Site icon Youth Ki Awaaz

कैसे डी.यू. के एडहॉक शिक्षक नौकरी की अनिश्चितता, कम वेतन और भेदभाव से परेशान हैं

NEW DELHI, INDIA - DECEMBER 7: Members of Delhi University teacher's association shout slogans against the present vice chancellor in front of his at North campus on Monday, December 7, 2009. The teachers were protesting against the introduction of the biometric attendance system. (Photo by Kaushik Roy/India Today Group/Getty Images)

मुकेश कुमार मीना:

दिल्ली विश्वविद्यालय में आज के समय चार-चार माह के अनुबंध के आधार पर काम करने वाले अस्थायी एडहाॅक सहायक प्रोफेसरों की संख्या लगभग 4500 के ऊपर पहुँच गयी है। विश्वविद्यालय में बहुत से लोग 10 वर्षों से ज्यादा एडहाॅक स्थिती में कार्य कर रहे हैं, कई विभाग तो काॅलेज में एडहाॅक के भरोसे ही चल रहे हैं। इन एडहाॅक की सेवा की शर्तें बहुत ही प्रतिकूल हैं। इनको बिना कोई कारण बताए पदमुक्त करने के प्रावधन इनके नियुक्ति पत्र में दिये गये हैं। गर्मियों की छुट्टीयों में इन्हें दो या उससे अधिक माह का एक लम्बा ब्रेक दिया जाता है और जुलाई के माह में पुनः कार्य पर लगाया जाता है।

इन एडहाॅक शिक्षकों के लिए यह ब्रेक बहुत ही अनिश्चितता से भरा होता है। इस ब्रेक के दौरान ये एडहाॅक, सामान्य स्थायी शिक्षकों की तरह परीक्षा की काॅपीयों के मूल्यांकन से जुड़े रहते हैं। इसके अतिरिक्त ये बिना किसी लिखित प्रावधनों के बावजूद जुलाई में वापस नियुक्ति की उम्मीद में काॅलेज के सभी कार्य करने को उत्सुक रहते हैं। इसके पीछे एक बड़ा कारण जुलाई में पुर्ननियुक्ति के साथ गर्मियों के ब्रेक के वेतन का जुड़ा होना है। कई बार जो एडहाॅक नये सत्र के पहले दिन किसी भी दिल्ली विश्वविद्यालय के काॅलेज को ज्वाईन नहीं कर पाते हैं तो उनकी गर्मियों की छुट्टीयों की तनख्वाह समाप्त हो जाती है। इस नियम के शिकार बहुत से एडहाॅक हर साल होते हैं।

एडहाॅक टीचर की पुनर्नियुक्ति सीनियर प्रोफेसर, काॅलेज प्रिंसिपल तथा हैड आॅफ डिर्पोटमेंट पर निर्भर होती है। जिसके कारण इनको हमेशा दबाव सहन करना पड़ता है। देखने में आता है कि इसी दबाव के कारण इनको अपने कार्य के अलावा दूसरे टीचरों के कार्य भी करने पड़ते हैं। जिसका कोई भी एहसान दूसरे स्थायी टीचर स्वीकार नहीं करते हैं। ज्यादातर कमिटियों के काम अनौपचारिक रूप से एडहाॅक टीचर ही पूरा करते हैं। एडहाॅक को चार माह में केवल 2 छुट्टीयाँ ही लेने का प्रावधान है। जिस कारण ये कोई शैक्षणिक कार्यक्रम बाहर जाकर करने में असमर्थ होते हैं, जो इनके लिये अपना शैक्षणिक विकास करने में बाधा डालता है।

