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कैसे वज़ीरपुर के इन युवा श्रमिकों ने अपने अधिकारों की लड़ाई में जीत हासिल की

अभिषेक झा:

Translated from English to Hindi by Sidharth Bhatt.

उत्तरी-पश्चिमी दिल्ली के वज़ीरपुर औद्योगिक क्षेत्र में मोबाइल चार्जर पावर बैंक बनाने वाली कंपनी एस.बी. इंडस्ट्रीज के करीब 40 श्रमिकों जिनमे से अधिकांश की उम्र 30 वर्ष से कम है ने कंपनी प्रबंधन के खिलाफ एक आंशिक जीत हासिल की है। सरकार द्वारा तय की गयी न्यूनतम मजदूरी, ओवरटाइम के लिए सामान्य से दोगुने वेतन और सरकार द्वारा घोषित अवकाशों की मांग और इससे पूर्व में दिए गए कम वेतन की भरपाई की मांग को लेकर ये श्रमिक 21-मई से हड़ताल पर हैं।

दोनों पक्षों के बीच हुए एक समझौते के अनुसार, कंपनी प्रबंधन सभी श्रमिकों को अकुशल श्रमिक श्रेणी के लिए निर्धारित न्यूनतम मजदूरी देने को तैयार हो गया है। हालांकि श्रमिकों ने इस जीत को आंशिक करार दिया है और वे अगले वेतन के आने का इंतज़ार कर रहे हैं ताकि कंपनी प्रबंधन के वादों की पुष्टि की जा सके।

130 श्रमिकों की संख्या वाली इस इकाई के सामान्य श्रमिक जो किसी न किसी प्रकार का तकनीकी प्रशिक्षण ले चुके हैं को मिलने वाला वेतन बेहद कम है, और इसी वेतन से उन्हें अपनी शिक्षा का भी खर्च उठाना पड़ता है। इनमे से कुछ श्रमिक स्नातक की पढाई भी कर रहे हैं ताकि भविष्य में उन्हें बेहतर अवसर मिल सके और इस पढाई का खर्च भी उन्हें अपने वेतन से ही चुकाना होता है। वहीं कई अन्य ऐसा करने में सक्षम नहीं हैं, क्यूंकि उनका वेतन पूरी तरह से पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाने में ही खर्च हो जाता है।

कैसे हुई विरोध की शुरुवात:

दिल्ली सरकार द्वारा अप्रैल-2016 से अकुशल श्रेणी के मजदूरों की न्यूनतम मजदूरी को 9568/- रूपए प्रति माह निर्धारित किया गया है। वहीं आंशिक रूप से कुशल और कुशल श्रेणी के मजदूरों की न्यूनतम मजदूरी क्रमशः 10582/- रूपए प्रति माह और 11622/- रूपए प्रति माह निर्धारित की गयी  है। जबकि कंपनी शुरू होने के समय (करीब 2 साल) से यहाँ श्रमिकों को 6500/- से 9000/- रूपए प्रति माह (पी.एफ. और ई.एस.आई. छोड़कर) तक का वेतन दिया जा रहा था। यूथ की आवाज़ ने इस तथ्य की पुष्टि के लिए इस समय के दौरान कार्यरत श्रमिकों की बैंक पासबुक में उनके वेतन के एंट्रियों की जांच की (श्रमिकों के कंपनी पहचान पत्र द्वारा उनके एस.बी. इंडस्ट्रीज के श्रमिक होने की पुष्टि की गयी)। जहाँ एक और उन्हें अकुशल श्रमिक से भी कम वेतन दिया जा रहा था वहीं उनसे आंशिक रूप से कुशल या फिर कुशल श्रमिक का काम लिया जा रहा था।

