Site icon Youth Ki Awaaz

ऋचा सिंह के समाजवादी पार्टी के साथ जुड़ने के फैसले से निराश छात्र-छात्राओं के नाम एक ख़त

By Anu Singh:

इलाहाबाद के छात्रों और छात्राओं के नाम,

कुछ दिनों से मैं महसूस कर रही हूँ की ज्यादा खतरनाक क्या होता है? उनके द्वारा छला जाना जिनसे हमें उम्मीद रहती है की हम इनसे छले जा सकते हैं या उनसे, जिनसे हमें ऐसी उम्मीद नहीं रहती| उनसे जिनकी आँखों के जरिये हम जम्हूरियत का सपना देखते हैं, उनसे जिनको हम उम्मीद की नयी लौ समझतें हैं, उनसे जिनको हम बदलाव का वाहक समझते हैं, उन्हें जिनको हम संघर्ष की मशाल बना देते हैं…|

निश्चित रूप से कष्ट वो ज्यादा देता है जिस से इस तरह की उम्मीदें पाले रखते हैं, जिनकी अच्छी बातों को हम सच्ची बातें मान लेते हैं| लेकिन फिर वो संघर्ष की मिसाल बनने के बजाय, संघर्ष का लम्बा, कष्टदायी लेकिन खुबसूरत रास्ता चुनने के बजाय, अपने व्यक्तिगत स्वार्थों के आगे हार जाता है, स्वार्थों के आगे बेबस हो जाता है| संघर्ष और स्वार्थ में स्वार्थ ज़्यादा चमकदार दिखाई देने लगता है, इतना चमकदार की आप उन आँखों में देखना भूल जाते हो जिनमें आपने अच्छी अच्छी बातें करके बदलाव लाने का भरोसा दिलाया था, फिर उस छवि को आपने बेचना शुरू किया, उसे भुनाना शुरू किया, और अंत में आपने सही समय देख कर उसी रास्तें को चुन लिया जिनका प्रछन्न विरोध करके आप ने चुनाव जीता था, लोगों का भरोसा जीता था| वो भी उन लोगों का भरोसा जिन्हें ये उम्मीद थी की नहीं, अभी भी देर नहीं हुयी, अभी भी बदलाव लाया जा सकता है, अभी भी जम्हूरियत के सपने देखे जा सकते हैं…|

ऋचा सिंह ने छात्र संघ चुनाव से पहले आके मुझसे और मेरे साथियों से कहा की, “यार कुछ सहयोग करो डब्लू एच (विमेंस हॉस्टल) की लड़कियों का वोट पाने में| तुम लोग तो पहले से रह रहे हो हॉस्टल में, तुम लोगों को ज्यादा लड़कियां जानती हैं| मैं और मेरी और सहेलियां जो की कभी भी छात्रसंघ की राजनीति में रूचि नहीं लेती थीं, ऐसा लगता था की ये छात्रसंघ का चुनाव केवल मनी और मसल के प्रदर्शन का चुनाव होता है, चुनाव में पानी की तरह पैसा बहाया जाता है, आये दिन हिंसा होती है, बनने के बाद कुछ करना नहीं होता है, बस बड़ी पार्टियों के झंडे के पीछे चिल्ला चिल्ला के जिंदाबाद मुर्दाबाद के नारे लगाने के लिए कुछ लड़कों की फ़ौज तैयार की जाती है…|”

इस बार हमें लगा की नहीं अब बदलाव होना चाहिए| हमने पूछा की आप बताईये की आप क्या करेंगी अगर आप चुनाव जीत जाती हैं तो, हम लोगों से क्या कह के आपके पक्ष में वोट मांगेंगे? डब्लू एच के लिए क्या करेंगी जहाँ इतनी बदहाली है, हॉस्टल अधिक्षिकाओं की तानाशाही चलती है, सारे नियम स्त्री विरोधी हैं, अधोगामी हैं और लड़के और लड़कियों में फ़र्क पैदा करने वाले नियम बनाये गये हैं आदि| उन्होंने कहा की, “देखो यार, हम बड़े बड़े वादे नहीं करेंगे कुछ काम हैं जो करेंगे, जिसकी डब्लू एच में जरूरत भी है और वो हैं-

