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“हमें माफ़ कर देना सोना, क्यूंकि हम बेवकूफ तो पहले से ही थे अब बेशरम भी होते जा रहे हैं”

मुकुंद वर्मा:

सोना महापात्रा, मैं ये माफ़ीनामा आपके और आपके जैसे उन सभी लोगों के नाम लिख रहा हूँ, जो सिर्फ सच को सच बोलने के लिए ऑनलाइन या ऑफलाइन गुंडेबाज़ी का शिकार हो रहे हैं। उन सभी लोगों के नाम जिन्हें या तो सरेआम या इनबॉक्स कर के गालियाँ दी जाती हैं, डराया जाता है या धमकाया जाता है।

जब इस देश में सरहदों के साथ-साथ, देश के अन्दर भी हमारी जान बचाने के लिए सैनिक अपनी जान दिए जा रहे हैं, महिलाओं का निर्दयता से बलात्कार किया जा रहा है, बुंदेलखंड में किसान भूखे हैं, विदर्भ में आत्महत्याएं हो रही हैं, तब हमारा खून नही खौल रहा है। खून खौल रहा है तो आप पर, कि आपने हमारे देवता समान भाई को गलत कैसे ठहरा दिया। आपने ऐसा सोच भी कैसे लिया कि सलमान खान, जो फ़रिश्ते के बन्दे हैं, उनको उनके फैन्स के सामने आप दोषी ठहरा सकती हैं। और तो और, एक औरत हो कर, जिस औरत को हमने आज भी पाँव तले दबा के रखा है, जिसे हम कभी दहेज़ के नाम पर खुलेआम जला देते हैं, तो कभी स्लट का तमगा देकर अपने मर्द होने का सबूत देते हैं, उसने बोलने की हिम्मत की भी तो कैसे।

हम आपसे माफ़ी इसलिए माँग रहे हैं क्यूंकि हमें लगता है कि अब शर्म हममें बची ही नही है। हम जानवर से इंसान बने थे, लेकिन इंसान से अब हैवान बनते जा रहे हैं, या लगभग बन चुके हैं। कई मामलों में काने तो हम पहले से थे, लेकिन अब धीरे-धीरे अँधे, बहरे और गूंगे  बनते जा रहे हैं। अँधे इसलिए कि कुछ सच्चाई हमें दिखाई नही देती, और कुछ हम देखना नही चाहते, बहरे इसलिए क्यूंकि अपने मतलब की बात छोड़ हमें और कुछ सुनाई नही देता और गूंगे  इसलिए क्यूंकि जहाँ बोलना है वहां हम बोल नही पाते, भले कभी आप जैसे लोगों को जी भर कर माँ-बहन की गालियाँ दे ले। दरअसल हम बिलकुल ढोंगी हो चुके हैं। जहाँ दुर्गा, सरस्वती और लक्ष्मी के आगे सर झुकाते हैं, वहीं सोना, सोनम या पूजा की इज्जत की धज्जियाँ सडकों, गलियों के साथ-साथ फेसबुक, ट्विटर पर उड़ा कर अपनी मर्दानगी दिखाते हैं। हम हिन्दू भी हैं, और मुसलमान भी हैं, बस इन्सान अब नही हैं। कहीं हमारा खून तो पानी नही हो गया है? लेकिन अगर खून पानी हो जाता तो किसी भी बात पर नही खौलता। मुझे तो कभी-कभी लगता है की इस खून में शायद जहर भर गया है, क्यूंकि हम जब भी बोलते हैं, जहर ही उगलते हैं।

हमें लगता है कि अब हम कायर हो चुके हैं। मोबाइल के टच स्क्रीन और कंप्यूटर के कीबोर्ड के पीछे छुपकर दिन भर लोगों को गालियाँ देते फिरना भला कहाँ की बहादुरी है, लेकिन क्यूंकि हम बेशर्म, बेहया हैं, तो ये बात हम मान नही सकते। आपने जो कहा, सही कहा और इस बात पर मुझे फ़क्र है कि आप आज भी उसी हिम्मत से अकेले लड़ रही हैं, जिस हिम्मत से शायद पहले दिन लड़ रही थी। बस एक गुजारिश है कि आप झुकना मत। क्यूंकि अगर आप जैसे लोग भी झुक गए, तो हम जैसे कायरों, बुजदिलों का हौसला और बढ़ जायेगा, जो शायद समाज में और जहर घोलेगा। आप हिम्मत मत हारना, क्यूंकि हो सकता है कि आपकी हिम्मत देख कर हम जैसों में थोड़ी शर्म वापस आ जाये, फिर से शायद हम जैसे अँधे देखने लायक हो जाये, बहरे सुनने लायक और गूंगे  बोलने लायक हो जाएं। हमें माफ़ कर देना सोना जी, क्यूंकि हम बेवकूफ तो पहले से ही थे, अब बेशरम भी होते जा रहे हैं।

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