पंचिंग लाइन, जहाँ पावर बैंक के हिस्सों को जोड़ा जाता है, पर काम करने वाले मनीष जिन्हें अपने काम की महत्ता पर गर्व है, यूथ की आवाज़ को बताते हैं कि श्रमिकों के अंदर असंतोष दिवाली के बाद से ही पनप रहा था कंपनी प्रबंधन ने कहा, “तुम हमें उत्पादन बढ़ा कर दो और हम तुम्हें बोनस और वेतन में 20% की वृद्धि देंगे।” दिवाली तक उत्पादन तो बढ़ गया लेकिन हमें किसी भी तरह का बोनस नहीं मिला।

इसके बावजूद सभी श्रमिक काम करते रहे। दिवाली के 2 महीने के बाद एक बार फिर उन्हें उत्पादन बढ़ाने के लिए कहा गया। मनीष बताते हैं कि सभी श्रमिकों ने मिल कर एक लाइन पर उत्पादन 2000 यूनिट से बढाकर 3000 से 4000 यूनिट प्रति दिन तक कर दिया। जब श्रमिकों ने हड़ताल शुरू की तब तक फैक्ट्री में एक दिन में ३ प्रोडक्शन लाइनों में कुल 9000 यूनिट तक उत्पादन हो रहा था।

जहाँ फैक्ट्री के उत्पादन में ५०% से १००% की बढ़ोतरी हुई थी, वहीं श्रमिकों का वेतन केवल 400 से 500 रूपए बढ़ाया गया। मनीष बताते हैं कि, “जब वेतन देने का समय होता था वो (कंपनी प्रबंधन), कंपनी के घाटे में होने और खराब पावर बैंक बनाने के जैसे बहाने बनाने लगते थे।

मनीष ने आरोप लगते हुए कहा कि मई माह में कंपनी प्रबंधन के लोग श्रमिकों से मिले और उन्हें अपने वेतन पर संतुष्ट रहने को कहा। १४ मई को हुई इसी तरह की एक बैठक में कंपनी प्रबंधन ने श्रमिकों से एक हफ्ते का समय मांगा. मनीष ने यह भी आरोप लगाया की, “हमने उनसे किसी भी श्रमिक को ना निकालने की भी बात कही थी लेकिन उन्होंने अगले ही हफ्ते बिना किसी कारण कुछ लोगों को नौकरी से निकाल दिया और कुछ लोगों को एक या दो हफ़्तों के लिए बर्खास्त कर दिया।

जब एक हुए श्रमिक:

सूर्य प्रकाश (बाएँ से तीसरे) ने अपने मोबाइल पर विरोध प्रदर्शन को रिकॉर्ड किया

21-मई को जब श्रमिकों ने वेतन में वृद्धि को लेकर कंपनी से साफ़ बात करनी चाही तो, प्रबंधन ने उनसे कहा कि अगर उन्हें वेतन में बढ़ोतरी चाहिए तो वे नौकरी छोड़कर जा सकते हैं। इसके बाद करीब 40 श्रमिकों ने फैक्ट्री के बाहर जाकर प्रदर्शन करना शुरू कर दिया। तब से इन श्रमिकों के फैक्ट्री के अंदर आने पर रोक लगा दी गयी।

यह 29-मई का दिन था जब श्रमिकों को वापस बात करने के लिए बुलाया गया। हालांकि श्रमिकों के अनुसार कंपनी प्रबंधन ने 6 सदस्यीय दल में महिला श्रमिकों की मौजूदगी में किसी भी तरह की बात करने से इंकार कर दिया। इसका कारण उन्होंने कंपनी प्रबंधन में किसी भी ऐसी महिला जो उनसे बात कर सके, का ना होना बताया। श्रमिकों ने भी महिला सदस्यों का समर्थन करते हुए इस बैठक का बहिष्कार कर दिया। कंपनी प्रबंधन ने इस बात पर 1-जून तक किसी भी तरह की बात या समझौता करने से इंकार कर दिया।