कुल मिलाकर, यह कहा जा सकता है कि ये एडहाॅक टीचर काॅलेज में सबसे कमजोर कड़ी के रूप में होते हैं। जब ये अन्य स्थायी टीचर, नाॅन टीचिंग स्टाफ, प्रिंसिपल व विद्यार्थियों के साथ व्यवहार करते हैं तो इनको कई प्रकार के दबावों का सामना करना पड़ता है। दिसम्बर 2007 तक बिना किसी ई.सी. (एग्जीक्यूटिव काउंसिल) रेजोल्यूशन  के  एडहाॅक नियुक्तियाँ दिल्ली विश्वविद्यालय में होती रही, जिसमें चार-चार माह के लिए किये अनुबंधों को बिना पुनः साक्षात्कार के, एक दिन का विराम देकर अगले चार माह के लिए बढ़ा दिया जाता था।

दिसम्बर 2007 में एडहाॅक, ई.सी. (एग्जीक्यूटिव काउंसिल) रेजोल्यूशन का प्रावधान किया गया। उल्लेखनीय है यह डी.ओ.पी.टी. (डिपार्टमेंट ऑफ़ पर्सनल एंड ट्रेंनिंग) के और यू.जी.सी. (यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन) के, एडहाॅक नियुक्तियाँ के विरुद्ध दिये गये निर्देशों के कारण किया गया था। दिल्ली विश्व विद्यालय में इस रेजोल्यूशन का खुले आम उल्लंघन किया गया है। कई काॅलजों में मनमाने तरीके से साक्षात्कार होते हैं, कहीं साक्षात्कार भी नहीं करवाये जाते हैं। साक्षात्कार के लिए कितने उम्मीदवार बुलाये जाएं, यह सदैव विवादास्पद रहा है। ये साक्षात्कार काॅलेज प्रशासन और सीनियर प्रोफेसर के आधिपत्य को बनाए रखनें और एडहाॅक के शोषण को जारी रखने का साधन मात्र बन गए है।

दिल्ली विश्व विद्यालय में एडहाॅक की संख्या बढ़ने के कारणों के प्रमुख कारण इस प्रकार है-

1). यहां 1 996 में दिल्ली यूनिवर्सिटी नें आरक्षण प्रावधनों को लागू किया, तथा 28 सितम्बर 2013 तक 14 पॉइंट रोस्टर चलाया। दिल्ली यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार ने कोर्ट में 2/7/97 से डी.ओ.पी.टी. के निर्देशों के अनुसार 200 पॉइंट पोस्ट बेस रोस्टर लागू करने की बात स्वीकारने के बाद भी 28 सितम्बर 2013 तक ई.सी. रेजोल्यूशन 64 के नये 200 पॉइंट पोस्ट बेस रोस्टर को लागू करने तक विभागों के अनुसार ही इस नये रोस्टर के कारण बहुत से लोगों की सीटें समाप्त हो गई तथा इसमें उत्पन्न अस्थिरता के कारण फिर पुराने एहहाॅक की जगह नये एडहाॅक रखे गये। यह एक अस्थिर रोस्टर है जिससे कभी स्थायित्व संभव नहीं है, अतः स्थायी नियुक्तियाँ इससे संभव नहीं हो सकी हैं।

2). वर्कलोड में अस्थिरता और दिल्ली विश्व विद्यालय में होने वाले परिवर्तन भी एडहाॅक की संख्या बढ़ाने के पीछे बड़े कारण रहे हैं। 2007 में ओ.बी.सी. (अदर बैकवर्ड कास्ट) के हायर इजुकेशन में आरक्षण का प्रावधन आने पर 54% सीटें बढ़ायी गयी, जिसके कारण ओ.बी.सी. विस्तार से शिक्षकों की संख्या में भी बढौतरी की गई।

