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कैसे 40 घंटे का खेल 4 घंटो में बदल गया: टी-20 क्रिकेट और क्रिकेट का बदलता स्वरुप

अमोल रंजन:

दो महीने के लगातार क्रिकेट के बाद आई.पी.एल. के नवें संस्करण के विजेता कप्तान डेविड वार्नर फाइनल में रॉयल चैलेंजर बैंगलोरके खिलाफ जीत दर्ज करने के 24 घंटे के भीतर ऑस्ट्रेलिया के वेस्ट इंडीज दौरे के लिए रवाना हो गए। मैं नहीं जानता कि उनकी अपनी मर्ज़ी क्या रही होगी, पर इतना तो पता चलता है कि इस बीच उनको अपनी टीम सनराइज़र्स हैदराबाद के साथ उनकी पहली आई.पी.एल. जीत के बाद जश्न मनाने का ज्यादा मौका नहीं मिला होगा। अंतर्राष्टीय क्रिकेट की ये रफ़्तार हमेशा से नहीं थी। क्रिकेट के किताबों के अध्ययन से पता चलता है कि 5 दिनों का टेस्ट क्रिकेट इस खेल का पहला अधिकारिक स्वरुप था, जिसको ब्रिटेन ने अपने औपनिवेशिक साम्राज्य के दौरान कई देशों में फैलाया था। भारत में भी क्रिकेट काफी लोकप्रिय हुआ और रेडियो के द्वारा इसका फैलाव होने लगा।

क्रिकेट के स्वरुप में एक और क्रांतिकारी बदलाव आया। 1977 में ऑस्ट्रेलिया क्रिकेट बोर्ड ने ऑस्ट्रेलिया की एक प्राइवेट टीवी कंपनी के चैनल नाइन को वहाँ के पब्लिक ब्रोडकास्टर ऑस्ट्रेलिया ब्राडकास्टिंग कंपनी से ज्यादा पैसा ऑफर करने के बावजूद वहाँ खेले जाने वाले अंतर्राष्ट्रीय मैचों का प्रसारण अधिकार नहीं दिया। चैनल नाइन के मालिक और ऑस्ट्रेलिया के बड़े व्यापारी कैरी पैकर ने तब, उस समय के बड़े अंतराष्टीय क्रिकेटर जैसे डेनिस लिलि, विवियन रिचर्ड्स, ग्रेग चैपल, माइकल होल्डिंग, इमरान खान इत्यादि और ऑस्ट्रेलिया के कुछ स्टेडियमों को भाड़े पर लेकर वर्ल्ड सीरीज की शुरुआत कर दी। काम के बाद लौट रहे दर्शकों को लुभाने के लिए पहली बार रंगीन कपड़ों में फ्लड लाइट के तले दिन-रात के मैच आयोजित होने लगे जो टी.वी. पर देखने वाले दर्शकों को भी पसंद आया और विज्ञापनकर्ताओं को भी।

ढाई साल बाद ऑस्ट्रेलिया क्रिकेट बोर्ड को फिर मजबूरन चैनल नाइन के साथ हाथ मिलाना पड़ा क्यूंकि कई सारे प्रमुख ऑस्ट्रेलियाई खिलाडी अपने देश की टीम को छोड़ पैकर की श्रृंखला में खेल रहे थे। उधर भारत में भी रंगीन टीवी आ चुका था और भारत 1983 में कपिल देव की कप्तानी में पहली बार क्रिकेट का विश्व कप भी जीत गया था। एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट अपनी नयी ऊँचाइयों को छूने लगा जब 1987 में भारत में पहला विश्व कप खेला गया। तब धीरु भाई अम्बानी की कंपनी रिलायंस विश्व कप की प्रमुख प्रायोजक थी।

लेकिन तब भी क्रिकेट को उस तरह की गति नहीं मिली जैसी उसको 1995 के बाद मिली। 1991 के बाद भारत सरकार की उदारीकरण नीतियों ने कई चीजों को जन्म दिया; उसमें विदेशी सेटेलाइट कम्पनियों का भारत में आना भी शामिल था। स्टार, सोनी, एमटीवी जैसे नेटवर्क भारतीय उपभोक्ताओं का मनोरंजन करने बाज़ार में उतर चुके थे। 1995 में सुप्रीम कोर्ट का बी.सी.सी.आई. और दूरदर्शन के बीच चल रहे प्रसारण अधिकारपर चल रहे विवाद के सिलसिले में एक फैसला आया, जिसमें कहा गया कि चुने गए प्रसारक द्वारा क्रिकेट का सीधा प्रसारण आर्टिकल 19(a) के मूलभूत अधिकार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के अंदर आता है। दूरदर्शन जो 1992 तक टीवी पर क्रिकेट मैच दिखाने के लिए बी.सी.सी.आई. से पैसे मांगती थी उनसे बी.सी.सी.आई. ने सन् 2000 से 2004 तक के भारत में होने वाले मैचों के लिए 240 करोड़ रूपए वसूल किये।