29-मई को क्रांतिकारी नौजवान सभा के कार्यकर्ता नयन ज्योति ने श्रमिकों के प्रदर्शन के बारे में अपने फेसबुक पेज पर लिखा, ” मजदूर एकता जिंदाबाद के नारों के अलावा वहां ‘बनिया राज नहीं चलेगा’ और ‘जातिवाद मुर्दाबाद’ जैसे नारे भी लगाए जा रहे थे। साफ़ है की लोग इस बात को भलीभांति जानते थे कि श्रमिकों के इस शोषण में जातिवाद भी पूरी तरह से शामिल था। इतने में फैक्ट्री मालिकों के कॉल करने के तुरंत बाद लाठी डंडों के साथ तीन पुलिस वैन वहां पहुँच गयी और उनके साथ खुद ए.सी.पी. भी वहां पहुंचे और श्रमिकों को बाहरी तत्वों यानि कि हम जैसे सामाजिक कार्यकर्त्ताओं के बहकावे में ना आने के लिए समझाने लगे। लेकिन प्रबंधन से नाखुश श्रमिकों ने शांति से लेकिन मजबूती के साथ पुलिस और कॉर्पोरेट जगत की शोषणकारी विचारधारा के खिलाफ मजदूर एकता के विश्वास को और सुदृढ़ करते हुए उनकी बात को तभी और बाद में भी सुनने से इंकार कर दिया।

न्यू सोशलिस्ट इनिशिएटिव के सदस्य और शोधार्थी नवीन चन्दर इन श्रमिक प्रदर्शनों के एक और पहलु पर प्रकाश डालते हुए कहते हैं, “यह सभी श्रमिक काफी युवा हैं और शायद अधिकाँश की यह पहली नौकरी भी होगी, इन्हे कंपनी प्रबंधन से अपनी मांगों को लेकर बात करने का कोई पूर्व अनुभव नही है और ना ही यूनियन के साथ काम करने का कोई अनुभव है। ऐसे में ये प्रदर्शन काफी महत्वपूर्ण और विशेष हैं। लेकिन ऐसा नहीं है कि श्रमिक अपनी परिस्थितियों और अन्य कारणों की वजह से बिना किसी के सहयोग के खुद को एकजुट नही कर पाते हैं।” उन्होंने इसी में जोड़ते हुए आगे कहा कि वज़ीरपुर में इस तरह के प्रदर्शन और हड़तालें काफी आम हैं, यह उनके लिए इन प्रदर्शनों को आयोजित करने का ज्ञान प्रदान कर सकती हैं।

मनीष ने भी मुझे पहले बताया कि, “यहाँ (वज़ीरपुर) के कुछ लोग हमारे साथ पहले काम कर रहे थे। उनसे हमें इन सबकी जानकारी मिली और हमने कुछ अन्य यूनियनों से भी इन प्रदर्शनों और हड़ताल को आयोजित करने के लिए मदद ली।” जब उनसे यह पूछा गया की उन्हें सामाजिक कार्यकर्त्ताओं के बारे में कैसे पता चला तो मनीष ने बताया की जब यूनियन के लोग कंपनी प्रबंधन को बात करने के लिए नही मना पाये तो उन्होंने उसी क्षेत्र के एक सामाजिक कार्यकर्ता रघु राज की सहायता लेने का निर्णय लिया।

श्रमिकों ने लेबर इंस्पेक्टर के फैक्ट्री आने पर उनके समक्ष विरोध प्रदर्शन किया

हालांकि सामाजिक कार्यकर्ताओं के इस मुहिम में शामिल होने से पहले ही श्रमिकों ने कंपनी प्रबंधन को झुकाने के लिए अपनी रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया था। इसके लिए श्रमिक कभी-कभी उत्पादन दर को धीमा कर देते थे। एक अन्य श्रमिक धर्मेंद्र ने यूथ की आवाज़ को बताया कि यह कदम कंपनी के द्वारा किये गए उत्पीड़न, उनसे उत्पादन बढ़ाने के लिए हर बार अलग व्यक्ति को भेजकर वेतन बढ़ाने के लिए किये गए झूठे वादों के खिलाफ लिया गया था।

