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छत्तीसगढ़ में बेरोकटोक जारी है बच्चों की ट्रैफिकिंग, क्या कर रही है राज्य सरकार?

अक्षय दुबे ‘साथी’

जब हम विश्वगुरू बनने की इच्छा और युवा भारत के जुमले पर अभिमान कर रहे होते हैं, तब कोई बच्चा लापता हो रहा होता है। हाल ही में मुम्बई पुलिस ने मुम्बई के एक बंगले में छापा मारकर 28 बच्चों को छुड़ाया जिसमें से ग्यारह बच्चे छत्तीसगढ़ के निकले। इनकी उम्र 13  से 15 साल के बीच की है। इनमें से अधिकतर बच्चे राजीम के पास पांढुका स्थित महर्षि वेद विज्ञान संस्थान में पढ़ाई कर रहे थे, जिन्हें संस्थान के द्वारा मध्यप्रदेश के कटनी जिले के मनहेर स्थित महर्षि वेद विज्ञान संस्थान भेजा गया था लेकिन बच्चे, तस्करों के हत्थे चढ़कर मुम्बई पँहुच गए।

अक्सर छत्तीसगढ़ और झारखंड के आदिवासी बच्चों को अपहरण कर,बहलाफुसला कर या फिर नौकरी का झांसा देकर महानगरों में बेच दिया जाता है। जहां इन्हें बंधक बनाकर भीख मंगवाने से लेकर बंगलों में नौकर बनने के लिए मजबूर किया जाता है।

सोचिए एक तरफ जहां सरकार स्किल इंडिया,सर्व शिक्षा अभियान या मिड डे मील के ज़रिए भारत के भविष्य को सशक्त बनाने का दावा करती है वहीं लगातार लापता हो रहे बच्चों की सुध लेने के लिए उतनी गंभीर नज़र नहीं आती। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह तीसरी पारी खेलकर अपने विकास की कहानी पूरे देश को सुनाने में लगे हुए हैं, लेकिन छत्तीसगढ़ से गायब होते बच्चों पर उतने संजिदा नहीं दिखाई पड़ते।

इसलिए सर्वोच्च न्यायालय ने भी एक याचिका पर छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव और डीजीपी को बच्चों के लापता होने पर सम्मन जारी किया था। ये सम्मन शासन प्रशासन के अगंभीर रवैय्ये को लेकर था, क्योंकि 10 मई 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हर बच्चे के ग़ायब होने पर एफ़आईआर दर्ज होनी चाहिए और हर थाने में एक विशेष जुवेनाईल पुलिस अधिकारी हो। लेकिन इसका पालन नहीं हो पा रहा था।

इसके अलावा  छत्तीसगढ़ में मानव तस्करी की शिकायतों पर प्रमुख लोकायुक्त शंभूनाथ श्रीवास्तव ने कहा था कि “जेलों में बंद कैदी अपने साथियों से मानव तस्करी करा रहे हैं। अधिकांश मामलों में बच्चों से भीख मंगवाने की बात सामने आती है। श्रीवास्तव ने कहा था कि इसके लिए रेलवे स्टेशन को ठिकाना बनाया गया है। लेकिन इसे रोकने में जीआरपी कमजोर नजर आती है।” साथ ही उन्होंने मानव तस्करी के गैंग को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है होने की भी बात कही थी।

नवम्बर 2015 तक के सरकारी आंकड़ो के अनुसार छत्तीसगढ़ में पिछले पाँच सालों में कुल 14118 बच्चे गायब हुए हैं। जिसमें अधिकतर बच्चे सरगुजा, बस्तर, जांजगीर-चांपा जैसे पिछड़े इलाकों से हैं। लेकिन छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से भी 2010 से 2015 तक 2358 बच्चे लापता हुए। अब इस तर्क को भी नहीं माना जा सकता कि ऐसे अपराधों को सिर्फ पिछड़े क्षेत्रों में अंजाम दिए जाते हैं बल्कि राजधानी में भी बेखौफ होकर बचपन छीना जा रहा है।

फर्जी प्लेसमेंट एंजेसियों का जाल खासकर छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल इलाकों में बेरोक-टोक काम करते हुए देखे जा सकते हैं,जिनके द्वारा नौकरी का झांसा देकर बच्चों को बंधक बनाने का काम किया जाता है।अगस्त 2014 में बस्तर की एक बच्ची को नौकरी दिलाने के नाम पर दिल्ली मे पचास हजार में बेच दिया गया था।