क्रिकेट स्कोलर बोरिया मजुमदार ने इसके बारे में आउटलुक मैगज़ीन में एक विस्तार से एक लेख ‘हाउ क्रिकेट वाज़ सोल्ड इन इंडिया’ लिखा है, आप उसे जरूर पढियेगा। आर्थिक उदारीकरण के कारण उस समय एक नया मध्यम वर्ग उभर रहा था। उसको आकर्षित करने के लिए भारत में आये नए विदेशी ब्रांड्स जैसे पेस्पी, कोकाकोला, रीबॉक, एडिडास इत्यादि ने लोकप्रिय हो रहे एक दिवसीय क्रिकेट को खूब भुनाया। हर ओवर के बीच में होने वाला समय एक और मौका था उनके अपने उत्पाद बेचने का। ऐसे में ना सिर्फ क्रिकेट मैचों की संख्या काफी बढ़ी, बल्कि सचिन के शतक भी बढे, और क्रिकेटरों के ब्रांड अम्बेसेडर बनने से लेकर उनके करोड़पति बनने की कहानी भी। इन सब के बीच बी.सी.सी.आई. क्रिकेट के जगत का राजा कब बना किसी को पता भी नहीं चला।

पर जैसे आर्थिक मंदी का दौर चलता है, वैसे ही क्रिकेट की मंदी का भी दौर चला। 2003 में इंग्लैंड क्रिकेट बोर्ड ने क्रिकेट की गिरती लोकप्रियता को बढाने, प्रायोजकों की निराशा को दूर करने और नयी पीढ़ी को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए 20-20 ओवर के फॉर्मेट को अपने घरेलु क्रिकेट में आजमाया। उनका यह प्रयोग काफी सफल रहा। कुछ देशों ने इस नए फॉर्मेट में अंतर्राष्टीय मैच भी खेले। पर २०-२० फॉर्मेट आवश्यकता तब बनी जब वेस्ट इंडीज में खेला गया विश्व कप मुनाफे के हिसाब से फ्लॉप साबित हुआ। इसके तुरंत बाद ही 2007 में दक्षिण अफ्रीका में पहला 20-20 का विश्व कप हुआ, जिसे भारत ने महेंद्र सिंह धोनी की कप्तानी में जीता। वह क्षण आज के क्रिकेट के लिए हमेशा महत्वपूर्ण माना जायेगा क्योंकि फिर क्रिकेट आयोजकों ने 20-20 क्रिकेट को नए आयाम देने की ठान ली। आई.सी.एल. (इंडियन क्रिकेट लीग) और आई.पी.एल.(इंडियन प्रीमियर लीग) को यूरोप में खेले जाने वाले इंग्लिश प्रीमियर लीग और अमेरिका में खेले जाने वाली एन.एफ.एल. ( अमेरिकन फुटबॉल ) की तर्ज़ पर भारत के दर्शकों को पेश करने की कोशिश की गयी।

जी नेटवर्क का आई.सी.एल. जल्द ही बी.सी.सी.आई. द्वारा प्रायोजित सोनी नेटवर्क के आई.पी.एल. से हार गया और आई.पी.एल. क्रिकेट को एक नयी परिभाषा देने लगा।बी.सी.सी.आई. ने स्टार नेटवर्क को भारत 2012 से 2018 में खेले जाने मैच के प्रसारण अधिकार 3851 करोड़ रुपये में बेचे थे, तो हर साल दो महीने तक खेले जाने वाले आई.पी.एल. के लिए सोनी ने 9 साल के प्रसारण अधिकार के लिए 1.63 बिलियन डॉलर दिए। आईपीएल ने बॉलीवुड, नाच-गानों, बड़े बड़े अंतराष्टीय क्रिकेटर सबको अपनाया और हर देश के क्रिकेट सत्र को अपने हिसाब से ढाल दिया। शेन वार्न और गिलक्रिस्ट जैसे धुरंधरों ने आई.पी.एल. के लिए क्रिकेट में वापसी की, तो मलिंगा और कई वेस्ट इंडीज के खिलाडियों ने आईपीएल को अपने राष्ट्रीय टीम से पहले प्राथमिकता दी।