इन सब तरीकों को अपनाने के बाद ही श्रमिकों ने दिल्ली की सत्ताधारी आम आदमी पार्टी के मजदूर संघ के एक सदस्य से शालीमार बाग़ की विधायक बन्दना कुमारी के दफ्तर में संपर्क किया। पैकिंग डिपार्टमेंट में काम करने वाले सूरज ने मेरे विधायक कार्यालय में इंतज़ार करने के दौरान बताया कि, “30-मई को कंपनी प्रबंधन ने पैसे देकर कुछ गुंडों को फैक्ट्री के गेट पर तैनात कर दिया ताकि श्रमिकों को फैक्ट्री के अंदर आने से रोका जा सके। वो हमें सुनने के लिए भी तैयार भी नही थे। हम इस कड़ी गर्मी में पिछले 3 हफ़्तों से लगातार प्रदशन कर रहे हैं।” सूरज ने आगे बताया की जिन 40 मजदूरों ने इस प्रदर्शन की शुरुवात की, उन्हें कहा गया है कि अगर वो फैक्ट्री में दुबारा काम करना शुरू भी करते हैं तो उन्हें वही वेतन दिया जाएगा जो उन्हें फैक्ट्री में अपने काम शुरू करने के समय पर दिया जाता था। यह फैक्ट्री में कम कर रहे मजदूरों समेत सभी को सन्देश देने की कोशिश थी कि यदि उन्होंने इस तरह के प्रदर्शनों में हिस्सा लिया तो उनका वेतन जो 500/- से 1000/- रुपये तक बढ़ाया गया है, वह वापस घटा दिया जाएगा।

सूरज ने मुझे यह भी बताया कि पारिवारिक जिम्मेदारियों की वजह से उसे अपनी पढाई बीच में ही छोड़नी पड़ी। सूरज की माँ जो घरों में काम करती हैं उसके आलावा वही घर में कमाने वाली हैं। इसके बावजूद कंपनी प्रबंधन के द्वारा हड़ताल को तोड़ने के लिए दिए जा रहे प्रस्तावों को सूरज ने स्वीकार नही किया है। सूरज ने यह भी आरोप लगाया कि कंपनी प्रबंधन मजदूरों को अलग से काम पर वापस लौटने के लिए वेतन में वृद्धि के प्रलोभन दे रहा है।

विधायक कार्यालय के अंदर रघु राज और नवीन ने लेबर बोर्ड के सदस्यों से कंपनी के खिलाफ कार्यवाही करने की मांग की।23 वर्षीय एक अन्य हड़ताली श्रमिक विकास ने भी इन्ही मांगो को लेकर एक पत्र लिखा जबकि उसे भी इस तरह की बात करने का कोई पूर्व अनुभव नही है।

विकास भी सूरज की ही तरह अपने परिवार की जरूरतों में हाथ बँटाता है और अपनी बहनों की शिक्षा में आर्थिक रूप से सहायता करता है। उसकी बहन की पढाई का खर्च जहाँ 20000/- रूपए से 24000/ रूपए प्रति वर्ष है, वहीं गाजियाबाद में अपने परिवार के साथ रहने वाले विकास को वज़ीरपुर तक सफर करने में प्रति माह 3000/- रूपए का खर्च आता है।

श्रमिकों के दस्तावेजीकरण और एकता को देखते हुए और उनको विधायक कार्यालय के लेबर बोर्ड मेंबर के द्वारा आश्वाशन दिए जाने के बाद विचार विमर्श के अगले दिन वो लेबर इंस्पेक्टर से मिलने को लेकर आश्वस्त थे।

क्या कहता है कानून:

