This post is a part of Periodपाठ, a campaign by Youth Ki Awaaz in collaboration with WSSCC to highlight the need for better menstrual hygiene management in India. Click here to find out more.
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समाज में महिलाओं और पुरुषों के बीच के अंतर को कम करने की बात ज़ोर-शोर से होती रहती है मगर इसके लिए हमेशा से ही कोई ऐसी घटना का होना ज़रूरी होता है, जो इस मुद्दे की तरफ ध्यान खींचे।
ऐसी ही घटना साल 2016 में हुई पहले हुई जब एक लड़की ने शनि शिंगणापुर मंदिर में तेल चढ़ा दिया, जिसके बाद सदियों से बंद धार्मिक जगहों पर जाने के लिए महिला संगठनों के कूच करने की मुहिम शुरू हो गई।
इस कोशिश का ही नतीजा है कि महाराष्ट्र के शनि शिंगणापुर मंदिर में 400 साल पुरानी प्रथा खत्म हुई और साथ ही त्र्यंबकेश्वर में महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की रज़ामंदी दे दी गई मगर हमारे समाज के लिए शर्म की बात है कि इस प्रथा को तोड़ने में कितना समय लग गया और यह तोड़ी भी गई तो अदालत के हस्तेक्षप के बाद।
खैर, अभी ऐसी कई जगहे हैं जहां आज भी महिलाओं का जाना मना है। महिलाओं के साथ ये भेदभाव सिर्फ किसी एक धर्म में नहीं हैं, बल्कि हर धर्म में हैं। आज भी मुस्लिम धर्म की महिलाओं के मस्जिदों में जाने पर पूरी तरह से पाबंदी है।
मंदिरो में महिलाओं के जाने की मनाही के पीछे दिए जाने वाले तर्क बड़े ही बेतुके हैं। कहीं कहा जाता है कि महिला को मासिक धर्म के समय इन पवित्र जगहों में नहीं जाना चाहिए, क्योंकि इससे उन जगहों की पवित्रता खत्म हो जाएगी। तो कहीं कुछ जगह ऐसी बना रखी हैं, जहां महिला को मासिक धर्म शुरू होने की उम्र में आने के बाद से ही ये मनाही शुरू हो जाती है।
चाहे महिला की उस देव या देवी में कितनी ही भक्ति क्यों ना हो, उसे उस मंदिर में नहीं जाने दिया जाएगा क्योंकि महिला से उस देव या देवी के अपवित्र होने का खतरा है। समझने की बात यह है कि कैसे मासिक धर्म का होना ही एक महिला को अछूत बना देता है। जबकि यह केवल एक शारीरिक प्रक्रिया है, जिसके कारण एक महिला में किसी को संसार में लाने की क्षमता है मगर दुख की बात है कि समाज ने उसकी इस शारीरिक प्रक्रिया को छूत के रोग में बदल दिया है।
कहीं कहा जाता है कि महिलाओं की इन पवित्र स्थानों में मौजूदगी से पुरुषों की नीयत खराब हो सकती है और वे इबादत में मन नहीं लगा पाएंगे। इसलिए नीयत खराब करने वाली चीज़ ही हटा दी जाए। यह तो वही बात हो गई कि सज़ा दोषी को ना देकर पीड़ित को दें। इससे यह बात तो साफ है कि किसी भी धर्म में महिलाओं का स्थान दूसरा ही है, जो पुरुषों के सही गलत के जोड़-घटाव के बाद ही उन्हें मिला है।
आज जब महिलाओं के मासिक धर्म पर शर्म नहीं करने पर बहस चल रही है, तो अभी हाल ही में इस विषय पर एक वीडियो भी सामने आई। इस वीडियो में एक लड़की अलग-अलग केमिस्ट की दुकान पर जाकर सैनिटरी पैड खरीद रही थी और जब दुकानदार उस पैड को काली थैली या अखबार में लपेटकर दे रहा था तो लड़की पूछ रही थी कि काली थैली या अखबार में लपेटकर क्यों दे रहे हो?
लड़की के ऐसा पूछने पर उसे अजीबो गरीब जवाब मिल रहे थे और हद तो यह थी कि कुछ ने कहा कि ये सेक्स की चीज़ है, खुले में आपको शर्म नहीं आएगी? कुछ महाराज तो यहां तक बोल गए कि ऐसी बात करने पर लड़कियों का रेप नहीं होगा तो क्या होगा? सोचिए एक सैनिटरी पैड की बात खुले में करने पर किसी को रेप करने का हक मिल गया!
पीरियड्स एक शर्म की बात है! इस पर खुलकर बात नहीं कर सकते! कुछ घरों में पीरियड्स होने पर महिलाओं को अलग कर देते हैं और घर के सबसे बड़े सदस्य से लेकर घर के सबसे छोटे सदस्य को पता होता है कि फलाने को पीरियड्स हो रहे हैं और वे उस महिला से घिनाते हैं। जबकि समाज में इस मुद्दे पर खुलकर बात होनी चाहिए और मासिक धर्म के प्रति समाज के नज़रियों में बदलाव आना चाहिए।
महिलाओं के साथ होने वाले हर भेदभाव के पीछे की वजह सदियों पुरानी पितृसत्ता ही है, जो आज अपने बदले हुए तेवर के साथ समाज में मौजूद है मगर महिलाएं जैसे-जैसे आर्थिक रूप से स्वतंत्र होती रहेंगी, वे अपने साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ और अधिक बोलेंगी।
अब समय आ गया है कि महिलाएं अपनी सीमाएं खुद निर्धारित करें ना कि पुरुषों के बनाए सदियों पुराने नियमों पर सिर हिलाएं। वैसे हाल के दिनों में वर्जित स्थानों पर महिलाओं का जाना काबिल-ए-तारीफ है और ऐसी उम्मीद है कि आने वाले कल में हम महिलाएं समानता की अपनी लड़ाई में कुछ और नए आयाम पा लें।
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