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यू पी के ये ज़बरदस्त आई.ए.एस. अफसर स्मार्टफोन के प्रयोग से ला रहे हैं सामाजिक बदलाव

प्रज्वला हेगड़े यूथ की आवाज़ के लिए:

Translated from English to Hindi by Sidharth Bhatt.

उत्तर प्रदेश में युवा आई.ए.एस. अफसरों की एक नयी पीढ़ी उभर कर सामने आई है, जो बदलाव के लिए स्मार्टफोन जैसी तकनीक का उपयोग अपने रोजमर्रा के प्रशासनिक काम और जनता तक पहुँचने के लिए कर रही है।

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के द्वारा पिछले वर्ष शुरू किये गए उनके प्रिय ‘डिजिटल इंडिया’ अभियान के बाद, नयी तकनीक को विभिन्न क्षेत्रों में इस्तेमाल करने की पहल करने का इससे बेहतर समय नहीं हो सकता था। यह अभियान सभी सरकारी सेवाओं की डिजिटल उपलब्धता, उनकी ग्रामीण इलाकों में पहुँच पर केंद्रित है, साथ ही सार्वजनिक स्थलों पर आम जनता के लिए इंटरनेट की सुविधा के इंतज़ाम के द्वारा देश के ‘डिजिटल सशक्तिकरण’ पर जोर देता है।

पिछले वर्ष अक्टूबर माह तक, भारत में ६८.३ लाख नए मोबाइल उपभोक्ता और जुड़ गए, इस प्रकार भारत में मोबाइल उपभोक्ताओं की संख्या कुल एक अरब से ऊपर पहुँच चुकी है।

भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण (टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया) के अनुसार २०१५ के आरम्भ से अब तक कुल ६ करोड़ नए मोबाइल उपभोक्ता जुड़े है, अर्थात ६० लाख प्रति माह की औसत दर से मोबाइल उपभोक्ता बढ़ रहे हैं।

मोबाइल हैंडसेट बनाने वाली कंपनियां, किफायती हैंडसेट बनाने पर अधिक ध्यान दे रही हैं, जिस कारण इंटरनेट की सुविधा वाले मोबाइल/स्मार्टफोन के दाम काफी घट चुके हैं।

इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया की, ‘मोबाइल इंटरनेट इन इंडिया २०१५’ नामक रिपोर्ट के अनुसार, भारत के ग्रामीण इलाकों में मोबाइल पर इंटरनेट का प्रयोग करने वालों की संख्या में करीब ९३% की बढ़ोतरी हुई है। दिसंबर २०१४ से दिसंबर २०१५ के बीच इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों की संख्या में ८.७ करोड़ लोग और जुड़े हैं।

सफाई का स्मार्ट तरीका:

बंगलुरु की सिलिकॉन वैली में ए.एम.डी. और नेट एप्प्स जैसी कंपनियों में ७ वर्ष से भी अधिक समय तक काम कर चुके, २००९ बैच के आई.ए.एस. अफसर, विजय करन आनंद, कुछ उन चुनिंदा अफसरों में से हैं, जो तकनीक का इस्तेमाल अपने रोज के काम में कर रहे हैं।

शाहजहांपुर में कार्यरत आनंद ने चूड़ियों के निर्माण के लिए प्रसिद्द फ़िरोज़ाबाद में, अपने जिला मजिस्ट्रेट के कार्यकाल के दौरान एक मोबाइल एप्प विकसित किया। जिसका प्रयोग, जिले में सफाई, शिक्षा और सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम) को सुधारने के लिए किया जा रहा है।

आनंद एक चार्टेड अकाउंटेंट, प्रशासनिक अधिकारी हैं, जो मानते हैं कि तकनीक के प्रयोग से लोगों के जीवन स्तर को उठाया जा सकता है।