धीरे-धीरे क्रिकेट खेलने वाले सारे देशों में एक टी-20 लीग बन गयी, और इससे जुड़े हुए स्पेशलिस्ट खिलाडियों की उत्पत्ति हुई जो सिर्फ टी-20 खेलकर ही अपना जीवन-यापन करने की ठान चुके थे। जब आईपीएल, 2008 में, ललित मोदी के नेतृत्व में लांच हुआ तो उन्होंने साफ़ बोला था कि ‘यह प्राइम-टाइम टीवी के बहुत उपयुक्त है, और क्रिकेट जैसा बड़ा रियलिटी शो भारत में कुछ और नहीं है।’ पर खेल का व्यापारीकरण टी-20 को एक नए दौर में ले आया है। आईपीएल के साथ एक नए तरह का कल्चर भी विकसित हो रहा है। पिछले साल कुछ चुनिन्दा शहरों में जहां आईपीएल के मैच नहीं खेले जाते थे, वहाँ स्टेडियम या बड़ी जगह किराये पर लेकर ‘फैन पार्क’ नाम से मेला लगाया गया और आईपीएल के मैचों को बड़े परदे पर दिखाया गया। फैन पार्क का यह चलन इस साल जोरों से आगे बढा है।

बिहार क्रिकेट एसोसिएशन को तो बी.सी.सी.आई. ने सन् 2000 से अब तक पूरी मान्यता भी नहीं दी है। पर एक रिपोर्ट के अनुसार इस साल 21 मई को खेले गए मैच को पटना के मौइनुल हक स्टेडियम में स्क्रीन पर दिखाने के दौरान 50000 हज़ार लोग मौजूद थे। लोग शाम को ऑफिस के बाद अपने परिवार के साथ आये और चाट-फुचकों ( गोलगप्पे) के साथ आईपीएल का मजा लिया। मैं ‘लाइव मिंट’ में छपा एक लेख न्यू फैन्डम पढ़ रहा था, उसमें एक आईटी प्रोफेशनल महिला जो अपने वीकेंड पर फिरोजशाह कोटला में आईपीएल मैच देखने आई थी, उनसे जब पूछा गया कि ‘क्या आपने क्रिकेट मैच एन्जॉय किया?’ तो वो क्रिकेट के बारे में बताने से पहले ड्वान ब्रावो का ‘चैंपियन डांस’ को याद कर रही थी। टी-20 क्रिकेट ने खेल, खेल से जुड़ा व्यापारीकरण, और भारत के बढ़ते मिडिल क्लास की मनोरंजन में खर्च करने की क्षमता को ना सिर्फ एक दूसरे में मिलाया है बल्कि उन्हें अलग-अलग आयाम भी दिए हैं।

प्रो-कबड्डी लीग 2014 में एक स्पोर्ट्स मैनेजमेंट कंपनी मशाल स्पोर्ट्स और ब्राडकास्टिंग कम्पनी (जिसने बाद में मशाल स्पोर्ट्स पर अपना अधिपत्य भी जमा लिया) द्वारा लिया गया सम्पूर्ण व्यावसायिक फैसला था। आईपीएल की तर्ज़ पर जब प्रो कबड्डी लीग लांच हुआ तो टीवी पर इससे 43 करोड़ लोगों ने देखा और इसको देखने वाले ऑनलाइन दर्शकों की संख्या भी बढ़ी। आईपीएल के बाद प्रो-कबड्डी ऑनलाइन देखा जाने वाला सबसे बड़ा खेल बना। आधुनिक प्रसारण तकनीक ने अपने मल्टीपल कैमरा एंगल और स्लो-मो इफ़ेक्ट के जरिये, जैसे कबड्डी को स्क्रीन पर दिखाया यह डिजिटल दुनिया के शहरी दर्शकों को काफी पसंद आया है। रोचक बात यह है कि इसकी बढती पोलुलारिटी में कब्बडी खेल प्रशासन का हाथ नाम मात्र दिखता है। असल में यह ब्रॉडकास्टर और विज्ञापनकर्ताओं द्वारा कबड्डी को खेल व्यापार का हिस्सा बनाने का नतीजा है।