१. हम एक लाइब्रेरी बनवायेंगे जहाँ लड़कियां रात में भी बैठ के पढ़ सकें, अच्छी किताबें रहें, अच्छी मैगजीन्स आएँगी आदि
२. हम एक कंप्यूटर लाइब्रेरी बनवायेंगे
३. मेस में जो खाना मिलता है वो महंगा देते हैं, क्योंकि ये मेस वाले यूनिवर्सिटी को मेस चलाने का कोई किराया नहीं देते इसलिए इन्हे लड़कियों को subsidised फ़ूड देना पड़ेगा
४. हास्टल के अन्दर जो दुकाने चल रही हैं, वे मनमाने दामों पर सामान बेचते हैं इसलिए उनके विकल्प में नई दूकान खुलेंगी जिसमे उसी रेट पर सामान मिलेगा जिस रेट पर बाहर सामान मिलता है, जब कई विकल्प रहता है तो ये लोग भी ठीक काम करेंगे
५. और आखिरी बात, जब लड़कियों से मिलने बाहर से कोई आता है तो उसे खड़ा होके ऐसे ही बात करनी पड़ती है इसलिए हम एक शेड डलवा देंगे गेट के पास की लोग वहां छांव में बैठ के आराम से बातें करें”

फिर इन्होने साफ़ साफ़ कहा की, “हम किसी पार्टी का समर्थन नहीं ले रहे हैं क्योंकि किसी भी पार्टी की पार्टी लाइन और कार्य शैली मुझे पसंद नहीं है, सब महिला विरोधी हैं|” ये बात सुन के सब और प्रभावित हो गये कि अब जाके सही कैंडिडेट मिला है|

मुझे लगा सही है, इतना सब हो जाये तो बहुत बड़ी बात है| डब्लू एच में तो पत्ता भी नहीं हिलता| मैंने और मेरी फ्रेंड्स ने उस दिन की जनरल हॉउस में जोरदारी से इनके पक्ष में बातें रखीं| इन्होंने भी अपने वादे गिनाये| मैंने उसदिन लड़कियों की आँखों में और चेहरे पर एक चमक देखी थी| वो एक उम्मीद की चमक थी| ऐसा लग रहा था इन्हे भरोसा हो गया था की ये बदलाव ला सकती हैं| और ये पांच वादे पूरे हो जाएं तो बहुत सुविधा हो जाएगी| पार्टियों की महिला विरोधी कार्य शैली की निंदा तो और गजब की बात लगी|

छोटी छोटी बी ए फर्स्ट इयर, सेकेंड इयर, थर्ड इयर की लडकियां बड़े ही उत्साह से मेहनत करके पोस्टर बनाती थीं, चुनाव प्रचार के नए नए आइडिया लेके आती थीं, बड़े उत्साह से बोलती थीं, ‘दीदी, ऐसे करेंगे तो और इफेक्टिव होगा प्रचार, वैसे करेंगे तो और इफ़ेक्ट पड़ेगा’ इत्यादि| सबने गजब की मेहनत की| और जिसदिन जीत हुई उस दिन सारा डब्लू एच कैंपस में था| सब इतने खुश थे जैसे लग रहा था अब सब कुछ बदल जाने वाला है…

साल निकल गए…न तो लाइब्रेरी बनी; न तो मेस subsidise हुआ; न ही कोई दुकान खुली; न ही कोई कंप्यूटर लाइब्रेरी बनी; ना ही गेट पे एक टुच्चा करकट लग पाया|