अगस्त २०१४ में उन्होंने ‘क्लीन एंड ग्रीन फ़िरोज़ाबाद’ नामक अभियान की शुरुवात की, जो कि प्रधानमंत्री जी के स्वच्छ भारत अभियान से काफी पहले की बात है। यह एक ऐसा मॉडल है जो सफाई के लिए सफाई कर्मचारी की जिम्मेदारी को तय करता है।

आनन्द बताते हैं कि, “हमारे यहाँ पर एक कंट्रोल रूम है, और कचरे के निस्तारण के लिए बनाए गए सिस्टम में १३१९ चेकपॉइंट निर्धारित किये गए हैं, जहाँ कचरा उठाने, सड़कों की सफाई, और सार्वजनिक शौचालयों की सफाई पर नजर रखी जाती है। यह प्रणाली जी.पी.एस. (ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम) की सहायता से नगर निगम के कचरा ढोने वाले वाहनों पर भी नजर रखती है।”

गूगल प्ले स्टोर पर इस एप्प का विवरण “फॉर कनेक्टिंग दि रेसिडेंट्स ऑफ़ फ़िरोज़ाबाद टू दि नगर निगम एंड सीकिंग सिटीजन पार्टिसिपेशन इन कीपिंग फ़िरोज़ाबाद क्लीन अंडर ‘क्लीन, ग्रीन एंड हेल्थी यू पी’ प्रोग्राम” के रूप में आता है।

तकनीक का उपयोग प्रशासन को सुचारु रूप से चलाने में सहायक होता है। यह जनता को कचरे के ढेर, जल आपूर्ति, और सड़कों पर रौशनी, लावारिस वाहनों, और आवारा जानवरों जैसे मुद्दों को फोटोग्राफ के द्वारा सामने लाने में सहायता करती है।

इस एप्प की सफलता के मुख्य कारक विभिन्न लोगों के लिए तय की गयी जिम्मेदारी, और शिकायतों पर होने वाली त्वरित कारवाही हैं।

इस एप्प के आने के २ वर्ष बाद आनंद बताते है कि, “शुरू में तकनीक के प्रयोग को लेकर निगम के कर्मचारी सहज नहीं थे, किन्तु जैसे ही इसकी सरलता उनके समझ में आई, सभी ने इसे ख़ुशी-ख़ुशी अपनाया, और आज नतीजे काफी उत्साहजनक हैं।”


“सुपरवाइजर हमें शहर के १८०० जिओ लोकेशन पॉइंट्स से रोजाना सफाई की जानकारी देते हैं। कंट्रोल रूम में रियल टाइम में ये जानकारी अपडेट होती है और म्युनिसिपल कमिशनर के कार्यालय मे लगी स्क्रीन पर दिखाई देती है।”
सैनिटेशन इंस्पेक्टर, सुपरवाइजर के काम पर नजर रखते हैं, जो अपने-अपने क्षेत्र में सफाई कर्मचारियों के दैनिक कार्य को निर्धारित करते हैं।

महेश कुमार जो कि एक सैनिटेशन इंस्पेक्टर हैं, कहते हैं, ” इस एप्प को इस्तेमाल करना काफी आसान है, और हमारे सारे सुपरवाइजरों को इसके लिए ट्रेनिंग भी दी गयी है, जिसमे २ से ३ दिन का समय लगता है।” हर १५ सुपरवाइजर के ऊपर एक सैनिटेशन इंस्पेक्टर होता है जो किसी दिन सुपरवाइजर के छुट्टी पर होने कि स्थिति में उसके काम को भी देखता है।

२८ वर्षीय सुपरवाइजर मजीद खान बताते हैं, ” इस एप्प का सबसे बड़ा फायदा हमारे काम में पारदर्शिता लाने में मिला। हम लोग सुबह ७ बजे से दोपहर २ बजे तक काम करते हैं, इस एप्प के आने से पहले २ बजे के बाद कोई भी सड़कों पर कचरा फैला देता था और इसकी शिकायत हमारे काम ना करने के रूप में की जाती थी। लेकिन अब हमारे काम का सुबूत एप्प पर रियल टाइम में डाली गयी फोटो से मिल जाता है, जिस पर समय भी दिखता है।”