आज के समय में इन्टरनेट और डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर के फैलाव के कारण, ख़ास कर शहरी युवाओं में ऑनलाइन विडियो के प्रति झुकाव काफी बढ़ा है। स्टार इंडिया ने तीन साल के लिए आईपीएल दिखाने के लिए ग्लोबल इन्टरनेट और मोबाइल प्रसारण अधिकार 302.2 करोड़ रुपये में ख़रीदे। 2016 में स्टार के इन्टरनेट विडियो स्ट्रीमिंग प्लेटफार्म पर आईपीएल को इस बार 10 करोड़ लोगों ने देखा जो पिछले साल के 4.1 करोड़ के आंकड़े के दुगने से भी ज्यादा है। कुछ दिन पहले दुनिया के स्पोर्ट्स ब्राडकास्टिंग के एक और दिग्गज ई.एस.पी.एन. नें दो नए डिजिटल प्लेटफॉर्म्स ई.एस.पी.एन. लाइन और ई.एस.पी.एन. मोबाइल एप्प लांच किये। वो अब भारत में सोनी ई.एस.पी.एन. और सोनी पिक्चर नेटवर्क के डिजिटल प्लेटफार्म सोनी लाइव के साथ मिलकर दुनिया भर के खेल फुटबॉल, टेनिस, हॉकी, क्रिकेट, कबड्डी इत्यादि दिखाने का प्रयास करेंगे और हॉटस्टार जैसे डिजिटल माध्यम को चुनौती पेश करेंगे जो खेल के अलावा फ़िल्में और टीवी सीरीज भी देखाती हैं।

मीडिया बाइंग एजेंसी ग्रुप एम की एक रिपोर्ट ‘दिस ईयर नेक्स्ट ईयर 2016’ के अनुसार डिजिटल स्क्रीनिंग उपकरणों के बढ़ते उपयोग को नज़र में रखते हुए 2016 में डिजिटल विज्ञापनों में 7300 करोड़ रूपए लगेंगे और यह पैसा पूरे विज्ञापन जगत में इस साल लगने वाले कुल पैसों का 12.7% होगा। रिपोर्ट में ये भी कहा गया कि डिजिटल प्लेटफॉर्म्स अभी अपने ज्यादातर पैसे विज्ञापनों से कमाती है पर जल्द ही विडियो ओन डिमांड या पैसे देकर ऑनलाइन कंटेंट खरीदने की प्रवृति बढ़ेगी। हो सकता है अगले साल हॉटस्टार विश्व विख्यात श्रृंखला गेम ऑफ़ थ्रोन की तरह उनके प्लेटफार्म पर आईपीएल देखने के पैसे मांग रही हो।

यह फोटो सनराइजर्स हैदराबाद के फेसबुक पेज से ली गयी है

आज अगर आप ट्रेन या बस के सफ़र में जाते हैं तो काफी लोग अपने स्मार्टफ़ोन पर विडियो देखते नज़र आते हैं। डाउनलोड किये गए हों या यूट्यूब से देखे जा रहे हों, घर के बाहर यही आज का नया टीवी नज़र आता है। लोग अब काम से लौट रहे हों या कहीं सफ़र कर रहे हों मोबाइल और इंटरनेट के द्वारा खेल के सीधे प्रसारण का मजा अब कहीं भी लिया जा सकता है। बार-बार क्रिकेट का स्कोर पूछना, और घर पर तुरंत पहुँच कर टीवी का रिमोट दबा देने की बेचैनी को इसने काफी हद तक कम किया है। इसके अलावा अब आप खेल से जुड़े हुए तरह-तरह के कंटेंट्स जैसे हाइलाइट्स, सिक्सेस, विकेट, अन्य रिपोर्ट्स भी आप उसी समय या अपने हिसाब से देख सकते हैं। सोशल मीडिया द्वारा उसी समय इस प्रकार कि जानकारियां अपने दोस्तों के साथ शेयर भी की जा सकती हैं।

अब तो खेल के सीधा प्रसारण सोशल मीडिया के प्लेटफॉर्म्स पर भी होने लगा है। जैसे इस साल अमेरिका में एन.ऍफ़.एल. फुटबॉल का फाइनल, ट्विटर के लाइव कंटेंट के प्लेटफार्म पेरिस्कोप पर हुआ। खेल की दुनिया को टेक्नोलॉजी और उससे जुड़ी अर्थव्यवस्था ने हमेशा से ही बदला है। खेल और मनोरंजन उद्योग एक दुसरे के पर्याय हैं और विज्ञापनकर्ता उसको हमेशा एक नयी दिशा देते रहते हैं। टीवी के बाद डिजिटल प्लेटफॉर्म्स द्वारा ऑनलाइन स्ट्रीमिंग भी खेल के अनुभव को अनोखा अंजाम दे रही है। डिजिटल दुनिया खेल को और कौन से नए आयाम देगा यह आगे देखने लायक होगा।

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