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अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस: सूर्य नमस्कार या सियासी जंग?

अनिल के. राय

पूरे विश्व ने 21 जून को पहला अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया | इसकी तैयारी भारत के साथ-साथ पूरे विश्व में जोर शोर से हुई| पर इस पर भी सियासी जंग शुरू थी और जैसे – जैसे इसके दिन नजदीक आते जा रहे थे, जंग अपनी चरण सीमा पर पहुँचती गई और हर टीवी चैनलों को एक बहस का मुद्दा मिल गया। मेरा मानना है कि ये अच्छी बात है जो लोकतंत्र के स्वास्थ के लिए अच्छा है पर इसकी बाल की खाल निकालना, क्या इस हद तक सही है ? क्या सूर्य नमस्कार एक बहस मात्र ही है ? और हाँ ये ‘अनिवार्य’ शब्द से मैं उस दिन भी नफरत करता था जब परीक्षाओं के प्रश्न-पात्र में होता था तो आज भी मुझे ये ना पसंद है | ‘अनिवार्य’ शब्द मुझे पचता ही नहीं और एक लोकतंत्र के लिए ये शब्द अच्छा भी नहीं हैं | फिर भी सूर्य नमस्कार करना मुस्लिम समुदाय के लिए कोई पाप तो नहीं हो सकता ! हो सकता है, ये एक आस्था या फिर धर्म की बातों से जुड़ी हो पर अगर इसे हम एक लाइफ स्टाईल के तौर पर ले तो क्या फिर भी ये किसी के धर्म को ठेस पहुचायेंगा? मैं मानता हूँ कि ये हमारी सोच पर निर्भर है | अरे एक ऐसी दवा हम विश्व को देने जा रहे हैं जो बिना मूल्य के रोगों का इलाज़ कर सकती है फिर भी इसे एक राजनीतिक बहस बाना दिया गया|

अब कुछ ठेकेदारों का ये कहना है कि ये योग दिवस राष्ट्रीय स्वयं सेवक के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार जी के जन्म दिन के दिन मनाया जा रहा है जिसके पीछे आर.एस.एस. के प्रचारक रह चुके प्रधानमन्त्री का हिन्दु राष्ट्र बनाने की एक साजिश है | अब ये बात हमें समझ में नहीं आती कि इसका क्या मतलब निकलता है ? अब वे एक डॉक्टर के साथ-साथ एक अच्छा योग गुरु भी थे, तो इस दिन को योग दिवस बानाने में क्या हर्ज़ है ? अब ये सयोंगवस भी तो हो सकता है |

बस मुझे तो यही समझ में आता है कि आज के राजनितिक पंडित किसी भी चीज़ को एक सियासी मुद्दा बनाकर बस उसका लाभ उठाना चाहते है | इन्हें तो बस एक मुद्दा मिलना चाहिए, अपना उल्लू सीधा करने के लिए | जिससे आज के आम आदमी को कोई भी लेना देना नहीं रहता | अच्छा यही कि हर चीज़ को एक सियासी जंग न बनया जाए तो अच्छा हो और ये काम हामरे बिना कभी संभव नहीं है | तो ज़रा आप सोचिये और इन राजनितिक पंडितों की बात न मानकर स्वयं विचार कीजिये | हम युवा ही इस चीज़ को रोक सकते है | हम हीं है जो ये तय कर सकते है कि किन बातों को राजनिति की गलियों में भटकना चाहिए और किन बातों को नहीं | अगर हम इन पंडितों का अवसरवाद मकसद समझ जाए तो फिर ये हालात पैदा ही नहीं होंगी कि योग जैसी अमूल्य चीज़ भी एक राजनीतिक मुद्दा बन जाए, सियासत का गन्दा खेल खेलने के लिए | बाकी जो है, सो है, आप स्वंय विचार कीजिये |

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