यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ ऑस्ट्रेलिया (एडिलेड) से मेरी पी.एच.डी. खत्म हो जाने के बाद मुझे बताया गया कि मेरे पास दो विकल्प हैं- या तो मैं पी.एच.डी. के बाद की पढाई के लिए वहीं रुक जाऊं या भारत वापस आकर डेवलपमेंट सेक्टर में काम करूं। लेकिन मैंने इन दोनों में से कुछ भी नहीं किया। मैंने अपने दिल की आवाज़ सुनी और मैं अपने रिसर्च पेपर के विषयों पर करीब से ज़मीन पर काम करने लगी।
ऐसा, एस.बी.आई. यूथ फॉर इंडिया फ़ेलोशिप के द्वारा मुझे देश के ग्रामीण क्षेत्रों में 13 महीनों का समय बिताने के मिले मौके की वजह से संभव हो पाया। यह ना केवल ग्रामीण समुदायों को बेहद करीब से समझने का मौका था बल्कि इससे मुझे अपने ज्ञान और हुनर के इस्तेमाल से कुछ असल समस्याओं को हल करने का भी मौका मिला।
मेरी महिलाओं के स्वास्थ्य के विषय पर हमेशा से ही रुचि रही, और मैं भारत में महिला स्वास्थ्य के विषय पर काफी पढ़ भी चुकी थी। लेकिन जब मैं फेलोशिप के दौरान पहली बार अजमेर ज़िले में अपने प्रोजेक्ट लोकेशन पर गई तो मुझे पता चला कि महिलाओं और किशोरियों के स्वास्थ्य की स्थिति आर्टिकल्स और लेखों में उपलब्ध जानकारी से भी ज़्यादा खराब है।
ये महिलाएं कड़ी मेहनत करती हैं- खेतों में काम करना, पशुओं की देखभाल, पीने के पानी की व्यवस्था या फिर परिवार के सदस्यों के लिए खाना बनाना, ये सभी काम यहां की महिलाएं करती हैं, लेकिन स्वास्थ्य इनकी प्राथमिकता कभी नहीं होती।
जो बात मुझे सबसे ज़्यादा चौंकाने वाली लगी, वो थी उनके बच्चों का ठीक से विकसित ना हो पाना। जहां सरकारी नीतियां मुख्य रूप से बच्चों में कुपोषण की समस्या पर केंद्रित हैं, मुझे लगा कि किशोर लड़कियों, गर्भधारण के योग्य होने की आयु के आसपास की लड़कियों और गर्भवती महिलाओं के लिए भी कुपोषण की समस्या पर काम किया जाना ज़रूरी है, ताकि ना केवल महिलाओं बल्कि उनके बच्चों की भी मदद की जा सके।
एनीमिया का कुचक्र:
यहां काम करने के बाद मुझे पता चला कि गर्भावस्था के दौरान भी बेहद कम महिलाऐं रक्त में हीमोग्लोबिन के स्तर की जांच करवाती हैं। चार महीनों के समय में मैंने सिलोरा ब्लॉक के चार गाँवों (छोटा नरेना, चिर्र, त्योढ़, और जुंडा) की 200 किशोरियों और महिलाओं के स्वास्थ्य की जांच करवाई, और इसके नतीजे काफी चिंताजनक थे।
95 फ़ीसदी महिलाओं में रक्त की कमी यानी कि एनीमिया की पुष्टि हुई, 70 फ़ीसदी महिलाओं में वजन की कमी और कुपोषण का पता चला।
लेकिन जो तथ्य सबसे ज़्यादा चिंताजनक था वो यह था कि कई महिलाओं में गर्भावस्था के नवें माह में हीमोग्लोबिन का स्तर इतना कम था कि यह महिला और उसके होने वाले बच्चे दोनों के लिए जानलेवा था।
इसलिए अगला ज़रूरी कदम एनीमिया की समस्या और संतुलित और पौष्टिक आहार की ज़रूरत के प्रति जागरूकता फैलाना था। लेकिन इसकी अपनी अलग चुनौतियां थी।
सरकार आयरन की गोलियां तो उपलब्ध करा रही थी, लेकिन इसके बुरे स्वाद के कारण अधिकांश महिलाएं इनका सेवन नहीं करना चाहती थी। साथ ही पैसे बचाने के लिए अधिकांश परिवार रोटी और मिर्च पर गुज़ारा करते हैं और फलों व सब्जियां खरीदने में सक्षम नहीं हैं। इससे साफ होता गया कि एनीमिया और कमज़ोर स्वास्थ्य की समस्या से लड़ने के लिए पौष्टिक आहार को लेकर कदम उठाने बहुत ज़रूरी है।
सही संतुलन:
मैं कुछ ऐसा लेकर आना चाहती थी जो उसी जगह उपलब्ध हो, कीमत में कम हो और स्थानीय लोगों को उसका स्वाद भी पसंद आए, ताकि उसे यहां का समुदाय अपना सके। जल्द ही मुझे स्थानीय ‘अमृतचूर्ण’ के बारे में पता चला। यह एक ऐसा मिश्रण होता है जिसमे कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, आयरन, कैल्शियम, और मेगनीशियम जैसे ज़रूरी पोषक तत्व होते हैं। और इसमें आयरन की उच्च मात्रा होना इसकी सबसे अच्छी बात है, इसमें वह सब कुछ मौजूद था जिसकी हमें तलाश थी।