2007 के बाद से दिल्ली विश्वविद्यालय नें बहुत से परिवर्तन किये जिसने वर्कलोड को अस्थिर बना दिया। इससे एडहाॅक बाहर और भीतर तथा एक काॅलेज से दूसरे काॅलेज में स्थानांतरित होता रहा। इन परिवर्तनों में तीन वर्षीय वार्षिक प्रणाली को तीन वर्षीय सेमेस्टर प्रणाली में बदलना, तीन वर्षीय सेमेस्टर को चार वर्षीय सेमेस्टर में बदलना, चार वर्षीय सेमस्टर को पुनः तीन वर्षीय सेमेस्टर में बदलना, तीन वर्षीय सेमेस्टर को वापस चॉइस बेस्ड क्रेडिट सिस्टम में बदलना। दिल्ली विश्वविद्यालय में हो रहे इन परिवर्तनों का सीधा असर एडहाॅक पर पड़ा, न तो वर्कलोड स्थिर हुआ और ना ही नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू हुई।

3). दिल्ली विश्वविद्यालय में नियुक्ति प्रक्रिया की प्रणाली दिल्ली विश्वविद्यालय के अपने सेलेक्शन कमेटी से सम्बंधित प्रावधान है। जिसमें काॅलेज के स्तर पर नियुक्ति के लिए सेलेक्शन कमेटी के लिए विशेषज्ञों, ओबजरवर, वाईस चांसलर प्रतिनिधी की नियुक्ति के लिए अनुमति रजिस्ट्रार के ऑफिस से लेनी पड़ती है।

लेकिन पिछली नियुक्तियों की प्रक्रिया में सेलेक्शन कमेटी में यह पैनल, केवल कुछ काॅलेजों और विभागों को ही प्राप्त हुआ। जिससे 2014 से नियुक्तियाँ शुरू होने के बावजूद, दो वर्षों में केवल 800 नियुक्तियाँ ही संभव हो सकी। इसके बाद वाईस चांसलर के बदले जाने के कारण तथा नये वाईस चांसलर के द्वारा पुनः सेलेक्शन कमेटी का पैनल प्राप्त करने के निर्देश के कारण नियुक्तियाँ अस्थायी रूप से रूक गयी। जिससे एडहाॅक समस्या बनी रही है।

4). दिल्ली विश्वविद्यालय के काॅलेजों का विभिन्न प्रकार की संस्थाओं के अधीन आना। दिल्ली विश्वविद्यालय में युनिवर्सिटी के काॅलेज, दिल्ली सरकार के काॅलेज, और ट्रस्ट के काॅलेज आते हैं। जिनकी अपनी अपनी गवर्निंग बाॅडीज हैं। इनमें विशेषकर ट्रस्ट के काॅलेजों की अपनी अलग-अलग नीतियाँ है। रोस्टर मेन्टेन करना, विज्ञापन जारी करना, नियुक्तियाँ के लिए साक्षात्कार आयोजित करना इनकी ही जिम्मेदारी है। ट्रस्ट के काॅलेजों के अंतर्गत कुछ अल्पसंख्यक काॅलेजों में अपनी अल्पसंख्यक मान्यता के तहत आरक्षण पर ओ.बी.सी. की भागीदारी को लेकर विरोध के चलते स्थायी नियुक्तियों की जगह एडहाॅक नियुक्तियाँ की जा रही हैं। इसी प्रकार अन्य ट्रस्टों के अपने सामाजिक विचार, नियुक्तियों में हावी रहते हैं।

5). काॅलेज प्रशासन का एडहाॅक नियुक्तियों के पक्ष में होना। एडहाॅक हर काॅलेज में बिना किसी विरोध के कार्य करता है, अतः काॅलेज प्रशासन कमेटीयां, सेमीनार, तथा अन्य प्रोग्रामों के आयोजन, परीक्षा आयोजन इत्यादी कार्यों के लिए एडहाॅक की सेवाएं लगातार लेना चाहते हैं, जो उनकी संख्या में निरंतर वृद्धि कर रहा है।

