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ऐसा गांव जहां बच्चों के बीच क्रिकेट का नहीं बल्कि वॉलीबॉल का है क्रेज़

 

Editor’s Note: Editor’s Note: This article is part of the collaboration between Khabar Lahariya and Youth Ki Awaaz, where you the readers get to read stories from the hinterlands of the country’s largest state – Uttar Pradesh. Here, India’s volleyball players tell you why it is a popular sport in the country’s rural areas, despite sports like cricket or football grabbing media and public attention.

वॉलीबॉल को भले ही भारत में टी.वी पर ना दिखाया जाता हो, भले ही बच्चे-बच्चे की ज़ुबान पर वॉलीबॉल खिलाड़ियों के नाम ना हों, लेकिन देश के कई गांवों में इस अंतरराष्ट्रीय स्तर के खेल ने अपनी खास जगह बना ली है। महोबा स्टेडियम के वरिष्ठ लिपिक और खेल की दुनिया से कई सालों से जुड़े बृजमोहन वर्मा कहते हैं, “अकसर क्रिकेट और फुटबॉल जैसे खेलों में मैदान और सामान की ज़रूरत होती है, व्यवस्था करनी पड़ती है। वॉलीबॉल गांव में लोग आसानी से खेल सकते हैं – लोग दिनभर के काम के बाद साथ में आए, दो खम्भे गाड़े, एक बॉल ली और मनोरंजन शुरू। यही कारण है कि छोटे –छोटे ज़िलों से भी इस खेल के इतने खिलाड़ी निकलते हैं।”

वॉलीबॉल की शुरुआत 1895 के आसपास अमेरिका में हुई। खेल के नियम बनते बदलते रहें। 1964 में इसे अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिता में मान्यता मिली। भारत में इस खेल को पहचान आज़ादी के बाद 1951 में मिलना शुरू हुई।

नूर मुहम्मद

ज़िला बांदा। बांदा के गोयरा मुगली गांव निवासी नूर मुहम्मद ने आठ साल की उम्र में वॉलीबॉल खेलना शुरू किया क्योंकि उनके दादाजी इस खेल के शौकीन थे। नूर ने 1994 में गोरखपुर में ट्रेनिंग की और 1998 में राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में जीत भी हासिल की। वे हिमाचल प्रदेश, चण्डीगढ़ और कर्नाटक राज्यों में भी खेल चुके हैं।

उन्होंने बताया, “कई प्रतियोगिताओं में हमारी टीम में पर्याप्त लोग ना होने की वजह से हार का सामना करना पड़ा। तीन साल पहले घुटनों में तकलीफ के कारण मुझे खेलना बंद करना पड़ा। मैं मानता हूं कि इस खेल को ग्रामीण स्तर पर और बढ़ावा देना चाहिए। इसके लिए गांव में खेल समितियां बनाने की ज़रूरत है।” खुद इस खेल को प्रोत्साहन देने के लिए नूर बांदा के गांवों में वॉलीबॉल प्रतियोगिताओं का आयोजन कराते हैं।

जहां एक ओर नूर मुहम्मद वॉलीबॉल में और लोगों को जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं, बांदा के युवा कल्याण अधिकारी रामजियावन ने बताया कि ज़िले में वॉलीबॉल खेलना लड़कियों को भी पसंद है। पर उनके लिए छात्रावास ना होने के कारण अकसर उनके परिवार उन्हें ट्रेनिंग के लिए नहीं भेजते।

ज़िला महोबा। कबरई के बरीपुरा गांव के राजू का नाम महोबा में वॉलीबॉल से जुड़ा हर कोई जानता है। राजू मानते हैं कि वॉलीबॉल सबसे सस्ता खेल है जिसमें हर तरह का व्यायाम हो जाता है। “मैंने पहली बार हाईस्कूल में ज़िला स्तर पर महोबा डाक बंगला मैदान में सुकौरा के खिलाफ मैच खेला था। 1991 में राज्य स्तर पर कानपुर के खिलाफ खेला था जिसमें ट्रॉफी मिली थी। कई बार झांसी स्टेडियम ओर छतरपुर में भी मैच खेले। आज देखा जाए तो वॉलीबॉल बिल्कुल खत्म होने की हालत में है। इसलिए स्कूलों में इस खेल की प्रतियोगिताओं का आयोजन करना बहुत ज़रूरी है।”

Brought to you in collaboration with Khabar Lahariya.

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