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शिंगणापुर शनि मंदिर में औरतें चढ़ावा क्यों नही चढ़ा सकतीं?

पूजा त्रिपाठी

आज अखबार में खबर पढ़ी कि एक महिला समूह शनि शिंगणापुर मंदिर में 26 जनवरी को उस सालों पुरानी परंपरा को तोड़ने की तैयारी कर रहा है जिसमें महिलओं का उस चबूतरे पर जाना वर्जित है जहां शनि पत्थर स्थापित है। पिछले साल नवंबर महीने में शिंगणापुर शनि मंदिर के चबूतरे पर एक महिला के प्रवेश पर काफी बवाल हुआ था, मंदिर के पुजारियों और गांव के लोगों ने मंदिर का शुद्धिकरण किया था। परंपरा का हवाला देते हुए कहा गया कि शनि मंदिर के चबूतरे पर महिलाओं का प्रवेश वर्जित है।

मुंबई के शनि शिंगणापुर मंदिर में महिलाओं के लिए कुछ नियम हैं। इस मंदिर में हाल ही में अनीता शेटे को मंदिर ट्रस्ट का अध्यक्ष चुना गया है और वह भी शनि मंदिर में महिलाओं के लिए बने नियमों को नहीं बदलना चाहतीं। अनीता का कहना है कि हम इस परंपरा को कायम रखना चाहते हैं। मंदिर की पवित्रता के लिए गांव के ज्यादातर लोगों की भी यही मान्यता है कि चबूतरे पर महिलाओं का प्रवेश न हो।

पढ़कर अच्छा लगा, याद आया इस मंदिर से जुड़ी एक ऐसी घटना जिसने मेरे बाल मन को विचलित कर दिया था, कुछ साल पहले मैं अपनी माँ की सहेलियों के साथ शनि शिंगणापुर और शिर्डी की यात्रा पर गयी थी। तो हुआ ये कि यह महिला समूह शनि शिंगणापुर मंदिर पहुंचा, महिलाओं का शनि प्रतिमा पर तेल चढ़ाना वर्जित होता है इसीलिए सभी लोग किसी प्रॉक्सी की तलाश में लग गये जो उनकी तरफ से शनि भगवान पर तेल चढ़ा दे।

जहाँ सब महिलायें व्यस्त हो गयी तो मैं घूमते, घूमते उस चबूतरे पर पहुँच गयी और चबूतरे के किनारे लगी रेलिंग पकड़ कर प्रतिमा पर हो रही पूजा देखने लगी इस बात से बिलकुल अनजान कि मैं कितना बड़ा “पाप” कर रही हूँ। थोड़े देर बाद एक पंडित का ध्यान रेलिंग को पकड़े इस छोटी सी लड़की पर गया। वो उसकी ओर बढ़े, हाथ से एक धक्का दिया और कहा, “माँ ने कुछ सिखाया नहीं क्या?” वो बच्ची थोड़े देर रोती रही, उसे समझ ही नहीं आया कि उसकी गलती क्या थी। उसे कारण तो बता दिया उसकी माँ ने पर फिर भी उसे समझ नहीं आया कि उसकी गलती क्या थी।

ऐसा नहीं है कि शनि शिंगणापुर ही ऐसा मंदिर है जहाँ इक्कीसवी शताब्दी में भी ऐसी रिग्रेसिव परम्परायें चल रही हैं। कई ऐसे पूजा स्थल हैं जो नारी सशक्तिकरण को चिढ़ाते हुए खड़े हैं – राजस्थान के पुष्कर शहर के कार्तिकेय मंदिर, मुंबई के वर्ली समुद्र तट पर हाजी अली शाह बुखारी की दरगाह और केरल के तिरुअनंतपुरम में स्थित पद्मनाभस्वामी मंदिर।

वे 400 महिलायें जिन्होंने इस मंदिर में जाने और सदियों से चल रही अंधी परम्पराओं को चुनौती देने का फैसला लिया है, जाइए : उस बच्ची के लिये, इस लेखक के लिये, सदियों से पीछे धकेली जा रही औरतों के लिए और उन स्त्रियों के लिये भी जाइये जो आपको धर्मं के नाम पर, परंपरा के नाम पर रोकने की कोशिश करेंगी ।

नयी शताब्दी के दौर में इसी देश में स्त्री ने कई पुरुष वर्चस्वी क्षेत्रों में हस्तक्षेप किया है। विस्मय तब होता है जब धर्म के नाम पर वह मनुस्मृति के विधान धारण करने लगती है, वह हर उस नियम को स्वीकार करती है जो उसके लिए किसी और ने लिख छोड़े हैं , यह कुछ और नहीं रूढ़ परम्पराओं के प्रति उसकी भयजनित मान्यता दर्शाता है …विचित्र लेकिन सच।

“आओ मिलें

मिलकर तोड़े

हर उस ज़ंजीर को

जिसने कल पैर बांधे थे

आज गला जकड़ रहे हैं

देवी-देवी के ढोल ने हमें कर दिया है बहरा

श्रध्दा के शोकगीत से होती है उबकाई

परम्परायें जब उठाती हैं सर

तो कुचले जातें हैं कितने नारी विमर्श के स्वर

गन्दा समझ जिसे करते हो बाहर

गर उस खून का रंग लाल है

तो क्रांति का भी

मैं नकारती हूँ तुम्हारे हर उस भगवान को

जो माँ की कोख से नहीं जन्मा है।”

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