रोचक बात यह है कि ये श्रमिक बजाय हड़ताल और प्रदर्शन करने के सीधा श्रम विभाग में शिकायत दर्ज करा सकते थे, जैसा कि साफ़ है, निर्धारित वेतन से कम देने के कारण यह कंपनी न्यूनतम मजदूरी अधिनियम का सीधा उल्लंघन कर रही थी। श्रमिकों के पास वो सभी दस्तावेज़ मौजूद थे जिनके आधार पर कंपनी मालिकों पर क़ानूनी कार्यवाही कि जा सकती थी।

विकास (सबसे बाएँ), मनीष, और अंजलि ने मजदूरों की बात रखी

खराब गुणवत्ता के उत्पाद बनाने की बात कहकर कम मजदूरी देने की बात भी क़ानूनी रूप से स्वीकार नही की जा सकती। मजदूरी अधिनियम के अनुसार ऐसा करने से पूर्व नियोक्ता को कर्मचारी को उचित कारण देने जरुरी हैं। लेकिन श्रमिकों का वेतन शुरू से ही न्यूनतम वेतन से कम रहा।इसी तरह फैक्ट्री एक्ट के अधिनियम 59 और 79 के अनुसार ओवरटाइम के लिए अतिरिक्त मजदूरी ना देने के कारण श्रमिकों के पास कंपनी मालिकों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने के लिए यह एक सशक्त हथियार था। ओवरटाइम के लिए अतिरिक्त मजदूरी ना देना और छुट्टियों को लेकर श्रमिकों को परेशान करना, फैक्ट्री एक्ट के अनुसार इसके लिए कंपनी मालिकों पर 2 लाख रूपए का जुर्माना या 2 साल की कैद या फिर दोनों लगाए जा सकते हैं।

इसके अतिरिक्त श्रमिकों को सरकार द्वारा घोषित अवकाश भी नहीं दिए जा रहे थे। यहाँ तक की 1-मई को मजदूर दिवस के दिन भी उन्हें अवकाश नहीं दिया गया। संविदा पर लिए गए श्रमिक जिन्हे एक पहचान पत्र के लिए भी काफी संघर्ष करना होता है ताकि ये पता चल सके की वो किस कंपनी में काम कर रहे हैं ऐसे श्रमिकों के विपरीत एस.बी. इंडस्ट्रीज के श्रमिकों के पास सभी जरुरी दस्तावेज मौजूद थे। कंपनी मालिक खुलेआम कानून का उल्लंघन कर रहे थे। इसके बावजूद श्रमिकों ने आधिकारिक तौर पर कोई भी शिकायत नहीं की।

मैंने नयन से जब इस बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि क़ानूनी कार्रवाहियों में लगने वाले लम्बे समय के कारण श्रमिकों के पास इतने लम्बे समय तक काम ना करने का विकल्प नहीं था।

वज़ीरपुर में इस प्रकार मजदूर अधिनियम के उल्लंघन के कई मामले सामने आए हैं। 2014 में 23 हॉट रोलर प्लांट के करीब 1000 मजदूरों के संगठन ने ग्राम रोल्ला मज़दूर समिति के झंडे तले हड़तालों का आयोजन किया, लेकिन श्रम विभाग के आदेशों बावजूद फैक्ट्री मालिकों ने कोई कारवाही नहीं की। सरकार के निष्पक्ष होने की धारणा के बावजूद इस प्रकार की समस्याएँ श्रमिकों और फैक्ट्री मालिकों के संयुक्त प्रयासों से ही हल हो पाती हैं। इसी प्रकार सन् 2012 में विरोध प्रदर्शनों के बाद वज़ीरपुर के श्रमिकों को ई.एस.आई. कार्ड्स और सप्ताह में बुधवार के दिन अवकाश प्राप्त हुआ।

सरकारी तंत्र इन मुद्दों को सुलझाने में कितना सफल रहा यह 1984 से 2001 के बीच दिल्ली सरकार के आधिकारिक आंकड़ों से साफ़ हो जाता है। विवादों को सुलझाने का प्रतिशत प्रभावित मजदूरों के प्रतिशत से काफी कम है। इसी कारण नयन ने बताया कि किस प्रकार कंपनी प्रबंधन पर दबाव बनाने के लिए अन्य विकल्पों का प्रयोग जरुरी हो जाता है।

