¤¯ संसà¥à¤¥à¤¾à¤“ं के साथ मिल कर काम करें. आप इसे à¤à¤• निजी कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤°à¥€à¤¯ सेना के रूप में सोचिये. अगर बड़े वà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤¸à¤¾à¤¯à¤¿à¤• जार अपने सामà¥à¤°à¤¾à¤œà¥à¤¯à¥‹à¤‚ को अà¤à¥€ बचाना नहीं शà¥à¤°à¥‚ करते हैं तो वे पायेंगे कि दà¥à¤¶à¥à¤®à¤¨à¤•à¥€à¤¸à¥€à¤®à¤¾à¤à¤‚उनकेसामà¥à¤°à¤¾à¤œà¥à¤¯à¥‹à¤‚मेंघà¥à¤¸à¤°à¤¹à¥€à¤¹à¥ˆà¤‚.”
à¤à¤• वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ जो निजी कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ के मालिक कॉरà¥à¤ªà¥‹à¤°à¥‡à¤Ÿ ‘जारों’ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ à¤à¤¾à¤°à¤¤ की जनता के खिलाफ यà¥à¤¦à¥à¤§ छेड़ने के लिठनिजी सेनाओं के संचालन की कवायद करता है कà¥à¤¯à¤¾ चिदंबरम बता सकते हैं कि कैसे à¤à¤¸à¤¾ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ को देश के सबसे संवेदनशील, ख़à¥à¥žà¤¿à¤¯à¤¾ विà¤à¤¾à¤—ों की शीरà¥à¤·à¤¸à¥à¤¥ संसà¥à¤¥à¤¾ का नेतृतà¥à¤µ कर रहा है? कà¥à¤¯à¤¾ à¤à¤¾à¤°à¤¤ की संसद और à¤à¤¾à¤°à¤¤ के लोग इस बात को जानते हैं कि NATGRID à¤à¤• à¤à¤¸à¥‡ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ संचालित है जिसके विचार और विशà¥à¤µà¤¦à¥ƒà¤·à¥à¤Ÿà¤¿ सबसे निकृषà¥à¤ किसà¥à¤® के पिटà¥à¤ ू गणतंतà¥à¤° से मिलते हैं?
संसद को कमजोर किये जाने का à¤à¤• और उदाहरण UID पà¥à¤°à¥‹à¤œà¥‡à¤•à¥à¤Ÿ है. UID ऑथारिटी ऑफ़ इंडिया जो ननà¥à¤¦à¤¨ निलेकनी ( à¤à¤• और कॉरà¥à¤ªà¥‹à¤°à¥‡à¤Ÿ CEO ) के नेतृतà¥à¤µ में चल रही है – अपने असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ में बिना संसद की मंजूरी के आयी है, नागरिक समाज में इस पर बहस की बात तो दूर छोडिये. The National Identification Authority of India (NIAI) बिल अà¤à¥€ सिरà¥à¤« राजà¥à¤¯ सà¤à¤¾ में पेश हà¥à¤† है, अà¤à¥€ इस पर कोई बहस नहीं हà¥à¤ˆ है न ही यह राजà¥à¤¯ सà¤à¤¾ से पास हà¥à¤† है, और लोकसà¤à¤¾ में तो यह अà¤à¥€ पेश होना ही बाकी है. कैबिनेट कमेटी के मिली अनà¥à¤¸à¤‚शा मातà¥à¤° को आधार बनाकर नंदन निलेकनी दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ संचालित UIDAI की तरफ से तमाम राजà¥à¤¯à¥‹à¤‚ में निजी संसà¥à¤¥à¤¾à¤“ं व सरकारी मंतà¥à¤°à¤¾à¤²à¤¯à¥‹à¤‚ के साथ सहमति पतà¥à¤° (MoUs) हसà¥à¤¤à¤¾à¤•à¥à¤·à¤° किये गठहैं (जिसमे अमेरिका की कà¥à¤–à¥à¤¯à¤¾à¤¤ संसà¥à¤¥à¤¾ CIA की à¤à¤œà¥‡à¤‚सियां शामिल हैं ) और UID कारà¥à¤¡à¥à¤¸ बांटे जा रहे हैं. कà¥à¤¯à¤¾ यह संसदीय लोकतंतà¥à¤° को कमजोर नहीं करता है?
