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चित्रकूट ज़िले के ये सरकारी स्कूल ‘सर्व शिक्षा अभियान’ की खोखली सच्चाई बयां करते हैं

By Khabar Laharia:

Editor’s Note: As part of Youth Ki Awaaz and Khabar Lahariya‘s collaboration, we bring to you this story from the hinterlands of the country’s largest state – Uttar Pradesh. The government aims to educate all children under the ‘Sarva Shiksha Abhiyan’ but a look at the schools in Chitrakoot district shows the dismal lack of efficiency in the implementation of government schemes.

चित्रकूट जिले के प्राथमिक और जूनियर स्कूलों कि हालत देखकर लगता है कि बच्चों के साथ अन्याय हो रहा है। शिक्षा के नाम पर जहां न अध्यापक हैं न मूलभूत सुविधाएं, वहां सर्व शिक्षा अभियान जैसी योजनाएं खोखली नजर आती हैं।

कहने को तो जिले में 994 प्राथमिक और 481 जूनियर स्कूल हैं जिनमें 1,06,640 प्राथमिक और 48,016 जूनियर बच्चे हैं। लेकिन यह सिर्फ रजिस्टरों में दर्ज संख्या है जबकि असल में इसके आधे बच्चे भी स्कूलों में नजर नहीं आते।

इन सैंकड़ों बच्चों के लिए सुविधाओं के नाम पर स्कूलों की टूटी दीवारें हैं, फ्री साइज की बनाई गई सस्ते कपड़े की ड्रेस हैं। कई जगह तो हालत इससे भी बदतर है। इनमें सेमरीया चरनदासी स्कूल, रम्पुरिया स्कूल, मैदान स्कूल, बनवारीपुर स्कूल मुख्य हैं।

हालात सिर्फ यहां के ही नहीं, बल्कि इससे ज्यादा खराब दुबी गांव के प्राथमिक स्कूल के हैं। कक्षा पांच में पढ़ने वाले कैलाश को 100 तक गिनतियां नहीं आती। पूछने पर कहा, मुझे आती ही नहीं। कैलाश ने बताया कि वह सुबह नौ बजे स्कूल आता है। इस समय तक मास्टर जी नहीं आते, जब मास्टर जी होते हैं तो सभी बच्चों को एक साथ बैठा कर लिखने को दे देते हैं। जब मैं पूछता हूं, मास्टर जी कुछ पढ़ाते क्यों नहीं हैं? तब वह डांट कर चुप कर देते हैं।

कर्वी प्राथमिक स्कूल में पढ़ने वाली कक्षा तीन की रतुशब और रोशनी ने बताया कि स्कूल में बिलकुल पढ़ाई नहीं होती। हम घर से यहां पढ़ने आते हैं लेकिन सारा दिन बैठे ही रहते हैं। वो आगे कहती हैं, अभी तक हमें किताबें भी नहीं मिलीं। यही नहीं, मिड-डे-मील के नाम पर रोज पीले चावल खाने को दिए जाते हैं।

जिला समन्यवक निर्माण सत्येन्द्र सिंह स्कूलों का निर्माण कार्य देखते हैं। स्कूलों की व्यवस्था और बजट के बारे में बात करने पर सत्येन्द्र सिंह ने बताया कि जिले में 132 प्राइमरी और 96 जूनियर स्कूलों में बाउंड्री नहीं हैं। वहीं, 107 स्कूलों में पानी की व्यवस्था नहीं हैं जिसके लिए सितम्बर 2015 में जल निगम में पैसा भी जमा किया गया था। इसमें हैंडपंप लगवाने के लिए 53,200 रुपये प्रति हैंडपंप के लिए दिया गया था। कुल बजट 56 लाख रुपये का था, जिसमें से 28 लाख जल निगम को दे दिया गया। यह कार्य 31 जनवरी, 2016 में पूरा हो जाना था लेकिन नहीं हो सका। बाद में, 16 फरवरी को डीएम द्वारा कारण बताओ नोटिस भी जल निगम को भेजा गया।

किताब और ड्रेस के बारे में जानकारी लेने के लिए बेसिक शिक्षा विभाग के अकाउंटेंट राकेश श्रीवास्तव से बातचीत की। उन्होंने बताया कि जुलाई में कक्षा एक से आठ तक के लिए लखनऊ से किताबें आती हैं। अब तक जिले में 1.57 लाख किताबें आईं, जिन्हें कुछ ही स्कूलों में बांटा गया है।

ड्रेस के संबंध में बताते हुए उन्होंने कहा कि जिले में 1.25 लाख बच्चों को ड्रेस बांटी जा चुकी है। इसका बजट 3.75 करोड़ रुपये था, जिसमें से 75 प्रतिशत चुकता कर चुके हैं। जबकि 25 प्रतिशत बाकी है।

एक तरफ सरकार प्राइवेट स्कूल छोड़कर सभी को सरकारी स्कूलों में पढ़ाने की बात करती है, वहीं दूसरी तरफ शिक्षा और बच्चों को बदहाल हालत में बनाए रखती है। यह कैसा मजाक है शिक्षा के साथ कि जो पढ़ना चाहता है उसके पास पर्याप्त सुविधाएं भी मौजूद नहीं हैं। सर्व शिक्षा अभियान चलाकर देश को शिक्षित बनाने की बात की जाती है, लेकिन ऐसे हालात में बच्चे कैसे पढ़ेंगे?

Brought to you in collaboration with Khabar Lahariya.

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