आनंद कहते हैं कि एप्प के आने के बाद से सुपरवाइजर, इंस्पेक्टर और सफाई कर्मचारियों के व्यवहार में काफी सकारात्मक परिवर्तन आया है। साथ ही इस प्रणाली की मदद से निगम के कचरा ढोने वाले वाहनों पर प्रतिदिन खर्च होने वाले डीजल की मात्रा भी, कम हुए फेरों के कारण २००० लीटर प्रति दिन से ८०० लीटर प्रति दिन तक घट गयी है।

आनंद कहते हैं कि, ” वैसे तो फ़िरोज़ाबाद में स्मार्टफोन का इस्तेमाल करने वाले लोगों की संख्या राष्ट्रीय औसत से कम है, ऐसे में लोगों का इस तकनीक को अपनाना काफी उत्साह बढ़ाने वाला है।” इस लेख को लिखे जाने के समय तक गूगल प्ले से करीब १००० लोग इस एप्प को डाउनलोड कर चुके थे।”

शिक्षा के क्षेत्र में तकनीक का प्रयोग:

शहर में सफाई की स्थिति को बेहतर करने के अलावा, आनंद शिक्षा के क्षेत्र में भी तकनीक का प्रयोग कर रहे हैं। उनके द्वारा शुरू किया गया ‘शिक्षाग्रह अभियान’ तकनीक के इस्तेमाल से शिक्षकों की जिम्मेदारी तय करता है और विद्यार्थियों के प्रदर्शन पर नजर रखता है।

आनंद ने मई २०१५ में पहली से आठवीं कक्षा के बीच के छात्रों पर एक आधारभूत अध्ययन किया। इसमें विद्यार्थियों को उनके अंकों के आधार पर ऐ, बी, सी, और डी, चार श्रेणियों में बांटा गया। उनके अंकों को क्लाउड कंप्यूटिंग पर आधारित एक प्लेटफार्म पर अपलोड किया गया जिसे आनंद एक “मजबूत रिपोर्टिंग प्रणाली” मानते हैं।

वो कहते हैं, “हमने शिक्षकों को नियमित रूप से तिमाही परीक्षा करवाने के निर्देश दिए और विद्यार्थियों का प्रदर्शन ना सुधरने की स्थिति में उचित कारवाही करने की बात कही जो पदावनति, वेतन में होने वाली वृद्धि पर रोक, या निलम्बन हो सकता है।” यह तय करने के लिए कि इस प्रणाली में कोई छेड़-छाड या गड़बड़ी ना हो, एक स्वतंत्र निरीक्षक की उपस्थिति में विद्यार्थियों के अंक अपलोड किये जाते हैं।

अध्यापकों के शिक्षण, नित्य डायरी लिखने, कक्षा में अनुशासन बनाए रखने पर व्यापक प्रशिक्षण देने के बाद, अगस्त २०१५ में विद्यार्थियों के नतीजों की पहली समीक्षा की गयी। इन नतीजों को रियल टाइम में इस प्रणाली में डाला गया ताकि विद्यार्थियों के प्रदर्शन में सुधार हुआ है या नहीं, यह देखा जा सके।

आनंद आगे बताते है कि, “नतीजे काफी उत्साहजनक थे, और इस तकनीक को बाद में उच्चतर माध्यमिक (इंटरमीडिएट) विद्यालयों में भी प्रयोग किया गया।”

आनंद कहते हैं कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम) या पी.डी.एस. में होने वाले भ्रष्टाचार से सबसे ज्यादा गरीब तबका प्रभावित होता है।

इंडियन कॉउन्सिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकनोमिक रिलेशन्स की जनवरी २०१५ में आई एक रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान प्रणाली दोषपूर्ण है, जिससे खाद्यान्न का एक बड़ा हिस्सा (४०% से ५०%) खुले बाजारों में चला जाता है।

