“कमी नहीं कद्रदां की अकबर, करो तो पहले कमाल पैदा” – अकबर इलाहाबादी
उनका जन्म दिनांक 24 अक्टूबर 1921 को मैसूर में हुआ था। उनके पिता एक शिक्षक थे, वह सात भाई-बहन थे जिनमे उनके बड़े भाई प्रसिद्ध उपन्यासकार आर के नारायणन भी शामिल थे। उन्हें बचपन से ही कार्टून बनाने का बहुत शौक था। बचपन में एक बार पीपल के पत्ते का चित्र बनाने के लिए उन्हें अपने शिक्षक से अत्यंत सराहना मिली जिससे प्रोत्साहित होकर उनके अन्दर चित्रकार बनने का एक जूनून सवार हुआ और उनके इसी जूनून ने उन्हें विश्व के प्रमुख व्यंग्य-चित्रकारों में एक अलग एवं विशिष्ट पहचान दिलाई।
वह ब्रिटेन के मशहूर कार्टूनिस्ट सर डेविड लौ से अत्यंत प्रभावित थे। एक बार मुंबई के प्रसिद्ध जे जे कॉलेज ऑफ़ आर्ट्स ने उन्हें यह कहते हुए उनका दाखिला लेने से इंकार कर दिया था कि उनके चित्रों में ऐसी कोई विशेष बात नही है। कुछ वर्षों के उपरांत ही उन्हें उसी संस्थान में बतौर मुख्य अतिथि आमंत्रित किया गया था।
वह कभी भी असफलता से घबराते नहीं थे और यही कारन है कि उनके कार्टूनों में ‘आम आदमी’ की रीढ़ हमेशा सीधी रही क्योंकि यह ‘आम आदमी’ कभी झुका नही। 1947 में लक्ष्मण ‘द टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ से जुड़े जहाँ 1951 में उनका कॉलम “यू सेड इट” अर्थात “यह आपने कहा” नाम से प्रथम पृष्ठ पर शुरू हुआ जो एक “आम आदमी” की आवाज़ बनकर उभरी। लक्ष्मण के ‘आम आदमी’ की खास बात यह थी कि वह कुछ न कहकर भी सबकुछ कह जाता था। सूक्ष्म के सहारे विराट का परिचय कराने की जो कला लक्ष्मण के पास थी वैसी अन्यत्र दुर्लभ है। उन्होंने अपने चित्र-व्यंग्य के माध्यम से ‘आम आदमी’ की पीड़ा के साथ-साथ समाज की विकृतियों, राजनीतिक विचारधारा की विषमताओं को भी व्यक्त किया।
विसंगती की पहचान के लिए समाज हितैषी राजनीति की समझ और समाज-विरोधी तत्वों की जैसी पहचान लक्ष्मण के कार्टूनों में मिलती है वैसी अन्यत्र नही। अपने कार्टूनों में भारतीय राजनीती की विशिष्टताओं के विभिन्न पहलुओं को अत्यंत ही मुखरता एवं निर्भयता से उजागर करने वाले आर के लक्ष्मण ने लम्बे समय तक ‘आम आदमी’ की आवाज़ को व्यंग्यात्मक लहजे में व्यक्त किया और अपनी कृतियों से लाखों लोगों के चेहरे पर मुस्कुराहट ला दी। उनके इन्ही अदभुत एवं अद्वितीय व्यक्तित्व के कारन 1984 में उन्हें ‘रैमन मैग्सेसे पुरष्कार’ से नवाजा गया। इसके साथ ही 2005 में भारत की सरकार ने भी उन्हें ‘पद्म विभूषण’ से नवाज़ा।
एक लम्बी बीमारी की वजह से आम आदमी को एक स्वतंत्र आवाज़ देने वाले इस महान शख्सियत ने 26 जनवरी 2015 अर्थात भारतीय गणतंत्र दिवस के दिन ही सदा-सदा के लिए ‘आम आदमी’ को अकेला छोड़कर जीवन के सबसे बड़े सार्वभौमिक सत्य से साक्षात्कार हेतु प्रस्थान किया। आज वह हमारे बीच नहीं रहे परन्तु उनके आम आदमी का अमर चित्र हमारे मानस-पटल पर स्मृति के रूप में सदैव संचित रहेगा।