अगला कदम इस उत्पाद को तैयार करना था जो हमने वहीं के कुछ लोगों और स्वास्थ्य कर्मियों की मदद से किया। इसके वितरण के लिए हमनें इसकी साधारण सी पैकिंग की और इस पर स्पष्ट रूप से खुराक और इसे प्रयोग करने के तरीके को लिखा।
इसके बाद इसे लगभग 50 महिलाओं और लड़कियों (जो एनीमिया से पीड़ित थी) को 30 रुपये प्रति किलो के मूल्य पर उपलब्ध करवाया गया। इन महिलाओं को 10 दिनों में एक किलोग्राम के एक जार को खत्म करने के लिए कहा गया था और वापस उसे भर के ले जाने के निर्देश दिए गए। इस दौरान लगातार हम अपने उत्पाद की खपत पर नज़र रखने के लिए मीटिंग करते रहे, कभी-कभी मैंने घर-घर जाकर हमारे प्रयासों को लेकर घर के बड़ों (महिला के ससुराल पक्ष के लोगों और उनके पति) से भी बात की।
हमारा नुस्खा कितना कारगर है यह देखने के लिए हमने नियमित रूप से महिलाओं और लड़कियों के खून में हीमोग्लोबिन की जांच भी करवाई। अब करीब दो महीनों के बाद मुझे यह कहते हुए बेहद खुशी हो रही है कि इसके नतीजे काफी उत्साहवर्धक रहे हैं। जांच के बाद हीमोग्लोबिन के बढ़ते स्तर का पता चला है और जल्द ही हम पोषण को लेकर सम्पूर्ण विश्लेषण कर पाएंगे। कुछ महिलाओं ने तुरंत अमृतचूर्ण की अगली खेप के लिए स्थानीय स्वास्थ्य कर्मचारी मांगी लालजी को कॉल किया, जो हमारे उत्पाद पर और भरोसा बढाने वाला था।
जान है तो जहान है:
इन गाँवों में महिलाओं पर उनकी सासुओं का काफी प्रभाव है। कुछ मामलों में महिलाओं के चाहने के बावजूद ये उन्हें अमृतचूर्ण का सेवन नहीं करने देती हैं। लेकिन फिर भी एक स्थानीय महिला सुशिला जी अपनी दोनों बहुओं के साथ नियमित तौर पर उनकी स्वास्थ्य की जांच के लिए आती हैं । वो पोषक तत्वों की जानकारी देने वाले सत्रों में भाग लेती हैं और पक्का करती हैं कि उनकी दोनों बहुएं रोज इस चूर्ण का सेवन करें। जब मैं उनके घर गयी तो उन्होंने मुझे बताया, कि अब वो अच्छे आहार का महत्व समझ चुकी हैं। इसी क्रम में जब एक बार उनकी बहू अपने मायके गयी तो उन्होंने अपने बेटे के हाथों इस चूर्ण का एक डब्बा वहां भी भिजवाया।
मैंने यह भी देखा कि भागरिया समुदाय की महिलाऐं भी अपनी बहुओं को लेकर आ रहीं हैं, ये एक बड़े पैमाने पर उपेक्षा का शिकार समुदाय है, जो स्थानीय लोगों के साथ अधिक मेज-जोल नहीं रखता। यह अपने-आप में एक उपलब्धि थी। ऐसे ही एक बार मैंने एक युवती का वजन गलत लिख दिया, तो उसने मुझे तुरंत कहा कि यह पिछली बार के दर्ज किये गए वजन से काफी कम है! मुझे उस वक्त साफ दिख रहा था कि यहां की महिलाओं के लिए उनका स्वास्थ्य अब एक प्राथमिकता बनता जा रहा है। उनके व्यवहार में आते इस परिवर्तन को देख कर होने वाली खुशी और संतोष को बयान करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं।
“ताकत वाला” पाउडर:
अगले कदम में हम इन महिलाओं को यह चूर्ण बनाना सिखाना चाहते हैं और चाहते हैं कि वो इसे अपनी आजीविका का एक साधन बना सकें। मैं यहाँ एक और बात कहना चाहूंगी, मुझे यहां मेघराजजी के रूप में एक मज़बूत सहयोगी मिले हैं, वो एक जोशीले सामुदाइक स्वास्थ्य कर्मी हैं, जो नए विचारों को अपनाने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। वो मेरे साथ घर-घर जाकर महिलाओं से बात करते हैं और उनका उत्साह बढ़ाते हैं।
इन शानदार महिलाओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं और बेयरफीट कॉलेज के स्वास्थ्य कर्मियों के साथ काम करने का यह अनुभव मेरे जीवन के सबसे महत्वपूर्ण और सिखाने वाले अनुभव के रूप में साबित हो रहा है। गर्मी और धूल से दिनभर झूझने के बाद मैं जब मैं हर शाम मेरे कमरे में वापस आती हूं तो मुझे हमेशा अगली सुबह इन महिलाओं और युवतियों से वापस मिलने का इंतज़ार होता है।
कभी-कभी हम मासिक धर्म से जुड़े तथाकथित असहज सवालों पर साथ में हंसते हैं। हम साथ में खून के नमूने लेते हैं, जो अब उन्हें पीड़ादायक नहीं लगता, और सबसे महत्वपूर्ण हम पक्का करते हैं कि “ताकत वाला पाउडर” के नाम से प्रसिद्द हो चुके इस चूर्ण का हम सभी सेवन कर रहे हैं।