Translated from English to Hindi by Sidharth Bhatt.
फिल्म के पहले ही सीन में जब एक पाकिस्तानी एथलीट दौड़ लगाते हुए हेरोइन का एक बड़ा पैकेट बॉर्डर के एक तरफ से दूसरी तरफ फेंकता है तो, तभी यह साफ़ हो जाता है कि उड़ता पंजाब, बॉलीवुड के चालू मसालों पर बनी कोई फिल्म नहीं है। यह फिल्म कठोर सच्चाइयों और थिएटर जगत की स्वतंत्रता का सटीक मिश्रण है- जो एक कड़े सामाजिक सन्देश और हास्य की एक गूढ़ शैली के साथ मिला हुआ है, जिसे समझना कभी-कभी आसान नहीं है, लेकिन ये सब मिलकर उड़ता पंजाब को एक असरदार फिल्म बनाते हैं।
पिछले कुछ हफ़्तों में यह फिल्म काफी सारे विवादों से घिरी रही। पहले सेंट्रल बोर्ड ऑफ़ फिल्म सर्टिफिकेशन (सीबीएफसी) द्वारा फिल्म में 89 दृश्यों को हटाने की मांग किया जाना, और फिर एक कठिन क़ानूनी लड़ाई के बाद बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा फिल्म को केवल एक कट के साथ प्रदर्शन की अनुमति मिलना। सीबीएफसी द्वारा फिल्म में इतने सारे दृश्यों को हटाने की मंशा के पीछे राजनैतिक कारण साफ़ दिखाई देते हैं। यह फिल्म पंजाब में केवल ड्रग्स की गम्भीर समस्या को ही नहीं दिखाती, बल्कि नशे के इस कारोबार में शामिल उस भ्रष्ट तंत्र को भी सामने लेकर आती है, जिसकी शह पर यह सब चल रहा है। जहाँ पंजाब में नशे की समस्या और भ्रष्टाचार एक तरफ इस फिल्म का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, वहीं यह फिल्म चार अलग-अलग लोगों की कहानी है जिनके जीवन, नशीली दवाओं के व्यापार और उसके सेवन के कारण काफी गहराई से प्रभावित हुए हैं।
फिल्म के सबसे अहम और छाप छोड़ने वाले किरदार दो महिलाओं के हैं। करीना कपूर ने फिल्म में प्रीत नाम की एक युवा ऊर्जावान डॉक्टर का किरदार निभाया है जो एक नशामुक्ति केंद्र चलती है। इस तरह करीना फिल्म का मूल सन्देश सन्देश देने के साथ-साथ नशे के शिकार लोगों की जान बचाते हुए भी दिखती हैं। लेकिन जो किरदार सबसे ज्यादा असर छोड़ जाता है और हमें एक लम्बे समय तक याद रहेगा वो है आलिया भट्ट द्वारा निभाया गया एक बिहारी विस्थापित लड़की का जो हॉकी में अपना नाम बनाना चाहती है। आलिया का किरदार एक नशे के कारोबारी गिरोह के साथ तब फंस जाता है, जब उसके सामने हेरोइन के एक बड़ी खेप का खुलासा होता है।
अपने सजीव अभिनय से आलिया गहरी छाप छोड़ जाती हैं और किरदार के डर को दर्शक अंदर तक महसूस कर पाते हैं। यह किरदार उनके अनुभव से काफी ज्यादा परिपक्व है, जिसे आलिया ने पूरी ईमानदारी से निभाया है। उनका किरदार, पंजाब में गरीबी और बदहाली से नशे के गर्त की तरफ बढ़ते पंजाब के युवा की मजबूरी को एक आवाज देता है। उनके किरदार का तकलीफों से उबरना, पूरे जी-जान और बहादुरी से उनका सामना करना और कभी ना हार मानाने का जस्बा उनके अभिनय को एक अलग स्तर पर ले जाता है।
नशीली दवाओं की काली सच्चाइयों और परिणामों से यह फिल्म मुंह नहीं छुपाती। नशे के शिकार लोगों की दुर्बल काया को दिखाना हो या ड्रग ओवरडोज़ होने पर उल्टियों में लिथड़े लोगों को, या फिर नशीली दवाओं के इंजेक्शन और सुइयां, इस तरह के दृश्यों से इस फिल्म में कोई परहेज़ नहीं किया गया है। नशा छोड़ने की प्रक्रिया में होने वाली टूटन के दौरान होने वाली पीड़ा (जिसमे कुछ दृश्य नशे के आदि द्वारा खुद को नुकसान पहुंचाने के भी हैं) को बारीकी से दिखाया गया है और नशे के प्रभाव में किये जाने वाले बलात्कार को भी। यह सब दिखाना इसलिए जरुरी है, क्यूंकि यह सब सच्चाई भी है।
लेकिन यह फिल्म सबसे ज्यादा तब प्रभावित करती है जब यह किरदारों के निजी जीवन की पड़ताल करती है। सरताज जो अपने जीवन की त्रासदियों से लड़ रहा है, एक महिला को बाहर जाने के लिए पूछने के लिए किसी युवा किशोर की तरह शर्माता है। टॉमी जो किसी भी तरह ड्रग्स को छोड़ना चाहता है, लेकिन बिना नशा किये वह कोई नया संगीत नहीं बन पा रहा है। और आलिया का निभाया हुआ बेनाम बिहारी लड़की का किरदार जो अपनी खिड़की के बाहर गोवा-ट्रिप के एक विज्ञापन को देखकर उसे अपनी कल्पनाओं का रूप देती दिखती है। फिल्म के प्रभावशाली दृश्यों में से कुछ वो हैं जिनमे आलिया और शाहिद के किरदार आपस में बात कर रहे हैं, और दोनों नशे के किसी इंसान के जीवन पर होने वाले प्रभाव पर अपनी-अपनी बात रख रहे हैं।
बेहतरीन और बेजोड़ अभिनय ही इस फिल्म को ऊंचाई पर ले जाता। फिल्म की कहानी में आने वाले अलग-अलग मोड़ों के बावजूद दर्शक अपनी सीट पर चिपके रहते हैं, क्यूंकि फिल्म के किरदारों में पेचीदगी के साथ-साथ उनका मानवीय पहलु भी दिखता है। यहाँ फिल्म के सिनेमेटोग्राफर राजीव रवि का ज़िक्र करना बेहद जरुरी हो जाता है क्यूंकि यह फिल्म, बॉलीवुड में एक अर्से से भुनाई जा रही पंजाब की प्रचलित सुनहरी छवि के उलट उसका एक अलग काला और डरावना चेहरा सामने लेकर आती है। इसी तरह से फिल्म के संगीतकार अमित त्रिवेदी का भी ज़िक्र किया जाना बेहद जरुरी है क्यूंकि उनका शानदार संगीत फिल्म के कथानक के साथ पूरी तरह से न्याय करता है।
हालांकि फिल्म की एक नकली प्रति पहले से ही इंटरनेट पर मौजूद है, लेकिन इसके बावजूद इस फिल्म को सिनेमाघर में जाकर फिल्म के लिए पैसे देकर देखिये। यह केवल एक पैसावसूल फिल्म नहीं बल्कि एक जरुरी राजनैतिक बयान है, और असहमति और अभिव्यक्ति की आज़ादी की जीत का प्रतीक है।
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