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सोशल मीडिया, लाइव प्रसारण, और हमारे निजी जीवन पर कब्ज़ा करती तकनीक

अमोल रंजन:

वरुन धवन और आलिया भट्ट, मुम्बई मेट्रो में

११ मई को न्यूयॉर्क टाइम्स की वेबसाइट में प्रकाशित खबर के अनुसार पेरिस से २५ मील दूर, एक चलती ट्रेन के आगे कूदकर एक १९ वर्षीया लड़की ने अपनी जान दे दी। ये एक हादसा और खबर तो है ही, पर इस खबर ने लोगों का ध्यान इसलिए भी खींचा क्यूंकि वो अपनी आत्महत्या का सीधा प्रसारण इन्टरनेट प्लेटफार्म ‘पेरिस्कोप’ से कर रही थी। इसका आँखों देखा हाल देखने वाले लोगों ने इसकी पुष्टि की, फिर इसका एडिट किया हुआ विडियो इन्टरनेट पर वायरल भी हुआ।

अमेरिका के ओहायो शहर में कुछ स्कूल के दोस्तों में से एक युवक ने एक लड़की का रेप किया और उनके ही एक साथी ने अपने मोबाइल से विडियो बनाया और उसको दुनिया के लिए लाइव भी कर दिया। यह लाइव कवरेज दुनिया में कोई भी इन्टरनेट से जुड़ा व्यक्ति देख सकता था, मैं भी और आप भी। मेलवौकी शहर में ही कुछ युवकों ने खुद का सेक्स करते हुए एक विडियो बनाया और उसे फेसबुक पर प्रसारित किया।

महाराष्ट्र के सूखा प्रभावित बीड जिले के एक गाँव में ४० वर्षीया सत्याभाना कुएं के अंदर घुसकर पानी निकालने की प्रक्रिया में फिसल कर मर गयी, वो दिन दूर नहीं जब ऐसी घटनाओं का भी सीधा प्रसारण संभव हो जायेगा। लेकिन मौत के सीधे प्रसारण की भीड़ में ये विडियो उस समय कितना ट्रेंडिंग होगा, वो किसी पार्टी के हैश टैग कार्यकर्ताओं के उस दिन की प्रमुखताओं पर निर्भर होगा।

डिजिटल इंडिया अभियान में लगने जा रहे ४.५ लाख करोड़ पैसे इस तरह की घटनाओं को सच जरूर बना देंगी। तब किसी ओ.वी. वैन की जरूरत नहीं पड़ेगी। आजकल विज्ञापन में आने वाले एयरटेल की फोर-जी स्पीड और फेसबुक लाइव काफी होगा। जिनके भी हाथों में स्मार्ट फ़ोन होगा वो सभी रिपोर्टर होंगे और ब्रॉडकास्टर भी। न्यूज़ कंपनिया ऐसे स्थानीय लोगों को रिक्रूट कर लेंगी जो इसमें ज्यादा एक्टिव होंगे और उनके हिसाब से काम करने को तैयार होंगे। इन्टरनेट पर कंटेंट की बाढ़ में ज्यादा से ज्यादा स्मार्ट सर्च इंजनों के एप्प के बीच प्रतिस्पर्धा होगी।

सोचिये स्मार्ट सिटी अभियान के तहत शहर के सारे सी सी टीवी कैमरों को भी सोशल मीडिया लाइव से जोड़ दिया जाये तो क्या होगा। पुलिस के अलावा आम जनता भी शहर की निगरानी रखने लगेगी कि किस कोने में क्या हो रहा है; तब वो सिर्फ सी सी ( टीवी नहीं ) कैमरा कहलायेगा और उस पर साइड में विज्ञापन भी आयेंगे। कोई भी ऑनलाइन अकाउंट खोलने के लिए आधार कार्ड जरूरी होगा, ताकि जब कोई अपराध करे तो उसकी पहचान होते ही उसके सारे सोशल मीडिया अकाउंट को हैक कर उसके सारे संपर्क तोड़ दिए जाएँ। लेकिन तब सिस्टम को हैक करना कोई बहुत बड़ी बात नहीं होगी, जिसके ना करने से आप कभी व्यवस्था को चुनौती दे ही नहीं पाएंगे। आगे शायद हॉलीवुड फिल्म ट्रूमैन शो और हंगर गेम्स की तरह रियलिटी टीवी लाइव तो दिखेगा ही पर वो एक लाइव विडियो गेम भी होगा; जिसमें लोगों को खेलने और उसको देखने दोनों की इजाज़त होगी। दरअसल पूरी दुनिया धीरे धीरे बहुत सारे लाइव विडियो गेम्स में बंटेगी और वो आपकी असल जिंदगी का हिस्सा होंगी।