रघॠरामन या निलेकनी जैसे लोगों की कà¥à¤¯à¤¾ विशà¥à¤µà¤¸à¤¨à¥€à¤¯à¤¤à¤¾ है ? ये चà¥à¤¨à¥‡ हà¥à¤ संसद सदसà¥à¤¯ नहीं हैं. यहाठतक कि वे à¤à¤¸à¥‡ राजनीतिजà¥à¤ž à¤à¥€ नहीं हैं जिनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ à¤à¤• अंतराल बाद चà¥à¤¨à¤¾à¤µà¥‹à¤‚ का सामना करना है ? न ही वे कोई नौकरशाह हैं जो कम से कम कà¥à¤› नियम- कानूनों और जिमà¥à¤®à¥‡à¤¦à¤¾à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ से बंधा हà¥à¤† है. वे कॉरà¥à¤ªà¥‹à¤°à¥‡à¤Ÿ मà¥à¤¨à¤¾à¤«à¥‡ की सà¥à¤µà¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§à¤¿ के लिठचिंतित महज à¤à¤• कॉरà¥à¤ªà¥‹à¤°à¥‡à¤Ÿ CEO हैं. फिर à¤à¥€ हम देखते हैं कि à¤à¤¸à¥‡ लोग कैसे मनमाने ढंग से नियà¥à¤•à¥à¤¤ किये जाते हैं? और इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ देश की नीतियों पर दूरगामी असर डालने वाली रणनीतिक संसà¥à¤¥à¤¾à¤“ं में बिठा दिया जाता है? यह लोकतंतà¥à¤° और लोगों के अधिकारों के ऊपर बढ़ते हमले का सूचक है.
à¤à¤¾à¤°à¤¤ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ à¤à¥à¤°à¤·à¥à¤Ÿà¤¾à¤šà¤¾à¤° पर संयà¥à¤•à¥à¤¤ राषà¥à¤Ÿà¥à¤° समà¥à¤®à¥‡à¤²à¤¨ में हसà¥à¤¤à¤¾à¤•à¥à¤·à¤° करने के सवाल को पर टीवी चैनल की à¤à¤• डिबेट में कांगà¥à¤°à¥‡à¤¸ पà¥à¤°à¤µà¤•à¥à¤¤à¤¾ मनीष तिवारी ने बड़े ही धरà¥à¤®à¤¨à¤¿à¤·à¥à¤ तरीके से कहा कि मà¥à¤¯à¥à¤¨à¤¿à¤¸à¤¿à¤ªà¥ˆà¤²à¤¿à¤Ÿà¥€ का कानून à¤à¥€ यदि किसी अंतरà¥à¤°à¤¾à¤·à¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ कानून से टकराता है तो उस अवसà¥à¤¥à¤¾ में जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤•à¤¾à¤°à¥€ मà¥à¤¯à¥à¤¨à¤¿à¤¸à¤¿à¤ªà¥ˆà¤²à¤¿à¤Ÿà¥€ कानून ही माना जायेगा. देश की जनवादी संसà¥à¤¥à¤¾à¤“ं और संपà¥à¤°à¤à¥à¤¤à¤¾ के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ यह आदर पà¥à¤°à¤¶à¤‚सनीय है – पर किसी को आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯ हो सकता है कि जब WTO दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ निरà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¤¿à¤¤ आरà¥à¤¥à¤¿à¤• नीतियों का मामला आता है तब यह आदर कहाठउड़ जाता है? उन सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में, à¤à¤¾à¤°à¤¤ सरकार फिर यह कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ कहती है कि उसके हाथ बंधे हà¥à¤ हैं और WTO के निरà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥‹à¤‚ के पालन हेतॠदेश के कानूनों में संशोधन करने के अलावा उनके पास कोई चारा नहीं है ? à¤à¤¸à¤¾ लग रहा कि सरकार संसदीय लोकतंतà¥à¤° और संपà¥à¤°à¤à¥à¤¤à¤¾ के सिदà¥à¤§à¤¾à¤‚त को सिरà¥à¤« अपनी सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¸à¤¾à¤° पेश करती है.