इस समस्या पर काम करते हुए आनंद ने सितम्बर २०१५ में ई-राशन सेवा प्रोजेक्ट की शुरुवात की, जिसका लक्ष्य खाद्यान्न वितरण को स्वचालित बनाना और सरकारी सस्ते गल्ले की दुकानों का लेखा-जोखा रखना था। यह योजना आधार नंबर और उँगलियों के निशान के द्वारा फ़र्ज़ी लाभार्थियों की पहचान कर उन्हें अलग करने पर भी केंद्रित है।

यह प्रणाली लाभार्थियों को बीजक (इनवॉइस) देने के साथ-साथ रियल टाइम में उनकी जानकारी को भी अपडेट करती है। पंजीकृत लाभार्थियों को एसएमएस द्वारा राशन विक्रेता के पास राशन की उपलब्धता और दरों की जानकारी भी भेजी जाती है। वहीं राशन विक्रेताओं को एक टेबलेट कंप्यूटर के द्वारा, वितरण, भण्डारण, खातों की जानकारी और अन्य जरुरी जानकारियां मिल जाती हैं।

आनंद दावा करते हैं कि इस प्रणाली से आपूर्ति श्रृंखला और खुदरा वितरण की खामियों को दूर किया जा सकता है।

एक एप्प जो बच्चों के विकास पर नज़र रखता है:

३२ वर्षीय आई.ए.एस. अधिकारी सुहास एल.वाय. कर्नाटक राज्य के शिमोगा से हैं। २००७ में आई.ए.एस. में

सुहास एल.वाय.

चुने जाने से पूर्व एन.आई.टी. सूरतकल से पढ़े सुहास बंगलुरु में एस.ए.पी. लैब्स में सॉफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में कार्यरत थे।

आज़मगढ़ के कलेक्टर सुहास को किताबें बहुत पसंद है और तकनीक में उनकी काफी रूचि है। वो अपने क्षेत्र में कुपोषण, जो कि उत्तर प्रदेश की प्रमुख समस्याओं में से एक है, से लड़ने के लिए तकनीक का उपयोग कर रहे हैं।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, देश में ५ वर्ष से कम आयु के बच्चों में ३६% कुपोषण के शिकार हैं। उत्तर प्रदेश में यह आंकड़ा ४०% है, जो कि राष्ट्रीय औसत से भी ज्यादा है।

२०१५ में सुहास के कार्यभार संभालने के समय उत्तर प्रदेश में कुपोषण की समस्या से निपटने के लिए ‘स्टेट न्युट्रिशन मिशन (राज्य पोषण अभियान)’ पहले से ही चलाया जा रहा था। इसी अभियान को आधार बनाकर सुहास ‘वेट एट ए ग्लांस’ नाम के एक एप्प को सामने लेकर आये।

सुहास बताते हैं कि, “इस एप्प के द्वारा कोई भी आंगनवाड़ी कार्यकर्त्ता बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास पर नजर रख सकता है, और विश्व स्वास्थ्य संगठन (वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाईजेशन) के मानकों के आधार पर कोई बच्चा कुपोषित है या नहीं, ये भी पता लगा सकता है।”

इस एप्प के आने से पहले आंगनवाड़ी कार्यकर्त्ताओं को बच्चों के निरिक्षण के लिए एक लम्बी प्रक्रिया को अपनाना पड़ता था, जिसमे एक १०० पृष्ठों के विकास चार्ट द्वारा पोषण के स्तर का पता लगाया जाता था।

आई.सी.डी.एस. (इंटीग्रेटेड चाइल्ड डेवेलपमेंट सर्विसेज) के एक अधिकारी सेराज अहमद, विकास चार्ट के एक छोटे प्रारूप को लेकर आये। मार्च २०१५ में, इसे डिजिटली एक एप्प में बदला गया और ‘कुपोषण का दर्पण’ नाम दिया गया।