ज़ारी है हड़ताल:

2 सालों से मजदूर अधिनियम के हो रहे कथित उल्लंघन के बाद 31-मई को फैक्ट्री इंस्पेक्टर, शालीमार बाग़ की विधायक बन्दना कुमारी और वज़ीरपुर के विधायक राजेश गुप्ता के साथ श्रमिकों का एक दल ने कंपनी प्रबंधन के साथ बात शुरू की।

फैक्ट्री इंस्पेक्टर की उपस्थिति में कंपनी प्रबंधन नें एक लिखित अनुबंध साइन किया जिसमे मजदूरों द्वारा न्यूनतम मजदूरी ना देने तक के समय तक के लिए की गयी पैसों की मांग को छोड़कर शेष अन्य मांगे मान ली गयी। हालाँकि इसके बाद कंपनी प्रबंधन नें मजदूरों की बहाली को लेकर विभिन्न दस्तावेजों की मांग कर उन्हें काफी परेशान भी किया।

काफी मशक्कत के बाद श्रमिकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं नें कंपनी प्रबंधन के साथ 6-जून को एक समझौता किया, जिसके कारण 6-जून से सभी प्रदर्शनकारी मजदूरों को वापस बहाल कर दिया गया। हालांकि कंपनी प्रबंधन नें केवल अकुशल श्रमिकों की श्रेणी के ही न्यूनतम वेतन देने की ही शर्त स्वीकार की। कुछ श्रमिकों को शायद इससे अधिक वेतन भी मिले पर इसकी कोई पुष्टि नहीं हो पायी।

ऐसा लगता है की श्रमिकों को दिए जाने वाली पिछली बकाया राशि जो करीब 30 लाख रूपए की है और लम्बी क़ानूनी लड़ाई के डर नें कंपनी को वापस श्रमिकों को बहाल करने के लिए बाध्य किया।

एक सफल लड़ाई:

अनुबंध साइन होने के बाद ख़ुशी मानते श्रमिक

हालांकि अभी तक फैक्ट्री में कोई यूनियन नहीं है, लेकिन मनीष, विकास, और अंजलि (40 प्रदर्शनकारी श्रमिकों में शामिल 2 महिला श्रमिकों में से एक जो प्रबंधन से की जाने वाली बात-चीत का हिस्सा रही ) के आलावा अन्य श्रमिकों को भी खुद को नियोजित करने के लिए अपनी-अपनी भूमिकाओं का ज्ञान हो चुका है। दूसरी महिला श्रमिक का नाम रजनी है, शायद जिसके माता-पिता कम वेतन के कारण उसके यहाँ काम करने से खुश नहीं थे और चाहते थे कि वो कोई और नौकरी खोज ले। सूर्य प्रकाश जिन्होंने इस विरोध प्रदर्शन और बातचीत  का दस्तावेजीकरण फ़ोन पर किया, उनके स्कूल के दिनों से पार्ट टाइम नौकरी कर रहे हैं। सूर्य प्रकाश दिल्ली यूनिवर्सिटी के ओपन लर्निंग प्रोग्राम से अब बी.ए. की पढाई कर रहे हैं ताकि वो कोई बेहतर नौकरी पा सकें।

कंपनी मैनेजमेंट के पहली बार 31-मई को समझौता साइन करने के बाद से ही मिठाइयां बँटनी शुरू हो चुकी थी, इसी बीच सूरज नें इस पत्रकार से जब पूछा “इंक़लाब का मतलब क्या होता है?” तो मैंने उसे तुरंत इसका अर्थ समझाया, और मुझे पता था की वो मुझसे कहीं बेहतर इंक़लाब को समझता है।

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