जनांदोलनों और सिविल सोसायटी दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ संचालित की जा रही पà¥à¤°à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤à¤‚ – जिनसे हम पूरे सहमत हों अथवा नहीं – लोकतंतà¥à¤° को मजबूत करती हैं. नागरिकों को चà¥à¤¨à¥‡ हà¥à¤ जन पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¨à¤¿à¤§à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को यह बताने का पूरा अधिकार है वे किस तरह के कानून चाहते हैं, किन कानूनों को वे बदलना या ख़तà¥à¤® करना चाहते हैं. विशेष आरà¥à¤¥à¤¿à¤• कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° (सेज) कानून संसद में बिना किसी विरोध के पास हो गया था, लेकिन जब इसे लागू किया गया तब यह सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ हो गया कि जिन नागरिकों को यह सबसे जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ करने वाला था – किसान – वे इसे सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° नहीं करेंगे. कà¥à¤¯à¤¾ यह à¤à¤• जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ लोकतानà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤• पà¥à¤°à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ नहीं होती कि संसद में इसे पास करने से पहले किसानों को इसे जांच-परख लेने का अधिकार दिया जाता? आज, à¤à¥‚मि अधिगà¥à¤°à¤¹à¤£ के खिलाफ चल रहे बड़े किसान विदà¥à¤°à¥‹à¤¹à¥‹à¤‚ ने सरकारों को à¤à¥‚मि अधिगà¥à¤°à¤¹à¤£ और पà¥à¤¨à¤°à¥à¤µà¤¾à¤¸ के मौजूदा कानूनों के बारे पà¥à¤¨à¤°à¥à¤µà¤¿à¤šà¤¾à¤° करने पर कर दिया है. देशदà¥à¤°à¥‹à¤¹ कानून के खिलाफ à¤à¥€ देश में à¤à¤• जनमत बनता दिख रहा है; पहले à¤à¥€ जनांदोलनों ने AFSPA जैसे कानूनों पर बड़ी बहस को जनà¥à¤® दिया है. à¤à¤• सà¥à¤µà¤¸à¥à¤¥ लोकतंतà¥à¤° के लिठये सारी जरूरी पà¥à¤°à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤à¤‚ हैं और सरकार इन à¤à¤¾à¤—ीदारी पà¥à¤°à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤¯à¥‹à¤‚ को बदनाम करने की कोशिश में सिरà¥à¤« अपने तानाशाही रवैये को ही दिखा रही है.
जिस अंगरेजी अखबार ने चिदमà¥à¤¬à¤°à¤® की ‘चà¥à¤¨à¥‡ हà¥à¤ जन पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¨à¤¿à¤§à¤¿ सिविल सोसायटी के सामने नहीं à¤à¥à¤• सकते ‘ वाली नà¥à¤¯à¥‚ज छापी थी à¤à¤• पाठक ने कमेनà¥à¤Ÿ करते हà¥à¤ अख़बार के वेब पनà¥à¤¨à¥‡ पर à¤à¤•à¤¦à¤® सटीक बात लिखी. इस पाठक ने अपने मरà¥à¤®à¤à¥‡à¤¦à¥€ कमेनà¥à¤Ÿ में लिखा कि” हाà¤, उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ सिरà¥à¤« कॉरपोरेटà¥à¤¸ और देश को लूटनेवालों के सामने à¤à¥à¤•à¤¨à¤¾ चाहिऔ. जैसे-जैसे कॉरà¥à¤ªà¥‹à¤°à¥‡à¤Ÿ घरानों दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ डिकà¥à¤Ÿà¥‡à¤Ÿà¥‡à¤¡ और संरकà¥à¤·à¤¿à¤¤ à¤à¥à¤°à¤·à¥à¤Ÿà¤¾à¤šà¤¾à¤° जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ से जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ सामने आ रहा है , à¤à¤¸à¤¾ पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤ होता है कि यूपीठसरकार के तरà¥à¤•à¥‹à¤‚ से सहमत लोगों की संखà¥à¤¯à¤¾ दिन ब दिन कम होती जा रही है.