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आज से 41 साल पहले कैसे इंदिरा गाँधी ने इमरजेंसी के तहत किये कई गलत काम

रूचि वर्मा:

41 साल पहले 25-जून-1975 को भारतीय लोकतंत्र में आपातकाल की घोषणा की गई थी। 25 जून 1975 को रात 12 बजे यानी 26 जून को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आकाशवाणी पर प्रसारित अपने संदेश में कहा था कि, “जब से मैंने आम आदमी और देश की महिलाओं के फायदे के लिए कुछ प्रगतिशील कदम उठाए हैं तभी से मेरे खिलाफ गहरी साजिश रची जा रही थी।” इतना कहते हुए इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी की घोषणा कर दी थी। इमरजेंसी की घोषणा के बाद सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव और संसदीय चुनाव स्थगित कर दिए गए तथा नागरिक अधिकारों को भी सीमित कर दिया गया था।

क्या थी इमरजेंसी की वजह

इंदिरा के अचानक इमरजेंसी लागू करने का कारण था कि, इलाहाबाद कोर्ट ने उन्हें 1971 के लोकसभा चुनाव में धांधली करने का दोषी पाया था, और उन पर कोई भी पद संभालने पर 6 साल का प्रतिबंध लगा दिया था। चुनाव में हारे प्रत्याशी राजनारायण ने हाईकोर्ट में चुनाव परिणाम को चुनौती दी थी। उनकी दलील थी कि इंदिरा गांधी ने चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग, तय सीमा से अधिक खर्च और मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए गलत तरीकों का इस्तेमाल किया था। अदालत ने भी इन आरोपों को सही ठहराया लेकिन इंदिरा गांधी ने कोर्ट के इस फैसले को मानने से इनकार करते हुए देश में इमरजेंसी लागू कर दी।

बुलंद हुआ इंदिरा हटाओ का नारा

गरीबी हटाओ के नारे के कारण इंदिरा सत्ता में आई थी, पर उन्हें नहीं पता था कि उनके इमरजेंसी लागू करने के फैसले के बाद भारत में ‘इंदिरा हटाओ’ का नारा गूंजने लगेगा। इंदिरा गांधी के इमरजेंसी के फैसले के बाद दो ऐसे बड़े कारण रहे जिन्होंने इंदिरा के खिलाफ भारत में एक माहौल तैयार किया। पहला कारण था कि चीन के जनसंख्या नियंत्रण के रास्ते पर चलने के लिए इंदिरा और संजय गांधी ने लोगों की जबरदस्ती नसबंदी कराने का कार्यक्रम शुरु कर दिया। जिसके बाद भारतीयों ने इंदिरा हटाओ का नारा तय कर लिया। दूसरा कारण था कि इंदिरा गांधी ने मीडिया पर सेंसरशिप लगाकर भारतवासियों को उनको छोड़ सत्ता संभालने के लिए दूसरा विकल्प देखने के लिए मजबूर कर दिया।

जनता पर हुए थे ये वार

यह फोटो www.thehindu.com से ली गयी है।

-आपातकाल के दौरान संजय गांधी ने नसबंदी अभियान चलाया। शहर से लेकर गांव-गांव तक नसबंदी शिविर लगाकर लोगों के ऑपरेशन कर दिए गए। कई बार तो चलती बसों को रास्ते में रोककर नौजवानों की भी नसबंदी कर दी गई, यहां तक कि अविवाहित युवकों की भी।

-आपातकाल में अगर किसी एक संगठन का सबसे अधिक दमन हुआ तो वह था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ। संघ के स्वयंसेवक, कार्यकर्ता और प्रचारक गिरफ्तार किए गए। पुलिस ने गिरफ्तार करने में उम्र का भी ख्याल नहीं रखा।

