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यू.पी. सरकार द्वारा नोएडा में बनाए गए साइकिल ट्रैक्स का ऐसे हो रहा है इस्तेमाल

NEW DELHI, INDIA - SEPTEMBER 23: An Indian commuter cycles past a banner for the Commonwealth Games on September 23, 2010 in New Delhi, India. Delhi is scrambling to complete last minute preparations for the upcoming Commonwealth Games, as labourers work frantically to clean up the athletes' village following numerous complaints from officials. (Photo by Daniel Berehulak/Getty Images)

विक्रम प्रताप सिंह सचान:

दिल्ली जाईये, रिहायशी इलाको में सड़क की चौड़ाई को आधा करती पार्क वाहनों की कतारें और इन्ही वाहनों का बोझ उठाता फुटपाथ। चलने की लिये रास्ते की जुगत भिड़ाते पैदल यात्री, हर जगह जाम की स्थिति और बात-बात पर सर फुटब्बल की नौबत। ये दिल्ली की सड़कों का एक मोटा-मोटा सा खाका है। अखबार पढिये कभी दिल्ली सरकार, कभी न्यायालय, कभी केंद्र सरकार छोटे-मोटे और गैर स्थायी तरीके अपनाकर प्रदूषण और यातायात दोनों की समस्या पर एक साथ चोट करना चाहती हैं। लेकिन  नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा है। ऐसे समय में ये सोचने की जाहिर सी जरूरत है कि इन सब समस्याओं का स्थायी निवारण किस तरह से सुनिश्चित किया जाए।

ऐसे में दिल्ली से राष्ट्रीय राजमार्ग-24 होते हुये नोएडा के सेक्टर -62 में प्रवेश करिये तो कुछ उम्मीद भरे प्रयास आपको दिखेंगे। वह नज़ारा देखकर नज़रें टिकी रह गयी। सेक्टर -62 के थाने, आइ.आइ.एम. लखनऊ के कैंपस से होकर गुजरने वाली सड़क के दोनों ओर लालरंग की कारपेट सी बिछी नज़र आती है। इस कारपेट पर और इसके किनारे लगे बोर्ड्स पर कई जगह साइकिल के निशान बने हुए हैं। जाहिर है कि खासतौर पर साइकिल के लिए इस पथ का निर्माण किया गया है।

ये ना सिर्फ देखने में आकर्षक है, बल्कि मन में उत्साह भर देने वाला भी है। मेट्रो शहरों में रहने वाले लोग जिन्हें अपना स्वास्थ्य दुरुस्त रखने के लिये सुबह-शाम जिम में जाकर कृत्रिम साइकिल चलानी पड़ती है। ऐसे में अगर साइकिलिंग रोजमर्रा के जीवन का हिस्सा बन जाये, तो ये एक सपने के सच होने जैसा ही तो है। बिना किसी खर्चे, बिना किसी प्रदूषण के आप गन्तव्य तक पहुँच रहे हैं, लेकिन इस सपने के साथ कुछ चुनौतियाँ भी है जो अभी कायम नज़र आती हैं।

साइकिल ट्रैक के साथ-साथ चलिये, आप पायेंगे की इस ट्रैक का इस्तेमाल इक्का-दुक्का लोग ही कर रहे हैं। हालाँकि कुछ लोग साइकिल से मुख्य मार्गो में चलते दिखते हैं लेकिन साइकिल ट्रैक से दूर नज़र आते है। कई जगह पर साइकिल ट्रैक पर कारों ने अतिक्रमण किया हुआ है, कई जगह स्ट्रीट वेंडर्स भी खड़े दिखायी देते हैं। केवल कुछ एक चौराहों पर साइकिल चालकों के लिये विशेष ट्रैफिक लाइटिंग सिस्टम का भी इस्तेमाल किया गया है। लेकिन इसका पालन कितना होगा ये तय करना किसकी जिम्मेदारी है? ये अभी तक जाहिर नहीं है। जब तक जिम्मेदारी तय नहीं है तब तक लोगों को साइकिल का इस्तेमाल करने के लिये प्रेरित करना दूर की कौड़ी होगी। देश और खासकर प्रदेश में सड़क दुर्घटनाओं के आँकड़े सीधा संकेत करते हैं कि सड़क पर किसी भी तरह का दुपहिया वाहन चलाने में पहली जरूरत है चालक की सुरक्षा। सुरक्षा के कड़े मानदण्ड तय किये बिना इस प्रोजेक्ट की सफलता एक मारीचिका (मिराज़) को पाने की कवायद भर है।

