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दिल्ली तो दूर है: 14 साल से ये ज़ांबाज़ महिला पत्रकार ला रही हैं यूपी के हर कोने से खबर

सिद्धार्थ भट्ट:

हिंदी और क्षेत्रीय पत्रकारिता में अपनी अलग पहचान बना चुके साप्ताहिक समाचार पत्र ‘खबर लहरिया’ नें अपने १४ वर्ष पूरे कर लिए हैं। उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिले के करवी कसबे में २००२ से शुरू हुआ यह अनूठा प्रयोग अब उत्तर और मध्य भारत के ग्रामीण इलाकों में अच्छी पकड़ बना चुका है। वर्तमान में यह चित्रकूट के अलावा बांदा, महोबा, बनारस, और फैज़ाबाद से भी प्रकाशित हो रहा है।

उत्तर और मध्य भारत के ग्रामीण इलाकों की महिलाओं के मुद्दों पर केंद्रित ख़बरों को सामने लाने के प्रयास से शुरू हुआ यह समाचार पत्र, अब क्षेत्र के कई अन्य मुद्दों को भी सामने लेकर आ रहा है जिनमे क्षेत्रीय प्रशाशन, शिक्षा और विकास आदि प्रमुख हैं। यह समाचार पत्र, उसी क्षेत्र की ४० महिलाओं के एक संगठन द्वारा चलाया जाता है, जो खबरों को चुनने से लेकर संपादन, फोटोग्राफी, समाचार पत्र के स्वरुप के निर्धारण और प्रकाशन तक सभी जिम्मेदारियां संभालती हैं।

हिंदी के अलावा प्रमुखतया क्षेत्रीय भाषाओं बुंदेली, अवधी, और भोजपुरी में प्रकाशित होने वाला यह साप्ताहिक पत्र अपनी भाषायी पहुँच और विषयों में विविधता के कारण अन्य समाचार पत्रों से अलग दिखाई देता है। ८ पन्नों के इस साप्ताहिक समाचार पत्र की उत्तर प्रदेश और बिहार के ६०० गावों में ६००० प्रतियां प्रकाशित होती हैं। करीब ८०००० पाठकों तक पहुँच रखनें वाले समाचार पत्र ‘ख़बर लहरिया’ को महिला पत्रकारिता के क्षेत्र में ‘चमेली देवी जैन पुरस्कार’ और ‘यूनेस्को किंग सेजोंग’ जैसे पुस्कार मिल चुके हैं साथ ही साथ यह पत्र इंटरनेट पर भी अपनी उपस्थिति मजबूती से दर्ज करा चुका है।

आज के समय में जब मीडिया और पत्रकारिता के क्षेत्र में तड़क भड़क और मसालेदार ख़बरों को प्रमुखता दी जा रही है, ऐसे में जमीनी स्तर पर काम करने वाले इस प्रकार के संगठनों का महत्व काफी बढ़ जाता है। पिछले कुछ समय में रोजगार के अवसरों की तलाश में ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की ओर पलायन बढ़ा है। लेकिन अब भी भारत की आबादी का सबसे बड़ा हिस्सा जो कि ६७% से अधिक है, ग्रामीण क्षेत्रों में ही रह रहा है। ऐसे में इन क्षेत्रों के मुद्दों को पत्रकारिता के माध्यम से सामने लाने का प्रयास प्रशंशनीय है।

इसी कड़ी में लेख के साथ में जुड़ा यह वीडियो भी, ‘खबर लहरिया’ के काम की प्रेरणा को, अपना अनूठापन बरक़रार रखते हुए सामने रखता है। इस वीडियो से स्पष्ट सन्देश मिलता है कि किस प्रकार, शहरी क्षेत्रों द्वारा गांव-देहातों की उपेक्षा की जा रही है। देश के विभिन्न ग्रामीण और आंचलिक क्षेत्रो के संसाधनों का दोहन कर आधुनिक शहरों के वर्तमान स्वरुप का निर्माण हुआ है, यह बात याद रखी जानी चाहिए। साथ ही आज हमें, समाज के बने बनाए ढर्रों और परम्परागत तरीकों से अलग कुछ करने की इच्छाशक्ति रखने वाले ‘खबर लहरिया’ जैसे और संगठनों की जरुरत है, ताकि शहरों और गावों के बीच के बढ़ते इस अंतर को कम किया जा सके।

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