Translated from English to Hindi by Sidharth Bhatt.
तहलका की पूर्व पत्रकार राना अयूब ने 1-जून को कहा, “किसी किताब को लिखने का मकसद केवल उसे बड़ी संख्या में बेचना नहीं है।” ये उन्ही की रिपोर्टिंग थी जो 2010 में भाजपा के वर्तमान अध्यक्ष अमित शाह की गिरफ्तारी का कारण बनी। उन्होंने गुजरात के सांप्रदायिक दंगों पर तहलका में काम करने के दिनों में दी गयी जिम्मेदारी पे उनके किये काम पर लिखी एक किताब हाल ही में प्रकाशित की है। ‘गुजरात फाइल्स: एनाटोमी ऑफ़ ए कवर अप’ नाम की उनकी किताब गुजरात दंगों पर गुप्त रूप से की गयी उनकी जांच की कहानी और उसकी मुश्किलातों को बताने के साथ-साथ झूठी पुलिस मुठभेड़ और गृह राज्य मंत्री हरेन पंड्या की हत्या पर भी प्रकाश डालती है।
जे.एन.यू. के गोदावरी हॉस्टल की मेस में छात्रों से बात करते हुए उन्होंने कहा, “मेरी किताब को केवल किसी बेबाक और निडर प्रयास की तरह ना पढ़ें।” बजाय इसके उन्होंने छात्रों से समाज में होने वाली गलत चीजों पर आत्मविश्लेषण करने की अपील की। उन्होंने छात्रों को चेतावनी देते हुए कहा कि ऐसा ना करने पर, 2019 तक हालात और बिगड़ सकते है। उन्होंने आगे जोड़ते हुए यह भी कहा कि अधिकांश राजनैतिक दलों में कोई ज्यादा अंतर नहीं है।
एक ओर जहाँ गोदावरी हॉस्टल की मेस छात्रों से पूरी तरह भरी थी, वहीं मुख्यधारा के मीडिया ने राना अयूब की किताब पर सोची समझी चुप्पी बनाकर रखी है। इसी बीच अयूब के साथ राजनैतिक और मीडिया आलोचक ब्लॉग काफिला के सदस्य शुद्धब्रता सेनगुप्ता और आदित्य निगम के सम्मिलित पैनल ने इस किताब के खुलासों पर राजनैतिक और सैद्धांतिक प्रश्नों को लेकर चर्चा की। किताब के विमोचन की बात करते हुए निगम कहते हैं कि, वैसे तो अयूब ने भाजपा और कांग्रेस को एक ही श्रेणी में रखा है, इसके बावजूद कांग्रेस के नेताओं का रवैय्या काफी उदासीन दिखा है। वो आगे कहते हैं, देश में नेतृत्व के विकल्प के रूप में केवल इन दोनों पार्टियों का होना अपने में एक “डरा देने वाला विचार है”।
किताब के बारे में बात करते हुए निगम कहते हैं, एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि 2002 के गुजरात दंगों को लेकर अधिक चर्चाएं नहीं की गयी हैं। लेकिन इस किताब से एक चीज जो सीखी जा सकती है वो यह है कि, मोदी और अमित शाह ने इस पूरे प्रकरण में जिन पुलिस के लोगों और अधिकारियों का प्रयोग किया वो सभी दलित और पिछड़ी जाति से थे। उनका शोषण का जो इतिहास रहा है, वो उनके पुलिस और अफसरशाही में आने के बाद भी जारी है। वो इसी कड़ी में कहते हैं, “ब्राह्मणों ने कभी भी किसी भी प्रकार से अपने हाथ गंदे नहीं किये।”
एक प्रश्न का जवाब देते हुए सेनगुप्ता ने कहा, इनमे से अधिकांश अधिकारियों की ऐसी पहुँच नहीं थी कि वो खुद को बचा पाएं। उन्हें मालूम था कि अगर उन्होंने अपने वरिष्ठ अधिकारियों का कहा नहीं किया तो इसके उन्हें गम्भीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।
देश के विभिन्न हिस्सों में कानून के दायरे के बाहर होने वाली हत्याओं पर छात्रों से बात करते हुए सेनगुप्ता ने कहा, “हमें इस भुलावे में नहीं रहना चाहिए कि गुजरात में जो हुआ वो अलग था, बल्कि अब तो यह एक मानक बन चुका है।” वो आगे कहते हैं, “यहाँ अब इंसानी जिंदगियों का कोई हिसाब मौजूद नहीं है, अगर कोई आंकड़ा मौजूद है तो वो बस जमीन पर खोदी गयी बेनाम कब्रों का है, जो एक संख्या से ज्यादा कुछ नहीं है।”
अयूब जिनकी किताब बिक्री के लिए उनके साथ उपलब्ध थी, ने किताब के एक हिस्से को पढ़ा और अपने हस्ताक्षर के साथ छात्रों को दी। उन्होंने तहलका में उनके कार्यकाल के दौरान उनकी पूर्व संपादक शोमा चौधरी और तरुण तेजपाल के द्वारा उनके राजनैतिक दबाव में आकर रिपोर्ट प्रकाशित नहीं करवाने के आरोप के खंडन करने के बारे में भी जवाब दिया। उन्होंने कहा, जब शोमा चौधरी तहलका की प्रबंध संपादक थी तो उनकी अपनी अलग दिक्कतें थी, और तरुण तेजपाल स्वयं एक साथी कार्यकर्ता के यौन शोषण के आरोपों से घिरे हुए थे। उन्होंने तहलका को उनकी गुजरात दंगों पर रिपोर्टिंग और जांच पर विश्वास रखने के लिए धन्यवाद भी कहा। हालाँकि पैनल के अन्य सदस्यों ने तहलका की आलोचना करते हुए पत्रिका पर पैसे और पावर वाले लोगों के हितों में काम करने का आरोप लगाया।
जस्टिस बी. एन. श्रीकृष्णा द्वारा अयूब की किताब के लिए लिखी गयी प्रस्तावना के और अधिक प्रभावी होने को लेकर पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए अयूब ने कहा, सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व न्यायाधीश जो किसी भी स्टिंग(गुप्त रूप से बनाया गया वीडियो) की बिना फॉरेंसिक जांच के उस पर विश्वास नहीं करते हैं, उन्होंने मुझ पर काफी भरोसा जताया और उनकी लिखी प्रस्तावना इससे अधिक प्रभावी नही हो सकती थी। पैनल ने अयूब की किताब को लेकर मीडिया की चुप्पी और प्रकाशन से सम्बंधित अन्य प्रश्नों का भी जवाब दिया।
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