इसलिए दीगर है कि नोएडा के साइकिल ट्रैक के रख-रखाव, नियमित जाँच, यातायात के नियमों के पालन इत्यादि को सुनिश्चित करने के लिये अलग से अधिकारियों की जिम्मेदारी निर्धारित की जानी चाहिये। इस बाबत एक हेल्पलाइन की व्यवस्था हो जो 100 नंबर जैसी व्यवस्था के समानान्तर हो, जिसमें शिकायत निवारण के लिए जिम्मेदारी भरी व्यवस्था हो। कुल मिलाकर साइकिल सवारों की शिकायत को प्राथमिकता से सुना जाए।

इसके साथ सहकारिता के सिद्धान्त को भी साथ लेकर चला जा सकता है। पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप की तर्ज पर लोगो को भी जोड़ने की जरूरत है। जहाँ-जहाँ से होकर ट्रैक गुजरता है उसके आस-पास या सामने स्थित संस्थानों को ट्रैक की निगरानी की जिम्मेदारी दी जाए। मतलब यदि ट्रैक पर अतिक्रमण है, कोई नया काम चल रहा है तो पुलिस या जिम्मेदार अधिकारी को सूचित करना उनकी जिम्मेदारी हो। खासकर नोएडा में आर.डब्लू.ए. (रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन) इसमें एक ख़ास भूमिका निभा सकते हैं।

कनाडा के ब्रिटिश कोलम्बिया में प्रवास के दौरान मैंने रोजमर्रा के कामों में साइकिल का इस्तेमाल भरपूर होते हुए देखा है। साथ ही साथ सड़क पर चलने वाला पैदल या साइकिल सवार किसी भी बड़े वाहन पर प्राथमिकता पाता है। यदि किसी कारणवश पैदल या साइकिल सवार को किसी भी तरह का नुकसान पहुँचता तो मान लीजिये कि कानून पूरी मजबूती के साथ पैदल या साइकिल सवार के साथ खड़ा होगा। यहाँ पर अलग से साइकिल ट्रैक, जगह-जगह पर साइकिल को बाँध कर रखने वाले स्टैण्ड उपलब्ध है। यहाँ की लोकल रेल और बस में साइकिल लेकर चलने की सुविधा उपलब्ध है।

उत्तर प्रदेश में साइकिल प्रोजेक्ट, मुख्यमंत्री नीदरलैण्ड से प्रेरित होकर लेकर आये हैं। सो ये समझना भी जरूरी है कि नीदरलैंड में इसे कैसे विकसित किया गया। सत्तर के दशक में नीदरलैण्ड गाड़ियों का देश बन चुका था। इस दौरान वहां साइकिल सवार बच्चों और वयस्कों की मौतों के उपरान्त हुये सांकेतिक धरना प्रदर्शनों को संज्ञान में लेते हुये, साइकिल सवारों को बढ़ावा देने वाली नीतियाँ बनायी गयी। अलग से साइकिल के ट्रैक बनाये गए और नियामक संस्थाएँ बनायी गई। आज नीदरलैण्ड पुनः साइकिल सवारों का देश है।

कुछ आँकड़ों पर नज़र:

– उत्तर प्रदेश में साइकिल की खरीद पर वैट हटा दिया गया है।

– नोएडा में कुल मिलाकर 42.5 किलोमीटर लम्बा ट्रैक बनाने का प्रावधान है

– ग्रेटर नोएडा, लखनऊ, आगरा, आगरा से इटावा लायन सफारी तक साइकिल ट्रैक का काम चल रहा है।

– देश में सड़क दुर्घटना में मरने वालो में 25 प्रतिशत लोग दुपहिया वाहन वाले होते हैं।

 

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