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सैराट में ऐसा क्या है जो तुम्हें परेशान कर रहा है?

डॉ. पूजा त्रिपाठी:

सैराट के बारे में बहुत सुना, बहुत पढ़ा पर फिल्म के ख़त्म होने पर मैं निराश थी। मैं तो गयी थी “आखिर में जीत प्यार की ही होती है”, देखने और ये क्या फिल्म ने तो वही दिखा दिया जो इस देश के गाँव- खेड़ों, हुक्का-पानी वाली पंचायतों, वैवाहिकी वाले कॉलम और फेसबुक वाले शहरों में होता है।

एक बच्चा रो रहा है, उसके पैर खून से सने हैं और वह, निशान हम पर क्यूँ छोड़ कर जाता है? ऐसा क्या है उस बच्चे के रोने में जो हमें परेशान कर रहा है? क्यूँ हम शादी का कार्ड उठाकर सबसे पहले सरनेम देखते हैं और मुस्कुराते हुये कहते हैं, “इंटर कास्ट है”

अर्ची और पर्शिया की खून से लथपथ लाशें पड़ी हैं, कुछ देर पहले आये अपनों ने आशीर्वाद दे दिया है। पर उसमें ऐसा क्या है जो हमे परेशान कर रहा है? बिहार की राजधानी में डॉक्टरों के साथ बैठी हूँ, सिवान के कलेक्टर की बात चल रही है, चर्चा यह है कि वह यू.पी. का यादव है कि बिहार का। इतने में एक सज्जन जो खुद को सबसे बड़ा जानकार मानते हैं, वो घोषणा कर देते हैं कि बैकवर्ड वर्ग के लोगों को आसानी से सफलता मिल जाती है, और यहीं एक “संघर्ष से जन्मी सफलता” को हम फॉरवर्ड और बैकवर्ड के खांचों में डाल देते हैं। पर सैराट में ऐसा क्या है जो तुम्हें परेशान कर रहा है?

दलित लड़का है, पाटिल लड़की है। माँ बाप को लगता है लड़का पढ़ेगा लिखेगा तो हमें एक अच्छा जीवन देगा। लड़की के पिता उसे प्यार से बड़ा करते हैं। लड़की बुलेट चलाती है, हिम्मती है, किसी से डरती नहीं है, पर उसे ऐसा क्यूँ लगा कि इस आज़ादी की कोई लिमिट नहीं है। किसने कहा कि आज़ादी तुम्हारा हक है, प्यार करने की आज़ादी, सपने देखने की आज़ादी, अपना कल देखने की आज़ादी, ये कब मान लिया तुमने कि तुम्हें हर तरह की आज़ादी मिल गयी है। पर सैराट में ऐसा नया क्या है जो तुम्हें परेशान करता है?

दलित कविता पढ़ाते हुये टीचर को पाटिल लड़का इसीलिये थप्पड़ मार देता है, क्यूंकि उसने पूछ लिया कि तुम कौन हो? सीनियर पाटिल टीचर को घर बुलाता है ताकि उसे कभी दूसरा थप्पड़ ना पड़ जाये। पिता को कुछ गलत नहीं लगता, बेटे का नाम ही प्रिंस है। रॉकी यादव भी हो सकता था। महाराष्ट्र की कहानी है इसीलिए पाटिल है। पर सैराट में ऐसा क्या है जो तुम्हें बुरा लगता है?

अर्ची और पर्शिया पकड़े जाते हैं, लड़के के परिवार को गाँव से बाहर निकाल दिया जाता हैं, बहुत मार खाते हैं। किसी दलित की हिम्मत कैसे हुई पाटिल की लड़की से प्यार करने की। इसी देश में एक दलित छात्र आत्महत्या कर लेता है यह लिखकर कि उसकी सबसे बड़ी गलती जन्म लेना था। पर सैराट में ऐसा क्या है जो तुम्हें परेशान करता है?

वे पकड़े जाते हैं, दलित परिवार पुलिस के हवाले कर दिया जाता है, और वही पागल लड़की जिसने आज़ादी को सच समझ लिया था लड़ पड़ती है पिता से, पुलिस से, समाज से। उसे लगता है बहुत आसान है सदियों से पड़ी हुई बेड़ियों को तोडना। जहाँ चार चमाट मार कर घर की इज्ज़त बचा ली जाती है ,और अगर उसने इज्ज़त को ख़ाक में डाल ही दिया तो ख़त्म ही कर दो उसे। इसी देश के किसी कोने में, किसी शहर में सबक सिखाने का यह तरीका बिना जातिगत भेदभाव के हर दिन इस्तेमाल किया जा रहा है। शिष्ट भाषा में हम इसे “ऑनर किल्लिंग” कह देते हैं, पर यह तो हर गली मोहल्लों में हो रहा है। इज्ज़त बच जाती है, नाम ख़त्म हो जाते हैं, और फिल्म की तरह, एक कहानी भी। पर सैराट में ऐसा क्या है जो तुम्हें परेशान करता है?

और अंत में एक बात और- मैंने सैराट मराठी में देखी, मुझे मराठी नहीं आती फिर भी मुझे यह फिल्म झकझोर गयी। पता है क्यूँ- सैराट में ऐसा कुछ नया है ही नहीं जो तुम्हें परेशान करेगा। बस एक चेहरा है, जो घूरता है तुम्हारी आँखों में बेधड़क, बिना पलक झपकाये और वो आँखें परेशान करती हैं, फिल्म नहीं।

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