Site icon Youth Ki Awaaz

छात्र और राजनीती: किरण खेर को एक छात्र का खुला पत्र

By Anupam Singh:

Source: Flickr (modified).

लगातार नेताओं का यह बयान आता रहता है कि छात्रों को सिर्फ अपनी पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए. कुछ दिन पहले ट्विटर पर इसी तरह का एक बयान राज्यसभा सांसद माननीय किरण खेर का दिखा. उनका कहना था की छात्रों को सिर्फ़ पढ़ाई करने की ज़रूरत है. उन्है सिर्फ़ पढ़ाई करना चाहिए, राजनीति नही. इधर कई ऐसे छात्रों से मुलाकात हुई जो लगातार रोजगार को लेकर चिंतित दिखे. मैंने अपने जीवन के बीते और वर्तमान समय के अनुसार उन लाखों लाख बेरोजगार युवाओं को इस खत के माध्यम से लिखने की कोशिश की है.

माननीय सांसद किरण खेर के नाम –

आदरणीय किरण खेर, आज बहुत मनहूस-सा महसूस हो रहा है, इसलिए यह पत्र आपको लिख रही हूँ. मैं बिल्कुल ठीक नहीं हूं, लेकिन आप की कुशलता के लिए कामना करती हूं कि आप एक्टिंग और राजनीति की दुनिया में हमेशा आगे बढती रहें.

मैडम मेरा नाम अनुपम सिंह है, मैं दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग से पीएच. डी. कर रही हूँ. मेरी जन्मतिथि 1986 है. कुछ ज्यादा कम भी हो सकती है, लेकिन मेरे स्कूल के सर्टिफिकेट मे यही लिखा गया है, तो इसी को मानती हूँ. 1986 के आधार पर मैं इस समय तीस साल की होने वाली हूं. मेरे पिता अनपढ़ थे, माँ एक तरह से सिर्फ साक्षर है, शिक्षित नहीं. आदरणीय मैडम हम चार बहनें हैं. मेरा एक भाई है. मेरी बहनों की शादी बहुत ही कम उम्र में हो गयी, इसलिए उनकी पढ़ाई ठीक से नहीं हो पाई. मेरी भी शादी की बात होने लगी, तो मैने तय किया कि अपनी बहनों की जिन्दगी नहीं जीना है.

अम्मा, पिता और भाई ने मेरा साथ दिया. मुझे पढ़ाने का वादा किया. हाईस्कूल और इंटरमीडिएट मे मैं प्रथम श्रेणी में पास हुई. वैसे तो यह बहुत बड़ी बात नहीं थी, लेकिन यही मेरे और घरवालों के आत्मविश्वास का कारण बना. मैने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री भी प्रथम श्रेणी में हासिल की. अम्मा, पिता और भाई का संघर्ष हमेशा से कष्टदायी रहा. जिस उम्र में ढेर सारे हौसले होने चाहिए थे, उस उम्र में मै हमेशा दबाव में रही. कुछ सहेलियाँ न मिली होतीं तो मैं शायद उस डिप्रेशन में कुछ भी कर लेती. भाई जो हमेशा से आश्वस्त थे कि उन्हें मेरे बारहवीं पास करते ही नौकरी मिल जायेगी, फिर इलाहाबाद में अच्छे से पढा़येगें. मैने एम ए भी पास कर लिया, लेकिन उनको तब तक नौकरी नहीं मिली. यह हमारे परिवार के लिए सबसे निराशा का दौर था.

पिता की बवासीर की बीमारी उनको कमजोर करती गयी और एक नयी बीमारी, दमा, ने जकड़ लिया. खूनी बवासीर देह को कमजोर करती गयी, दमे ने उनके बुढ़ापे की सांस को उखाड़ के बेदम कर दिया. अम्मा के चर्मरोग ने उन्हें मिट्टी से दूर कर दिया. अब तक अम्मा बाबू दोनों कमजोर हो चुके थे. हमको सहारा देने वाला कोई नहीं था.

वैसे मै उस समय तेइस-चौबीस की थी और भाई की उम्र इकत्तीस साल. मैं यह नहीं कह सकती की भाई के हौसले टूट चुके थे, लेकिन भाई की जिम्मेदारी बढ़ गयी थी. अम्मा पिता बूढ़े हो रहे थे, बीमारी ने और जल्दी बूढ़ा कर दिया. मैंने इलाहाबाद से एम ए भी प्रथम श्रेणी में पास कर लिया. भाई की अभी भी नौकरी नहीं थी, लेकिन वे छोटी बड़ी नौकरियों के लगातार इन्टरव्यू दे रहे थे. सीटे बहुत कम आती थीं, और एप्लिकेशन उससे कई गुना ज्यादा. जो सीटें निकलती भी थीं वे बहुत अनियमित थीं. आज भी वही स्थिति है, एक एक नौकरी की प्रक्रिया पांच पांच साल तक चलती है. इसलिए यह नहीं कह सकती की उनमें क्षमता और योग्यता नहीं थी.

जब मैं बी एड का इंटरेंस दे रही थी, तब भाई का शिक्षक के पद पर चयन हुआ. वे अपनी उम्मीद से पांच – छह साल पीछे थे. हमारा परिवार घोर निराशा से थोड़ा उभर गया. मैंने भी इसी बीच UGC से JRF निकाल लिया. घर मे खुशी का माहौल बन रहा था. भाई से ज्यादा लोग मेरे लिए खुश थे, कि सरकार ने पढ़ने के लिए फेलोशिप दी है. 2011 का समय था, सब कुछ ठीक होने ही वाला था कि, पिता हमें छोड़कर कर चले गए कभी न आने के लिए. मैंने सोचा कि पिता के लिए कुछ नहीं कर पायी, अम्मा के लिए जरूर करूंगी, जल्दी से नौकरी ले लूंगी.

अब फेलोशिप की अवधि ख़त्म हो गयी है. पी एच. डी. लगभग पूरी होने वाली है. पांच साल से ज्यादा का समय लग गया. तीस साल की होने वाली हूं. अब सब तरफ अन्धेरा दिख रहा है. माँ बीमार होकर बिस्तर पर है. मै बेरोजगारों की श्रेणी में आ कर खड़ी हो गयी हूँ. डर लग रहा है कि पिता की तरह यदि अम्मा भी…..ओह, बहुत छटपटाहट महसूस हो रही है. लेकिन फिर भी यह कहना चाह रही हूँ कि मै बेरोजगार हूँ तो इसमें मेरा कोई दोष नहीं है. मेरे भीतर क्षमता की कमी नहीं है. मैं वहीं खड़ी हूँ, जहाँ मेरे भाई खड़े थे. जहाँ हमने अपने पिता को खोया था. और अब…. इसलिए यदि मैं अपनी मां के लिए कुछ नहीं कर पायी, तो इसकी जिम्मेदारी मैं नहीं लूँगी. यह पत्र बस इसलिए.

Take campus conversations to the next level. Become a YKA Campus Correspondent today! Sign up here.

You can also subscribe to the Campus Watch Newsletter, here.

Exit mobile version