नवम्बर 2014 में छत्तीसगढ़ के 10 बच्चों को दिल्ली से छुड़ाया गया, ये सभी बच्चे आदिवासी बहुल इलाका  जशपुर से थे। फरवरी 2015 में तीन नाबालिग लड़कियों को भी छुड़ाया गया था जिन्हें ‘सेवा भारती’ के बैनर तले नौकरी दिलाने का लालच देकर दिल्ली ले जाया जा रहा था।

लेखक गिरीश पंकज इस मामले पर प्रशासन और समाज दोनों को ज़िम्मेदार ठहराते हुए कहते हैं कि, “हम अपने बच्चों को लेकर बहुत लापरवाह रहते हैं उनकी सुध नहीं लेते। नौकरी के भरोसे बच्चे पलते हैं और जो बेहद गरीब हैं वे बच्चों से वैसे भी बेखबर हो जाते हैं, या तो बेच देते हैं या खुद भाग जाते हैं, कुछ का अपहरण हो जाता है।”

इन सब मामलों पर कभी-कभी ये तर्क दिया जाता है कि इनके मां बाप खुद अपने बच्चों को कम उम्र में काम करवाने के लिए बाहर भेजते हैं। लेकिन हमें यह भी सोचना चाहिए कि ऐसी कौन सी  वजह है जो इन बच्चों को विद्यालय के बजाय काम पर भेजने को प्रथमिकता देने के लिए मजबूर करती है।

इन बातों से  समझा जा सकता है कि समाज में हाशिए पर रह रहे लोगों के लिए बच्चों का पेट पालना भी कितना मुश्किल होता है नतीजतन उनको मजबूर होकर काम पर भेजना पड़ता है। जिसका बेजा इस्तेमाल बच्चों को बंधक बनाने वाले गिरोह करते हैं।

6 मार्च 2014 को राज्य सभा में महिला एवं बाल विकास राज्य मंत्री कृष्णा तीरथ ने एक सवाल के जवाब में जानकारी देते हुए बताया था कि “पिछले तीन वर्षों में देश के 2 लाख 36 हजार 14 बच्चे लापता हुए जिनमें से 75808 बच्चो की अब तक नहीं मिल सके हैं।” कृष्णा तीरथ ने ये भी  बताया कि “वर्ष 2009 से लेकर 2011 तक देश में कुल मिलाकर दो लाख 36 हजार 14 बच्चे गायब हो गए। उनमें से एक लाख 60 हजार 206 बच्चो की तलाश कर ली गई है जबकि 75808 बच्चे अभी भी लापता हैं।” साथ ही उन्होंने इसकी भी जानकारी दी कि आदिवासी बहुल छत्तीसगढ़ में कुल 11536 बच्चे गायब हुए जिनमे से 2986 बच्चों के बारे में अब तक कुछ पता नहीं चल सका है।

वरिष्ठ पत्रकार जावेद उस्मानी कहते हैं कि “मोटे तौर पर व्यवस्था जनित विकार के छाया तले पली आपराधिक और गैर ज़िम्मेदारी,अर्थ प्रधान मानसिकता और मानवीय मूल्यों का क्षरण नव दासता के बिंब हैं। जावेद उस्मानी आगे कहते हैं कि किसी राज्य से बड़े पैमाने पर बच्चों का गायब होना और हो हुल्ले के बावजूद भी दौर थमने के बजाय जारी रहना शर्मनाक है।”

राष्ट्रीय बाल आयोग के सदस्य यशवंत जैन ने मीडिया को बताया कि, “मानव तस्करी को लेकर देश में कोई बड़ा कानून नहीं था इसलिए तस्करी करने वाले बच निकलते थे लेकिन बहुत जल्दी इस पर कड़ा कानून बनने वाला है।”

बहरहाल कानून निर्माण और इसके क्रियान्वयन में सरकार कितनी गंभीर है ये तो हम देख ही सकते हैं, लेकिन सामाजिक अक्षमता से भी हम इंकार नहीं कर सकते जो कि मजबूर बच्चों से पशुवत व्यवहार कर उनकी ज़िदगी के साथ-साथ दुनिया से उसके बचपन छीनने का कुकृत्य कर रहे हैं।

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