Site icon Youth Ki Awaaz

क्यों प्रियंका क्यों? ऐसी भद्दी भोजपुरी फिल्म क्यों बनाई?

अमन शुक्ला:

प्रियंका चोपड़ा जिन्हें कुछ ही समय पहले सिनेमा मे अपने उल्लेखनीय योगदान के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया गया था, उन्होंने घोषणा की थी कि वो अब फिल्म निर्माण के क्षेत्र में भी कदम रखेंगी। फिर उन्होंने यह कह कर सबको चौंक दिया कि उनकी प्रोडक्शन कम्पनी छेत्रीय भाषाओ में फिल्मे बनाएगी, और इसकी शुरुआत उन्होंने भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री से की।

भीजपुरी सिनेमा जो अब तक के अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है क्यूंकि उस पर जब-तब अश्लीलता के आरोप लगते रहे हैं। देश भर के क्षेत्रीय सिनेमा मे भोजपुरी, कतार मे सबसे पीछे खड़ी दिखाई देती है। प्रियंका चोपड़ा की भोजपुरी फिल्म से भोजपुरी भाषी लोगों के प्रबुद्ध वर्ग को बड़ी उम्मीदें थी, क्योंकि प्रियंका चोपड़ा भी मूलतः बिहार से ही हैं। उन्हें सिनेमा की अच्छी खासी समझ भी है, तो उनसे ये अपेक्षा की गयी थी कि वो एक साफ सुथरी मनोरंजक भोजपुरी फिल्म बनाएंगी और मरता हुआ भोजपुरी सिनेमा शायद फिर उठ खड़ा होगा। लेकिन प्रियंका चोपड़ा की भोजपुरी फिल्म ‘बम बम बोल रहा है काशी’ सिनेमा के हर पहलू मे निराश करती है।

‘बम बम बोल रहा है काशी ‘ के नायक, भोजपुरी फिल्मों के सुपरस्टार माने जाने वाले दिनेश लाल यादव निरहुआ हैं और उनकी नायिका हैं आम्रपाली दूबे। ये फिल्म भी हर उस दूसरी भोजपुरी फिल्म की तरह है जिसके पोस्टर्स देख के दिल्ली मे लड़के हंसा करते हैं। फिल्म का नायक ‘काशी’ एक गांव मे रहता है और खेती करता है, भोजपुरी फिल्मों का नायक कभी कोई डॉक्टर या इंजीनियर या कोई नौकरी पेशा नही होता, और ये फार्मूला यहां भी निर्माता द्वारा अपनाया गया है। तो कुल जमा कहानी ये है कि ‘काशी’ को अपने गांव आई शहर की एक लड़की से प्यार हो जाता है, पर लड़की को कोई दूसरा पसन्द है।  यहां तक आते आते फिल्म मे 5 गाने ठूस दिए गए हैं। उसके बाद कहानी मे दूसरी नायिका आती है जो पहली नायिका की दोस्त है। और फिर शुरू होता है हिन्दी फिल्मो मे लाखो करोड़ो बार घिसा गया प्रेम त्रिकोण। बीच-बीच मे नेताओं की पार्टी के बहाने डाले गए आइटम सॉन्ग्स भी हैं और फिर कहने की जरूरत नही है कि फिल्म आगे क्या मोड़ लेगी क्योकि आप सिनेमा हाल मे बैठे कहानी गेस कर लेते हैं।

प्रियंका चोपड़ा की बनाई ये फिल्म एक अदद फार्मूला भोजपुरी फिल्म भर है जिसमे द्विअर्थी संवादों, और जबरदस्ती के ठूसे गए 15 गाने हैं, जिनमे आधे से ज्यादा बेहद अश्लील हैं। फिल्म लगभग तीन घण्टे पन्द्रह मिनट लम्बी है और इसे देखना अपनी भाषा और संस्कृति का तीन घण्टे लम्बा मर्डर देखने जैसा है। इस फिल्म में भी वही अश्लीलता से भरे गाने हैं, वही निरहुआ और वही आधे कपड़ो मे नाचती लड़कियां! कलाकारों का अभिनय औसत दर्जे का है और फिल्म मे शायद एडिटर को लिया ही नही गया। कुल मिला कर ये फिल्म पूरी तरह निराश करती है , हां, भोजपुरी फिल्मों के परम्परागत दर्शकों के लिए ये ठीक हो सकती है पर कोई भी आम शहरी दर्शक ना ऐसी फिल्मे देखना चाहता है और ना वो ये फिल्म देखेगा।

‘With GREAT POWER , COMES GREAT RESPONSIBILITIES’

यानी बेहिसाब ताकत के साथ बेहिसाब जिम्मेदारियां भी आती हैं।

लेकिन ये जिम्मेदारी तय कौन करेगा ? जाहिर है आप खुद। लेकिन तब क्या हो जब आपके फैसले का असर दूसरों पर भी पड़ रहा हो?

जितना दुख इस बात का है की प्रियंका जी ने एक और भद्दी फिल्म बनाई, उससे ज्यादा दुख इस बात का है कि उन्होंने एक सुनहरा मौका खो दिया। ये मौका था जब एक अच्छी फिल्म बनाकर आम भोजपुरी भाषी लोगों को सिंनेमा घरो तक लाया जा सकता था, एक उम्मीद जगाई जा सकती थी कि हमारे पास भी कहानियाँ हैं और हम भी अच्छा सिनेमा बना सकते हैं।

आप को शायद पता नही है कि कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो दिन-रात काम कर रहे है ताकि भोजपुरी की खोयी गरिमा वापस आ सके। लेकिन उन्होने सबको निराश कर दिया। यह फिल्म सिर्फ और सिर्फ पैसा कमाने के लिहाज़ से बनाई गयी है और उसमे हर वो मसाला डाला गया है जो इसके निर्माताओं को लाभ पहुंचा सके।

खैर ! कल जब आपके बच्चे भी आपकी अपनी भाषा में बनाई फिल्म के इस तरह के गाने सुनेंगे तो वे क्या सोचेंगे?..

‘बोलेरो के चाभी से खोदता नाभी…’
‘खटिया से खटिया सटा ल सैंया ‘
वगैरह वगैरह…

अपने आपको बिहार की बेटी कह तो दिया है आपने, लेकिन आप पूछियेगा खुद से कि क्या किया है आपने अपने बिहार और अपनी भोजपुरी के लिये सिवाय इस भद्दी फिल्म बनाने के ।

Exit mobile version