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पाकिस्तान में कौन सुनेगा हिन्दू अल्पसंख्यकों की?

विकास कुमार:

पाकिस्तान में विभिन्न अल्पसंख्यक समुदाय अपनी पहचान, संस्कृति, अधिकार आदि क़ी मांग कर रहे हैं, और वर्तमान में यह समस्या काफी गंभीर होती जा रही है। अगर बहुसंख्यक वर्ग किसी विशेष अल्पसंख्यक समुदाय को इस्लाम आधारित कानूनों को मानने के लिए बाधित करता है तो टकराव होना लाज़मी है। हमेशा से ही शक्ति संपन्न वर्ग अल्पसंख्यक समुदाय पर तरह-तरह के अत्याचार करता रहा है। इस प्रक्रिया में ऐसे कट्टरपंथी संगठन तथा विचारधारा का जन्म होता है, जो अपने ही कानूनों को हर समुदाय पर लागू करना चाहती है। यदि वह इनका पालन नहीं करते तो या तो उन्हें अपनी जान गवानी पड़ती है या फिर इसी व्यवस्था को अपनाकर अपना जीवन व्यतीत करना पड़ता है।

इन्ही परिस्थितियों को मद्देनजर रखते हुए, पाकिस्तान में हाल ही में हिन्दू अल्पसंख्यक समुदाय के साथ हो रही यातनाओं पर भारत की प्रतिक्रिया आना लाजमी है। इसके बावजूद भारत में केंद्र सरकार का जो रवैया दिख रहा है, वह इतना सकारात्मक नहीं है। समय-समय पर पाकिस्तान के प्रमुख अखबारों, इलेक्ट्रोनिक मिडिया तथा विभिन्न रिपोर्टों से जो बात उजागर होती है, वह सोचने के लिए जरूर विवश करती है। वहां बड़े पैमाने पर हिन्दुओं के साथ शारीरिक तथा मानसिक उत्पीड़न हो रहा है, जिसके कारण पाकिस्तान से हिन्दुओ का भारत की तरफ पलायन भारी मात्रा में बढ़ा है। इसके साथ ही पाकिस्तानी हिन्दू, भारतीय भूमि पर पाकिस्तान में उनके ऊपर हो रहे अत्याचारों की कहानी एसे बयां करते हैं, जैसे उन्हें वहा साँस लेने की भी आजादी ना हो।

आज हालात यह हो गये हैं कि पाकिस्तान में 17 करोड़ मुसलमानों के बीच हिन्दुओं क़ी आबादी मुश्किल से 27 लाख बची है। 1947 में पाकिस्तान में हिन्दू आबादी का घनत्व 27 प्रतिशत था, जो अब घटकर 2 प्रतिशत रह गया है। हालाँकि ऐसा नहीं है कि वहां की सरकार ने इस पर कोई कदम नही उठाया है, लेकिन पाकिस्तान सरकार के राजनीतिक हलकों से जो ख़बरें आ रही हैं वह बहुत चौंकाने वाली हैं। इस सबंध में भारत के एन.डी.टी.वी. इंडिया मिडिया तथा एक अन्य समाचार पत्र ने प्रसिद्ध पाकिस्तानी दैनिक ‘द डॉन’ का हवाला देते हुए बताया, कि आंतरिक मामलों पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के तत्कालीन सलाहकार रहमान मलिक ने कहा कि 250 हिंदू परिवारों को भारतीय उच्चायोग द्वारा वीजा जारी किया जाना एक साजिश है।