और ये पार्टी का समर्थन न लेने वाली बात – क्योंकि ये महिला विरोधी बातें करते हैं, महिलाओ के, बच्चियों के खिलाफ इतनी हिंसक घटनाये घटने पर भी कुछ नहीं करते – इस बात से तो गजब का पलटा खाया| लोग सबसे ज़्यादा इसी से प्रभावित थे ये किसी भाजपा और सपा या किसीभी पार्टी का झंडा नहीं ओढ़े थीं| अब ऐसा मुखौटा उतारा की वो असली चेहरा देखने का मन नहीं कर रहा है| इन्होने कहा था की अन्नू, “हम आदित्य नाथ का विरोध इसलिए कर रहे क्योंकि ये महिला विरोधी बातें करता है|”

मै ये नहीं कहना चाहती की सपा पार्टी के धुरन्दरों ने महिलाओ के खिलाफ क्या क्या बोला है| मैं ये नहीं बताना चाहती की सपा पार्टी की सरकार लड़कियों के खिलाफ इतनी जघन्य अपराधों के होने के बावजूद उस पे कैसे लीपा पोती करती है| मैं ये भी याद नहीं दिलाना चाहती की सत्ता में आने के बाद से सपा सरकार ने कितनी vacancy क्लियर की हैं| मैं ये भी याद नहीं दिलाना चाहती की खुद सपा पार्टी के अन्दर कितनी लोकतान्त्रिक व्यवस्था है| मैं कुछ याद नहीं दिलाना चाहती क्योंकि मुझे पता है की उन्हें ये सब पता है| पर ये स्वार्थ इतना ज़्यादा हावी हो जाता है की आप उन छोटे छोटे इलाहाबाद के लड़के लड़कियों की आँखों को भूल गये जिन्होंने आपकी बातों पर भरोसा किया था| एक वाई फाई लगवाने का श्रेय वो लेते फिर रही है, वो भी सेंट्रल गवर्नमेंट की योजना है जो की लग तो गया है लेकिन चलता नहीं है|

खैर, आज बहुत सारे लोगों में निराशा है की शायद अब वो किसी क्रांति की बात करने वाले पर भरोसा न कर सकें| छोटे छोटे स्टूडेंट्स अब ये कहते फिर रहे है की अरे सब अवसरवादी होते है, सब झूठे हैं| उनकी आँखों में एक आक्रोश और अवसाद दिखाई दे रहा है और वो आक्रोश छले जाने का है| यार, इतनी भी क्या जल्दी थी | कुछ दिन तो टिक जाते अपने प्रच्छन्न विचारों पे, कुछ दिन तो संघर्ष की झूठी लौ जला के रखते, कुछ वादे तो पूरे कर लेते| इतनी जल्दी इतना आसान रास्ता क्यों चुन लिया?

लेकिन एक तरह से अच्छा ही है| झूठी बातें, झूठे वादे, झूठे आदर्श सब जल्दी सामने आ जाएं तो ज्यादा अच्छा है| कमसे कम हम ये तो समझ जायेंगे की हमारी विचारों की पूजा से ज्यादा तुरंत ही व्यक्ति की पूजा करने की आदत हमारे आलोचनात्मक विश्लेषण करने की क्षमता को समाप्त कर देती है| और इसी वजह से एक इंसान अपनी झूठी इमेज को इतना कैश कराने लगता है की वो भूल जाता है की वो करने क्या आया था| वो नेता, वो सभी काम करने लगता है जिसका कभी खुद उसी ने विरोध करके लोगों के बीच में अपनी छवि बनायीं थी|

मैं कहना चाहती हूँ इलाहाबाद के उन सभी छात्र छात्राओं से की छले जाने जैसा महसूस होने के बाद भी निराश होने की जरूरत नहीं है| अरब स्प्रिंग जब तानाशाही देशों में हो सकता है तो यहाँ भी कभी न कभी होगी जब लोग झूठे आदर्शों को बेच के अपने छोटे छोटे स्वार्थ पूरा करने में नहीं लग जा रहे होंगे, बल्कि सच में उजाला लायेंगे|

Take campus conversations to the next level. Become a YKA Campus Correspondent today! Sign up here.

You can also subscribe to the Campus Watch Newsletter, here.

Exit mobile version