-आपातकाल के दौरान बनी अमृत नाहटा की फिल्म किस्सा कुर्सी का पर प्रतिबंध लगा दिया गया। फिल्म रिलीज होने से पहले इसके सारे प्रिंट जला दिए गए। प्रिंट की खोज के लिए कई स्थानों पर छापे डाले गए। अमृत नाहटा को जमकर प्रताड़ित किया गया।

-आपातकाल के समय सूचना एवं प्रसारण मंत्री बनाए गए वी.सी. शुक्ला ने बॉलीवुड में एक खौफ का माहौल बना दिया था। फिल्मी गीतकारों और अभिनेताओं से इंदिरा और केंद्र सरकार की प्रशंसा के गीत गाने और इसी तरह की फिल्म बनाने के लिए दबाव डाला गया। मशहूर गायक किशोर कुमार ने जब मना कर दिया तो वी.सी. शुक्ला ने इसे व्यक्तिगत खुन्नस मानकर पहले तो रेडियो से उनके गानों का प्रसारण बंद करा दिया और फिर उनके घर पर इनकम टैक्स के छापे डलवाए।

-पूरे देश में जिस पर भी इंदिरा के विरोधी विचार रखने का शक था वह सींखचों के पीछे कर दिया गया। इन कैदियों को कोई राजनीतिक दर्जा भी नहीं दिया गया था। उन्हें चोर, उठाईगीरों और गुंडों की तरह बस जेल में डाल दिया गया।

फोटो सोर्स: ट्विटर

-आपातकाल की घोषणा हुई और पौ फटने के पूर्व सभी विरोधी दलों (सीपीआई को छोड़कर) के नेता जेलों में ठूंस दिए गए। ना उम्र का लिहाज रखा गया, ना स्वास्थ्य का। 100 से अधिक बड़े नेताओं की गिरफ्तारी हुई, जिनमें जयप्रकाश नारायण, विजयाराजे सिंधिया, राजनारायण, मुरारजी देसाई, चरण सिंह कृपलानी, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, सत्येंद्र नारायण सिन्हा, जार्ज फर्नांडीस, मधु लिमये, ज्योति बसु, समर गुहा, चंद्रशेखर बालासाहेब देवरस और बड़ी संख्या में सांसद, विधायक शामिल थे।

-आपातकाल लागू होते ही आंतरिक सुरक्षा कानून (Maintenance of Internal Security Act) यानी मीसा के तहत धड़ाधड़ गिरफ्तारियां की गईं। मीसा के तहत पुलिस द्वारा कैद में लिए गए लोगों को न्यायालय में पेश करने की जरूरत नहीं थी, और ना ही जमानत की कोई व्यवस्था थी। आपातकाल के दौरान एक लाख से ज्यादा लोगों को जेलों में डाला गया।

-आपातकाल में सरकार विरोधी लेखों की वजह से कई पत्रकारों को जेल में डाल दिया गया। उस समय कई अखबारों ने मीडिया पर सेंसरशिप के खिलाफ आवाज उठाने की कोशिश की, पर उन्हें बलपूर्वक कुचल दिया गया। आपातकाल की घोषणा के बाद एक प्रमुख अखबार ने अपने पहले पन्ने पर पूरी तरह से कालिख पोतकर आपातकाल का विरोध किया।

इमरजेंसी के समय ने भारत देश को सिर्फ नकारात्मक पहलू दिए ऐसा नहीं है। इमरजेंसी का समय ऐसा था जब सरकारी कर्मचारियों ने काम करने के मायने सीखे थे और भ्रष्टाचार करने से उन्हें डर लगने लगा था। वे भ्रष्टाचार करने से पहले सौ बार सोचा करते थे। इमरजेंसी भारतीय राजनीति का छोटा लेकिन अहम पड़ाव था। जनता को गूंगा और बेवकूफ समझने वालों के लिए ये एक बड़ा सबक था क्योंकि जनता ने अपने वोट से साबित कर दिया था कि उसकी लाठी में आवाज भले ही ना हो लेकिन वह चोट देने में पूरी तरह से सक्षम है।

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