एक पाकिस्तानी राजनयिक का यह बयान चौंकाने वाला लगता है। यदि उनकी बात को सच मान भी लिया जाए तो उस उत्पीड़न को झुठलाया नहीं जा सकता, जो डरे-सहमे हुए पाकिस्तानी हिन्दू भारत आकर बयान कर रहे हैं। पाकिस्तान के अखबार तथा मीडिया में भी समय-समय पर हिन्दुओं की स्थिति को लेकर ख़बरें आती रहती हैं। माना जाता है कि हिन्दू व्यापारियों और उनके परिवार की महिलाओं के अपरहण, दुकानों में की जा रही लूटपाट, उनकी संपत्ति पर जबरन कब्जे और धार्मिक कट्टरता के माहौल ने इस अल्पसंख्यक समुदाय को अलग-थलग कर दिया है। हिन्दुओं के उत्पीड़न पर पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय ने भी दखल दिया है, साथ ही पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग ने भी कड़ा रूख अपनाते हुए पाकिस्तान सरकार को इस मुद्दे पर गम्भीर रूप से ध्यान देने के लिए कहा है। इस आधार पर कहा जा सकता है कि पाकिस्तान में हिन्दू उत्पीड़न एक बड़ी समस्या है जिसे कहीं ना कहीं पाकिस्तान की सरकार भी स्वीकार कर रही है।

पाकिस्तान एक ऐसा देश रहा है, जहां की अवाम अपने आप को इस्लामिक देश होते हुए भी सेक्युलर मानती है। इसकी पुष्टी पाकिस्तान के स्वतंत्रता दिवस 14 अगस्त के मौके पर सेना प्रमुख जनरल अशफाक परवेज कियानी के भाषण से हो जाती है। कियानी कहते हैं – पाकिस्तान की परिकल्पना एक ऐसे देश के रूप में की गई थी, जहां अल्पसंख्यक समुदाय की जान और संपत्ति सुरक्षित होगी तथा साथ में उन्होंने ये भी कहा कि पाकिस्तान के निर्माण की वजह महज जमीन के टुकड़े करना नही था बल्कि एक इस्लामिक कल्याणकारी राज्य कि स्थापना करना था। लेकिन इसके बावजूद वहां अन्य धर्मों तथा अल्पसंख्यक समुदायों की पहचान पर सवालिया निशान लगते रहे हैं।

कुछ लोगों की यह धारणा है कि इस्लाम कि प्रकृति ही ऐसी है कि यह अन्य धर्मों को अपने यहाँ शरण देने से कतराता है। यह कहना कुछ तर्कसंगत नही लगता। असल में आज पाकिस्तान में कट्टरपंथियों का बोलबाला है। समस्या इस्लाम में नही बल्कि धार्मिक कट्टरपन और इसे मानने वाले संगठनों में है। ये इस्लाम को अपने नजरिये से परिभाषित करते हैं तथा जिहाद की अलग ही परिभाषा गढ़ते है। ऐसी बात नहीं है कि पाकिस्तान में केवल हिन्दू अल्पसंख्यक ही प्रताड़ित हो रहे हैं। वहां अन्य अल्पसंख्यक समुदायों पर भी समय-समय पर अत्याचार होते रहे हैं। इसका एक उदाहरण हम पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के गवर्नर सलमान ताशिर क़ी हत्या के रूप में देख सकते हैं। सलमान ने ईशनिंदा कानून में सुधार का अनुरोध किया था, जिस कारण उनकी हत्या कर दी गयी थी।

गैर-हिन्दू अल्पसंख्यको को भी वहां अपने अधिकारों के लिए खासी मशक्कत करनी पड़ती है, चाहे वो शिया हों, ताजिक हों, अहमदिया (कादियानी) हों या फिर अन्य, सभी को उत्पीड़न से गुजरना पड़ता है। अत: आज या तो इस्लाम को या फिर सेकुलरवाद को दुबारा परिभाषित करना होगा। इसे दूसरे अर्थ में धर्म और सेकुलरवाद क़ी नयी परिभाषा के रूप में भी देखा जा सकता है। उस सहिष्णुता को निर्धारित करने के जरूरत है जो हमारे धर्मों में निहित है तथा जिसे हम अलग-अलग अर्थ देने में लगे हुए हैं, जो शायद प्रासंगिक नहीं है। यह केवल समस्याओ का ही जन्मदाता हो सकता है, न्याय, समानता तथा भाईचारे का नहीं।

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