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कैसे मुझे ‘अंधी दौड़’ से बाहर आकर गाँव में मिली जीवन की असल प्रेरणा

ज्ञान प्रकाश:

Translated from English to Hindi by Sidharth Bhatt.

आज से एक साल पहले अगर कोई ये कहता कि केवल १६००० रुपये प्रति माह की आमदनी में मैं आराम से रह सकता हूँ तो उस वक़्त मुझे उस पर बड़ी हँसी आई होती। लेकिन पहाड़ों पर ऐसे लोगों के साथ रहकर, जो इच्छाओं की अंधी दौड़ में किसी भी तरह से हिस्सा नहीं लेना चाहते, मैंने यह जाना कि कितने कम साधनों में भी सन्तोषपूर्वक रहा जा सकता है।

इसकी शुरुवात तब हुई जब मैं एक कंपनी के सी.एस.आर. (कॉर्पोरेट शोसियल रिस्पांसिबिलिटी) में प्रोजेक्ट मैनेजर के पद पर काम कर रहा था। पहले एक साल तक मेरा काम कोलकाता के पास के १० गाँवों के १०० किसानों को जैविक कृषि के तरीकों को अपनाने के लिए राजी करना था। मेरे इस अनुभव ने सामाजिक विकास के क्षेत्र में काम करने की इच्छा को और मजबूत किया। हालाँकि इस क्षेत्र में पहले ना तो मुझे कोई अनुभव था और ना ही मेरी पढाई की ऐसी कोई पृष्ठभूमि थी। मेरी पढ़ाई कंप्यूटर साइंस में बी.आई.टी. मिसरा से हुई, फिर आई.टी. (इन्फॉर्मेशन टेकनोलोजी) के क्षेत्र की ५०० प्रतिष्ठित कंपनियों में से एक में काम किया, और फिर आई.आई.टी. खड़गपुर से एम.बी.ऐ. करने के बाद एक साल फिर मैंने एक निजी कंपनी में काम किया।

इसी बीच मुझे १३ महीने की एस.बी.आई. यूथ फॉर इंडिया फेलोशिप के बारे में पता चला, मैंने इस फ़ेलोशिप के लिए आवेदन किया और मेरा चयन भी हो गया। अब मैं नैनीताल से २ घंटे की दूरी पर स्थित रीठा नाम के गाँव में १२ सामुदायिक केंद्रों के एक संगठन के साथ काम कर रहा हूँ।

यह संगठन अच्छी गुणवत्ता और कम कीमत के पशु चारे का उत्पादन करने वाले एक व्यापारिक संस्थान को खड़ा करने के लिए प्रयासरत है। लेकिन सात सालों के बाद भी उत्पाद कि गुणवत्ता उतनी अच्छी नहीं है और समय के साथ इसके दाम भी बढ़ रहे हैं। इस प्रकार यह संस्थान लाभ अर्जित करने के बजाय घाटे में चल रहा है। मेरी भूमिका व्यापारिक नीतियों पर नए सिरे से काम कर यहाँ इस स्थिति को पूर्णतया बदलने की है, ताकि उत्पाद की गुणवत्ता बढ़ाई जा सके, दाम कम हों, संगठन के लिए मुनाफा अर्जित किया जा सके और साथ ही ग्राहक तथा उत्पादक के बीच आपूर्ति को बेहतर बनाया जा सके।

कर्मचारी नहीं एक मालिक की सोच:

पशु चारा उत्पादन इकाई या सी.ऍफ़.यू. (कैटल फीड यूनिट) में काम करने के शुरुवाती दिनों में लोगों की नकारात्मक सोच सबसे बड़ी परेशानी थी। सभी को लगभग ये यकीन हो चला था कि इस इकाई से मुनाफा अर्जित नहीं किया जा सकता। मैं वहां के माहौल में प्रेरणा की कमी को महसूस कर सकता था। मैंने ये भी देखा कि लोग कुछ इस तरीके से काम करने के आदी हो गए थे जो प्रभावी नहीं था। वहां के लोगों को सकारात्मक रूप से प्रेरित किये जाने की ख़ास जरुरत थी, साथ ही यह भी ध्यान रखना था कि इस प्रक्रिया में कोई अपमानित ना महसूस करे।

मैं ये भी चाहता था कि वो एक कर्मचारी की तरह नहीं बल्कि मालिक की तरह सोचें, जो शुरुवात में उनके लिए काफी मुश्किल था। छोटी-छोटी चीजें जैसे जूट के थैलों को कचरे में फेंक दिया जाए या उन्हें बेच दिया जाए, मैं इस प्रकार के निर्णयों में उनकी किसी और पर निर्भरता को समाप्त करना चाहता था।

कुछ और छोटी-छोटी किन्तु महत्वपूर्ण चीजें थी जिनका जिक्र करना जरुरी है; संगठन और पशु चारा उत्पादन इकाई से जुड़े लोगों और कर्मचारियों को लगा कि पशु चारा बनाने की विधि को बदलने की जरुरत है। उन्हें ये भी लगा कि कच्चे माल को मिलाने के लिए औज़ारों का इस्तेमाल कार्यक्षमता को बढ़ा सकता है। और समय के साथ मैंने यह देखा कि कैसे उनका नकारात्मक रुख, सकारात्मकता और आशापूर्ण नजरिये में बदल गया।

भले ही इस पशु चारा उत्पादन इकाई के भविष्य के बारे में कुछ कहना अभी जल्दबाजी होगी लेकिन पिछली तिमाही में जो इकाई नुकसान में चल रही थी, अभी वह एक मुनाफा कमाने वाली इकाई में परिवर्तित हो गयी है।

पैसा ही सब कुछ नहीं है:

मेरे अनुभवों ने बदलाव के मौकों के अलावा मुझे हमारी व्यवस्था के बारे में सोचने और आत्मविश्लेषण के लिए विवश किया है। एक पल के लिए मैं सोचता हूँ कि लोग इतने कम साधनों और पैसे में कैसे खुश रह सकते हैं? जब मैं हमारी कठोर शहरी दुनिया के भौतिकतावादी मूल्यों को देखता हूँ तो यह व्यवस्था मुझे हैरान कर देती है।

यहाँ पैसे की महत्ता को झुठलाया तो नहीं जा सकता, लेकिन यहाँ लोग सौहार्दपूर्वक प्रकृति के साथ रह रहे हैं, जहाँ चारों और साफ़ हवा और हरियाली मौजूद है। यहाँ के लोग चाहते हैं तो बस बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं, और समय पर बरसात। एक और बात यह कि यहाँ पर संसाधन तो हैं लेकिन उनके बेहतर उपयोग के लिए तकनीक और जानकारी का आभाव है। और यहीं मुझे मेरी भूमिका दिखाई देती है। मेरी आशा और प्रयास हैं कि मैं मेरे कौशल और ज्ञान का प्रयोग से यहाँ के लोगों को उनके संसाधनों के बेहतर उपयोग में मदद कर सकूँ।

मैंने जो एक और चीज सीखी है वो यह है कि १३ महीने एक छोटा समय है, लेकिन एक छोटी सी शुरुवात भी महत्वपूर्ण है। हमें बस करना यह है कि एक चीज तय कर लें, और फिर अपनी सारी कोशिशें उसमे लगा दें।

और हाँ, ये भी प्रयास हों कि इस तरह के संस्थान लम्बे समय के लिए आत्मनिर्भरता प्राप्त कर सकें।

Read the English article here.

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