ये कहानी है आकाश की जिसने 13 वर्ष की उम्र में ही स्कूल छोड़ दिया था, 2009 में आकाश काम की तलाश में मानपुर (उत्तराखंड के एक छोटे से गाँव) से मुंबई आ गया।
ग्रामीण इलाके के किसी भी अन्य किशोर की तरह उसे भी मुंबई की भीड़-भाड़ और परेशानियों के साथ तालमेल बिठाने में समय लगा। उसने पैसे के लिए और शहर में टिके रहने के लिए तरह-तरह के काम किए। एक सिगरेट कंपनी के लिए मार्केटिंग करने से लेकर पबों में गिटार बजाना, और कॉल सेंटर में काम करने के बाद किस्मत ने उसे आई.आई.टी. मुंबई के चार कोडर्स के यहाँ बावर्ची के रूप में काम करने के लिए पहुंचा दिया।
कुछ साल पहले एक रात को जब वो हमारे लिए खाना लगा रहा था तो उसने बक्षी (हाउसिंग के को-फाउंडर) से पूछा कि आप क्या कर रहे हो।
तो उसे जवाब मिला, “तू जो फेसबुक, व्हाट्सएप्प करता है ना? वैसी वेबसाइट्स और एप्प पे कोडिंग होती है। कंप्यूटर को सिखाना पड़ता है। हम वही करते हैं।”
आकाश ने उत्साह के साथ कहा, “वाह, मुझे भी करना है!”
और इसी के साथ शुरू हुआ आकाश का कोडिंग सीखने का 15 महीनो का सफ़र, जिसमे वो रोज रात को देर तक जगे रह कर सॉफ्टवेयर बनाना सीखता। आकाश की जिंदगी सुबह खाना बनाने, दिन में घर की सफाई करने और रात को हम चारों में से जिसका भी कंप्यूटर खाली मिले उस पर कोडिंग सीखने के बीच घूमने लगी। इन सब के बीच दिन में उसे सोने के लिए केवल 6 घंटे ही मिल पाते। शुरुवात में उसने कोर्सेरा पर फ्रंट एंड पर लेक्चर लिए और जल्द ही उसने कोडिंग के बेसिक्स समझ लिए। एक साल तक पूरे ध्यान से कोडिंग सीखने के बाद वो फ्रंट एंड, बैक एंड और डेटाबेस हैंडलिंग करने में सक्षम हो चुका था।
अब उसके सवाल बेसिक चीजों से आगे एल्गोरिदम, मशीन लर्निंग और एन.एल.पी. (नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग) के बारे में होने लगे।
इसके बाद जल्द ही हम तीनों ने मिलकर उसके लिए एक मैकबुक एयर ख़रीदा। अब हम सभी के लिए इम्पैक्टरन में वो हमारे घर का एक जीनियस (फ्रंट एंड और आई.ओ.एस. कोडर) है।
जिस समय मैं इस लेख को लिख रहा हूँ, उस समय आकाश हमारे आई.ओ.एस. एप्प की कोडिंग करने में व्यस्त है। उसकी सभी लिये एक ही सलाह है, “एक चीज़ पकड़ो और घुस जाओ।”
जीवन बस हमारे तजुर्बों का निचोड़ होता है, जहाँ हर वक़्त सीखने के मौके मौजूद होते हैं। हमें केवल उनमे से कुछ को तलाश करना होता है ताकि हम उनसे अपना जीवन बना सकें, बस एक वक़्त पर एक ही चीज़।
अनुवाद- सिद्धार्थ भट्ट
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