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कैसे देखें डिजिटल भारत का सपना नेट न्यूट्रालिटी के बिना?

राजेन्द्र सिंह

सुबह से एक मेल को डाउनलोड करने के लिए मैं घर के तमाम कमरो में उस नेट की रफ़्तार को तलाश रहा था जिससें मुझे इंटरनेट के स्मार्टयुग का एहसास होता, पर हर बार की तरह रखना पड़ा तो बस धीरज।

जहाँ थ्री जी नेट भी कभी अपनी खोखली रफ़्तार के चलते उम्मीद तोड़ता है, ऐसे में सोचिये कि मेरे जेसे लाखों युवाओँ को अगर नेट की कुछ सेवाएं, जैसे जीमेल और फेसबुक के लिए अलग से कीमत चुकानी पड़ती, तो शायद ही दुनिया में इतने लोगों के जीमेल अकाउंट होते, शायद ही व्हाट्सप या फ़ेसबुक इतने बड़े पैमाने पर लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर पाते। यह सब हो सका तो बस इसलिए की एक ही नेट पैक में सब था, सच में ही पूरा जहाँ।

Illustration by Maitri Dore

इंटरनेट तमाम न्यूज़ चैंनलो और अखबारो को पीछे छोड़ते हुए दुनिया में अपडेट रहने का लोकप्रिय माध्यम बनता जा रहा है। देश के बड़े आंदोलन, फिर चाहे केजरीवाल का मुख्यमंत्री बनना हो, या अन्ना के लोकपाल के लिए लाखों लोगों का सड़क पर उतारना, लोग एक साथ खड़े हुए संवाद की आजादी के लिए। अभिव्यक्ति की आज़ादी के लिए, जो की हक़ का लब्ज़ बनकर बस किताबों तक ही न रह जाए बल्कि मिले सबको मिले।

16 दिसम्बर के दर्द को, उस आक्रोश को अगर मंच मिला तो उस कैनेक्टिविटी के चलते, जिसे मैं भारत में पनपती नेट क्रांति का नाम दूंगा। एक साथ लाखों लोग अपना दर्द, अपनी बातें रख सके, वो भी अपनी भाषा में, अपने शब्दों में, अपने अंदाज़ में। बड़ी बेबाकी से इस संघर्ष को मुकाम हासिल हो सका तो बस नेट की उप्लब्धता की वज़ह से, जो अब तक समानता के दायरे में थीं।

अब देश में इंटरनेट की ज़रूरत को सभी राजनैतिक दल समझ रहे हैं। फेसबुक, ट्विटर से जुड़के लोगों से अपना प्रचार कर रहे हैं, फिर चाहे मोदी का नमो मंत्र ही क्यों न हो। कुछ पार्टियों ने नेट की जरूरत को इस कदर समझा कि बिजली-पानी के साथ फ्री वाई फाई का वादा भी कर डाला।

कुछ खास सेवाओं के लिए ज़्यादा कीमत को विभाजित कर, उसकी पैकेजिंग कर, अलग-अलग कीमत वसूलना एयरटेल या फ्लिपकार्ट का मिलाजुला प्रयास है। उनका मकसद है नेट की लोकप्रियता को भुनाके उसे से ज़्यादा से ज़्यादा मुनाफा कमाना, जो कि शायद गलत है। आज जब युवा जुड़ रहा है पूरी दुनिया से, अपने आप को, अपनी बातों को, सबके सामने रख पा रहा है, ऐसे में नेट न्यूट्रालिटी के विरोध से उन तमाम उम्मीदों को झटका लगेगा जिसका सपना सबके दिल में है।

सारी उम्मीद ट्राई से है नेट को बचाने की, सब तक पहुँचाने की, क्योंकि सरकार स्पेक्ट्रम की ऊँची कीमतों के मानक तैयार करती है फिर कम्पनिया ऊँची नीलामी की बोली लगाकर उसे हासिल करके कीमत हमसे वसूलती हैं। ऐसे में अगर किसी का फायदा होगा तो बस कुछ एयरटल, वोडाफोन जैसी कंपनियों का। इसमें कोई दो राय नहीं कि नेट के विस्तार में प्राइवेट सेक्टर के योगदान को नकारा नहीं जा सकता। पर सवाल यह है कि ऐसे में सरकार की नीतियों का बोझ हम आम लोग क्यों भरें

डिजिटल भारत का सपना लिये जिस तरह देश के प्रधानमंत्री तकनीक के विस्तार की बात करते है, युवाओँ को आगे ले जाने का दम भरते हैं, ऐसे में अगर नेट न्यूट्रिलिटी का गला घोंट दिया गया तो पिछड़ जयेगा डिजिटल भारत का सपना। तकनीक, इंटरनेट और युवाओं से जुड़े आंकडे महज इतिहास बनके रह जायँगे। सबसे पहले तो ज़रूरत है मोबाईल क्रांति के तर्ज पर नेट क्रांति, हर हाथ में मोबाईल व नेट का पहुचना।

लचर और रद्दी नेट प्रणाली के दौर में नेट निष्पक्षता की बात न तो उम्मीद की रौशनी लाएगी और न कुछ फ्री सेवाओं की सौगात लोगो के काम आएगी। 70 के दशक में जब देश अनाज की कमी झेल रहा था तब हरित क्रांति लेकर और एक सामान वितरण प्रणाली से सभी लोगों को एक सामान सिस्टम से जोड़ा और बाद में जब अनाज की पूर्ति होने लगी तो धीरे धीरे समाज की जरूरत और वर्गों को अलग कर दिया गया। अगर anti-competition को बढ़ावा मिला तो नेट की सेवाओं का बस सीमित दायरा रह जायेगा और लोग हो जायेंगे “नेट कुपोषण” के शिकार क्योकिं डिमांड और सप्पलाई के बीच का अंतर फिर एक “तंदुरस्त नेटवर्क” की कमी से जूझेगा और उससे जूझना पड़ेगा हमें। इस तकनीकि अकाल के दौर में अगर इंटरनेट को व्ययसायिक अवसर की तर्ज पर देखा गया तो खस्ताहाल नेट प्रणाली विस्तार से पहले ही दम तोड देगी, टूट जयेगा दुनिया में युवाओ को लेकर एक समृद्ध राष्ट्र का भ्रम।

वेसे भी ट्राई की हाल ही में आई एक रिपर्ट की माने तो सूचना तकनीक के इस्तेमाल में हम अफ्रीका के मुल्कों से भी पिछड़े हैं और इंटरनेट ब्रॉडबेन्ड के मामले में भी हमारी गिनती अभी भी बांग्लादेश जैसे देशों से बहुत पीछे है। शायद नेट के इस्तेमाल से आप भी इन बातों से रोज़ दो चार होते ही है|

125 करोड़ की विकाशील आबादी के मुल्क में, जहाँ फोन में लिमिटेड बैलेंस और जेब मेँ लिमटेड पैसे हों, ऐसे में नए महंगे इंटरनेट की योजना का बोझ युवा कन्धा नहीं झेल पाएगा। देश के हर गावँ-देहात के युवाओं तक पहुँचने से पहले ही कहीं नेट तकनीक परग्रही तकनीक न हो जाए।

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