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कैसे बनी एक दलित महिला अपने गांव की प्रधान, पर मुश्किलें नहीं हुई आसान

By Khabar Lahariya:

Editor’s Note: As part of Youth Ki Awaaz and Khabar Lahariya‘s collaboration, we bring to you this story from the hinterlands of the country’s largest state – Uttar Pradesh. Sushila is one of the most educated women in her district of Kolamjara. But when she decided to run for Gram Pradhan, she faced massive discrimination because she’s a Dalit. She shares her story.

चित्रकूट जि़ले के मऊ ब्लाॅक, कोलमंजरा ग्राम पंचायत से सुशीला ने 2015 में ग्राम प्रधानी का चुनाव लड़ा। 28 साल की सुशीला अपने जि़ले की सबसे ज़्यादा पढ़ी-लिखी महिला हैं। एम.ए., बी.एड. कर चुकी सुशीला गांव के कल्याण और समाज सेवा में लगी हुई हैं।

अपने शुरुआती संघर्ष को बताते हुए सुशीला कहती हैं, “जब मैं पढ़ने के लिए मऊ जाया करती थी तभी से मुझे दलित जाति की होने के कारण लोगों के विरोध का सामना करना पड़ता था। इसके बाद जब मैंने चुनाव लड़ने का सोचा तब तो हर तरफ से मेरा विरोध किया जाने लगा। व्हाट्सएप पर, फोन पर और रास्ते में आते-जाते हुए लोग मुझसे उल्टी-सीधी बातें किया करते थे।

प्रधान बनने के बाद जैसे सब बदल गया है। लोग अब आदर करते हैं, मेरी बातों को सुनते हैं, अपनी समस्याएं बताते हैं। मेरा सहयोग करने के लिए यहां कोई नहीं है। इसलिए प्रधानी का सभी काम मैं अकेले ही करती हूं। गांव के विकास के लिए अस्पताल बनवाना, शौचालय बनवाना, गरीबों के लिए आवास बनवाना, आदि कई काम करती हूं।

मैं अपने जैसी बाकी महिलाओं को यह संदेश देना चाहती हूं कि लड़कियों को पढ़ाओ और बेटा-बेटी में कोई फर्क न करो। मैं अपनी लगन और मेहनत से प्रधान बनी लेकिन यदि सभी लड़कियां पढ़ेंगी तो शायद वो प्रधानमंत्री भी बन जाएं।”

Brought to you in collaboration with Khabar Lahariya.

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