हालांकि अभी तक इस एप्प को ५०० से कुछ अधिक लोगों ने ही डाउनलोड किया है, लेकिन सुहास का मानना है कि इसे और लोग भी इस्तेमाल करना शुरू करेंगे।

सुहास कहते हैं कि, ” इस एप्प को इस्तेमाल करना बेहद आसान है, आपको करना केवल यह है कि, इसमें बच्चे के लिंग और आयु की जानकारी डाल दें और यह आपको विभिन्न आयु वर्गों के आधार पर टीकाकरण और उचित आहार की जानकारी दे देगा।”

एक बार डाउनलोड करने के बाद इस एप्प को चलने के लिए इंटरनेट की भी आवश्यकता नहीं पड़ती। यह हिंदी भाषा में भी उपलब्द्ध है। इस एप्प की सफलता से उत्साहित आई.सी.डी.एस. ने आज़मगढ़ के सभी ५५८८ आंगनवाड़ी कार्यकर्त्ताओं को स्मार्टफोन उपलब्ध कराने का प्रस्ताव रखा है।

आज़मगढ़ के पलहनी सरकारी स्वास्थ्य केंद्र के प्रमुख डॉ. रवि पांडे का मानना है कि इस तरह की तकनीक, जन स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण कदम है। जहां एक तरफ सुहास आज़मगढ़ में कुपोषण की समस्या से निपटने के लिए प्रयासरत हैं, वहीँ उनकी पत्नी ऋतु भी ‘प्रेगनेंसी का दर्पण’ नामक एप्प को सामने लेकर आई हैं, जो गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य पर नज़र रखने में सहायक है।

एक कदम, गर्भवती महिलाओं के लिए:

आज़मगढ़ के निवासी सतीश कुमार कहते हैं, ” कई बार जागरूकता की कमी की वजह से गर्भावस्था के दौरान कुछ मत्वपूर्ण फैसलों को लेने में चूक हो जाती है, ऐसे में ‘प्रेगनेंसी का दर्पण’ जैसा साधारण और सरल एप्प काफी फायदेमंद साबित हो सकता है।”

ऋतु कहती हैं, ” ‘प्रेगनेंसी का दर्पण’ दूर दराज के इलाकों की महिलाओं, जिन्हे डॉक्टर के पास ना जा पाने जैसी कई सामाजिक बंदिशों का भी सामना करना पड़ता है, को एक मनोवैज्ञानिक सहारा भी देता है। यह एप्प उन्हें एक ऐसी सूची उपलब्ध कराता है, जिससे वो भ्रूण के विकास, ऐसे मेडिकल टेस्ट जो आनुवांशिक दोष से बचाने में सहायक हैं, जरुरी आहार, क्षेत्रीय स्तर पर उनके विकल्प, और प्रसव के लक्षण जैसी महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त कर सकें।”

आज़मगढ़ के लालगंज इलाके में एक क्लिनिक चलाने वाले डॉ. अभिषेक पांडे बताते हैं कि, ” पढ़ने लिखने की साधारण जानकारी रखने वाला कोई भी व्यक्ति इस एप्प का प्रयोग कर सकता है। यह एप्प गर्भावस्था की चरणबद्ध जानकारी प्रदान करता है। यह हर चरण के आरम्भ होने की जानकारी देता हैं और डॉक्टर को संपर्क करने का समय भी बतलाता है।”

यह एप्प मुफ्त में डाउनलोड किया जा सकता है और २-३ भाषाओँ में उपलब्ध है। यह आस-पास के क्षेत्रों के डॉक्टरों की जानकारी भी देता है, और इस एप्प के धारक को गर्भावस्था के प्रारंभिक चरण में डॉक्टर के शुल्क में भी छूट मिलती है।

इस प्रकार की पहल को अभी से सफल कहा जाना शायद जल्दबाज़ी हो, लेकिन ये पहल सही दिशा में जाती दिखती है। केवल समय ही बताएगा कि डिजिटल भारत, एक सशक्त भारत भी होगा या नहीं।

Read the English article here.

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