लाइव प्रसारण हमारे जिंदगी का नया हिस्सा नहीं है, वास्तविकता में आकर पढने पर पता चलता है कि टीवी आने के शुरूआती दिनों में रिकार्डेड कार्यक्रम से ज्यादा लाइव टीवी ही होता था। क्योंकि तब तक रिकॉर्ड करने के सस्ते माध्यम जैसे विडियो टेप जैसी चीज़ नहीं आई थी, जो श्रीमान गूगल बताते हैं कि १९५७ में आया। फिर रिकार्डेड प्रोग्रामों की ही संख्या बढ़ी क्योंकि उसको अपने हिसाब से स्क्रिप्ट और एडिट करने का समय मिल जाता था। आँखों देखा ताज़ा हाल लेने के लिए ही लाइव जाने की जरूरत पड़ी और टीवी के किसी कोने में LIVE लिख कर आने लगा, जैसे कोई समारोह, खेल या दुर्घटना स्थल से ताज़ा जानकारी।

समय के साथ टेक्नोलॉजी में बदलाव आया और आज सिर्फ एक मोबाइल फ़ोन और इन्टरनेट कनेक्शन से लोग पूरी दुनिया से जुड़ सकते हैं। यह लोगों के बीच एक इंटिमेसी और सॉलिडेरिटी का माध्यम भी बनी है। ऑनलाइन समुदाय भी आज एक सच्चाई है, बिज़नेस, राजनीति, मनोरंजन और संचार को इसने नए आयाम दिए हैं। लोग रियल टाइम में सारी चीज़ें डॉक्यूमेंट कर रहे हैं और शेयर भी। पर इनफार्मेशन के उपभोग के दौर में, ब्रेकिंग कब ट्रेंडिंग बन जाता है पता नहीं चलता है। चीज़ों को करने की तेज़ी बढ़ी है, और ऐसा करना अब लोगों की जरूरत बनती जा रही है। प्रचारकों को अपने उत्पाद बेचने की नयी जगह मिली, जिससे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स फल-फूल रहा है। वे भी चाहते हैं की लोग ज्यादा से ज्यादा ऑनलाइन जुड़े रहें, ताकि टारगेट उपभोक्ता मिल सके।

ये लिखते लिखते अभी पता चला कि कैलिफ़ोर्निया के हॉस्पिटल से एक बच्चे के जन्म का फेसबुक लाइव से सीधा प्रसारण हुआ और इसको करीब दो लाख लोगों ने देखा। पहले लोग निजी तौर पर लोगों से विडियो पर बात करते थे, पर खुद को सोशल मीडिया पर लाइव ब्रॉडकास्ट कर देना एक नए दौर की शुरुआत जैसा लग रहा है। बच्चे के जन्म को लोगों ने बड़े चाव से देखा पर किसी की आत्महत्या, हत्या, रेप और हिंसा को सोशल मीडिया के माध्यम से प्रसारित करना उसका खतरनाक और अचंभित कर देने वाला आयाम है। हालाँकि सोशल मीडिया कम्पनीज की तरफ से कमेंट आया है, कि वे ऐसी चीज़ों को रिपोर्ट करने के बाद आगे ब्लाक कर देंगे, लेकिन रियल टाइम ये करना कितना आसान होगा पता नहीं। इन्टरनेट और डिजिटल दुनिया एक अलग ही अनुभव प्रस्तुत कर रही है। मीडिया और जिंदगी दोनों एक दुसरे में ऐसे घुस गए हैं, कि दोनों एक दुसरे के पूरक नज़र आ रहे हैं। आज मीडिया में लोग पैदा हो रहे हैं और मीडिया में ही मर रहे हैं। मीडिया और टेक्नोलॉजी का ये नया वातावरण काफी कल्पनाओं और सवालों को पैदा कर रहा है; वो सवाल और कल्पनाएँ क्या क्या हैं इन पर सोचने की आवश्यकता है। फिलहाल इन्टरनेट की स्पीड सोचने की स्पीड को चुनौती दे रही है, और टेक्नोलॉजी हम पर हावी होती दिख रही है। इस पूरे मीडिया अनुभव में सही सवालों को सोचना और पूछना एक चुनौती का विषय बन चुका है।

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