इसके अतिरिक्त राजनैतिक दलों के द्वारा शिक्षा के निजीकरण की नीतियों के तहत, दिल्ली विश्वविद्यालय की स्थापित छवी को समाप्त कर निजी और विदेशी विश्वविद्यालयों को बढ़ावा देने के तर्क भी प्रस्तुत किये जा रहे हैं। कुछ सामाजिक कार्यकत्ताओं का कहना है कि, पूर्व शिक्षा मंत्री कपिल सिब्बल के काल में विदेशी विश्वविद्यालयों को बढ़ावा देने की नीति आज भी जारी है। जब दिल्ली विश्वविद्यालय से शिक्षक बेरोजगार होंगे, तो वह इन निजी विश्वविद्यालयों की ओर रूख करेंगे और इसके तहत दिल्ली विश्वविद्यालय में नियुक्तियाँ नहीं की जा रही है।

इन सभी तथ्यों में थोड़ी बहुत सच्चाई अवश्य है इसी कारण पिछले दस वर्षो में एडहाॅक की संख्या 500 से बढ़कर 5000 हो गई है। इसके क्या समाधन हो सकते हैं इस पर विचार करना अवश्यक हो जाता है। इसके समाधन में विश्वविद्यालय के स्तर पर एडहाॅक के संदर्भ में दिसम्बर 2007 में बनाये गये रेजोल्यूशन का पुनः मूल्यांकन करना तथा इसमें संशोधन कर कुछ उपाय किये जा सकते हैं। विश्वविद्यालय स्तर पर एडहाॅक की डिपार्टमेंट वाईज सीनीयरटी लिस्ट तैयार की जा सकती है, जिसको काॅलेजों में सही रोस्टर के अनुरूप आवश्यकतानुसार उपलब्ध करवाकर स्थायी किया जा सकता है।

दिल्ली विश्व विद्यालय में एडहाॅक का एक सामूहिक हस्ताक्षर अभियान चलाया जा रहा है, जिसमें सभी एडहाॅक को स्थायी करने की मांग की जा रही है। यह पत्र राष्ट्रपति को भेजा जायेगा जिसमें अध्यादेश लाकर सभी को स्थायी करने की मांग की जायेगी।

आज जब यू.जी.सी. गजट नोटीफिकेशन 2016 के आने से वर्कलोड से सम्बन्ध्ति प्रश्न तेजी से उठा ओर सरकार ने आन्दोलन की मांग को स्वीकार करके वर्कलोड से सम्बंधित प्रावधान वापस ले लिया। लेकिन इससे एडहाॅक समस्या समाप्त नहीं हो जाती है। आज एडहाॅक स्थायी नियुक्ति की मांग करने लगे हैं।

भारत सरकार के राजपत्र में प्रकाशित यू.जी.सी. के नोटीपिफकेशन में सीधे भर्ती के नियमों में संशोधन किया गया है। इसमें साक्षात्कार का भार घटाकर 20% कर दिया गया है, पहले दिल्ली विश्वविद्यालय में स्क्रीनिंग के बाद सारा निर्णय साक्षात्कार पर ही निर्भर करता था, इसलिए विश्वविद्यालय को अपनी प्रक्रिया में परिवर्तन करने की आवश्यकता होगी। जिसके बाद नियुक्तियों के निर्णय संभव हो सकेगें।

इसके बाद विश्वविद्यालय तुरंत नियुक्ति प्रक्रिया शुरू करे, यह नियुक्तियाँ पहले की तरह काॅलेज के हिसाब से या विश्वविद्यालय के स्तर पर की जा सकती हैं, क्योंकि 4500 रिक्त पदों के लिए काॅलेज के अनुसार साक्षात्कार करवाना एक कठिन कार्य है, अतः विश्वविद्यालय के स्तर पर साक्षात्कार करवाकर काॅलेज में भेजा जा सकता है।

एडहॉक की समस्या के समाधान के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन को मुद्दे की संवेदनशीलता और बढ़ते हुए दबावों के कारण अब जल्द कोई निर्णय लेना होगा। इस मुद्दे को अब भविष्य पर टालना विभन्न हितधारकों के लिए ना तो उचित होगा ना ही संभव।

Exit mobile version