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लेटकर पढ़ने वाली जनता कृपया ध्यान दें, आपकी आंखों के लिए है ज़रूरी सूचना

जवाब पूरी तरह आप पर निर्भर करता है कि आप के हिसाब से ऑंखों के लिए क्या अच्छा नहीं है। क्या लेटकर पढ़ने से ऑंखों को कोई स्थाई नुकसान होता है? जवाब है नहीं। क्या लेटकर पढ़ने से ऑंखों पर कोई प्रभाव पड़ता है? जवाब है हां। लगता हैं इन जवाबों से आप और उलझ गए हैं। आइये तलाश करते हैं इस सवाल के सही और सुलझे हुए जवाब की।

मांसपेशियों की ताकत-

घबराइए नहीं, यहां कोई जटिल बात नहीं कही जाएगी। क्योंकि यहां जो बात की जाएगी वो ऑंखों की मांसपेशियों के बारे में होगी। ये ‘एक्स्ट्रा ऑकुलर मसल्स’ हमारी ऑंखों को, देखी जाने वाली चीज़ पर केन्द्रित करने में सहायता करती है। आम भाषा में कहें तो ये मांसपेशियां या मसल्स पढ़ते समय हमारी आंखों को घुमाने का काम करती हैं और यहीं पर मुख्य बात आती है, आंखों पर पड़ने वाला ज़ोर।

ऑंखों पर पड़ने वाला ज़ोर क्या है और पढ़ने पर इसके क्या प्रभाव होते हैं:

ज़्यादातर विशेषज्ञों का मानना हैं कि पढ़ने के लिए, किताब और आँखों के बीच की आदर्श दूरी 15 इंच या तकरीबन 38 से 40 सेंटी मीटर होनी चाहिए। वहीं पढ़ने के लिए सही एंगल (कोण) 60 डिग्री होना चाहिए। तो जब आप लेटकर आपकी किताब या इ-बुक रीडर पर पढ़ रहें होते हैं और किताब तथा आपकी आँखों के बीच की दूरी ऊपर बताई गई दूरी से अगर कम है तो आपकी आँखों पर ज़ोर पड़ना निश्चित है। इसे एस्ठेनोपिया कहा जाता है। आप पढ़ी जाने वाली चीज़ की तरफ कैसे बैठें हैं या कैसे लेटे हैं, इसपर ही निर्भर करता है कि इस दौरान आपकी आँखों की मसल्स को किताब पर फोकस बनाए रखने के लिए कितनी मेहनत करनी पड़ेगी। हो सकता है किसी लाइन को पढ़ने में आपको सामान्य से ज़्यादा समय लगे और उसे पढ़ने के लिए आपकी आँखों की मसल्स को ज़्यादा और देर तक फैलना पड़े।

इसलिए इस सवाल का जवाब है लेटकर पढ़ने में आँखों पर ज़ोर पड़ सकता है, लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि इससे आपकी आँखों को कोई स्थाई नुकसान पहुंचे। बिलकुल उसी तरह जैसे पैरों की मसल्स में दर्द होने का मतलब यह नहीं है कि आपके पैर स्थाई रूप से खराब हो गए हैं, अगर आपकी आँखों में दर्द है तो इसका मतलब ये नहीं है कि आपके देखने की क्षमता में कोई कमी आई है या आपको दिखाई देना बंद हो जाएगा। आँखों में जलन, आँखों का लाल हो जाना, पानी आना, ये कुछ आँखों पर पड़ने वाले ज़ोर के लक्षण हैं। आँखों पर पड़ने वाले ज़ोर को भी, हमारे शरीर की ही तरह आराम करने से कम किया जा सकता है।

अब कुछ सुनी-सुनाई बातों के बारे में भी चर्चा कर ली जाए, तो आपको ये बता दें कि पास से टेलीविज़न देखना हो या लेटकर किताब पढ़ना, इनसे आँखें खराब नहीं होती और ना ही इनकी वजह से आपको चश्मा लग सकता है। और हाँ केवल गाजर खाने से ही आपकी आँखे तेज़ नहीं हो जाएंगी। हालांकि आँखों पर ज़ोर पड़ने की शिकायत अपने आप में आँखों में (दूर या पास की नज़र का) दोष होने का लक्षण हो सकती है। यदि आपको नियमित तौर पर आँखों पर जोर पड़ने की शिकायत है तो आँखों की जांच ज़रूर करवा लें।

हम जैसे कुछ किताबी कीड़ों को लेटकर पढ़ना बहुत पसंद होता है। इसकी वजह से गर्दन, रीढ़ की हड्डी और हाथो में भी तकलीफ आ सकती है। आपने हॉस्पिटल में मरीज़ों को सही रौशनी के नीचे बैठकर और तकिये का सहारा लेकर तो पढ़ते हुए देखा ही होगा, वहीं आपके लिए भी सबसे अच्छा तरीका है।

अंग्रेजी से हिन्दी अनुवाद: सिद्धार्थ भट्ट

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