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ट्रैफिक के नये नियमों के पीछे क्या है मंशा, क्या बस चालान काटना ही है समाधान?

विक्रम प्रताप सिंह सचान:

कल नोएडा से दिल्ली जाते हुए उन ट्रैफिक सिग्नल्स पर रुकना हुआ जहाँ गाहे-बगाहे ही लोग रुकते हैं, वो भी अगर कोई पुलिस वाला आँख तरेरते नज़र आ जाए तो। ट्रैफिक सिग्नल पर ध्यान उन बाइक सवारों की तरफ भी गया जिसपे पीछे बैठने वालों ने फैंसी हेलमेट लगा रखे थे। ये देख कर अचानक याद आया कि कल अखबार में खबर थी, कि पीछे बैठने वालों को भी हेलमेट लगाना अनिवार्य कर दिया गया है।

एक दूसरे से ज़्यादा चकमक दिखने की कोशिश कर रहे हेलमेट्स को देखते देखते सहसा ही एक आँखोदेखी याद आ गयी। नोएडा का सेक्टर-62, लेबर चौक के पास “फादर अग्नेल स्कूल” के पास वाला तिराहा और वहां खड़ा एक पुलिसकर्मी। अपनी पर्सनल बाइक को स्टैण्ड पर लगाकर आने-जाने वालों को रोक रहा था। मेरे ज़हन में कई सवाल आए। जैसे क्या ये पुलिसवाला आधिकारिक ड्यूटी पर है? क्या इस पुलिसवाले के पास चालान काटने का अधिकार है? क्या पुलिस कंट्रोल रूम को ये सूचना है कि उनका एक अधिकारी यहाँ चेकिंग के लिए तैनात है? यदि पुलिस वाले के पास चालान काटने का अधिकार नहीं है तो वो नियम का उल्लंघन कर रहे लोगों को रोक कर क्या हासिल करना चाहता है? कई बाइक वाले एक-एक कर के रोके गए और थोड़ी बहुत बातचीत के बाद चले गए, ज़ाहिर है कुछ लेन-देन भी हुई।

चण्डीगढ़ में रहते हुए मैंने अक्सर देखा कि जाँच के लिये आधिकारिक तौर पर कम से कम 2 पुलिसकर्मी चालान बुक के साथ तैनात होते हैं। चालान बुक नहीं है तो किसी को रोकने का उद्देश्य, वसूली के अलावा और क्या हो सकता है?

खैर पीछे बैठे लोग हेलमेट लगाएं, ये सरकारी आदेश पहले से लागू कई कानूनों और आदेशों की फेहरिस्त में एक नया जुड़ाव है। उद्देश्य ज़ाहिर है और प्रशंसनीय भी, लेकिन इस नियम की व्यवहारिकता आशंकित करती है कि कहीं ये भी वसूली का एक औजार बनकर ना रह जाए। क्यूँ का जवाब पाने के लिये नोएडा की बात करते हैं। नोएडा, एन.सी.आर. (नेशनल कैपिटल रीजन या राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) का हिस्सा है और उत्तर प्रदेश सरकार की आय का एक बड़ा श्रोत भी। अब यहाँ की यातायात व्यवस्था पर गौर करते हैं, लगभग हर चौराहे पर ट्रैफिक लाइट है लेकिन कब कौन सी चले या ना चले इसको लेकर दावे के साथ शायद ही कोई बता पाए। क्या जनता ट्रैफिक सिग्नल फॉलो कर रही है? क्या ट्रैफिक डेन्सिटी को कंट्रोल करने के लिए सिग्नल्स पर पुलिस की उपलब्धता है? इन सवालों पर शायद ही कभी चर्चा होती है।

ट्रैफिक पुलिस अक्सर चालान के आँकड़ें जारी कर अपनी पीठ थपथपाने से नहीं चूकती, लेकिन इनमें से अधिकतर चालान औचक निरीक्षण अभियान के दौरान काटे गए होते हैं। चालान काटे तो जाते है लेकिन क्या ये यातायात व्यवस्था को दुरुस्त करने के उद्देश्य से होता है? क्या ये बेहतर नहीं होता कि इन औचक निरीक्षणों के साथ-साथ हर सिग्नल पर ये व्यवस्था नियमित होती। नोएडा की सड़कों पर बिना लाल या नीली बत्ती के भी हूटर बजाती ना जाने कितनी गाड़ियाँ घूमती है और सवाल ये कि ऐसी कितनी गाड़ियों के चालान काटे जाते हैं?

कुल मिलाकर जब तक ट्रैफिक व्यवस्था की निगेहबानी नहीं बढ़ाई जाती, जब तक मौजूदा नियमों के पालन के लिए सख़्त कदम नहीं उठाए जाते, तब तक नया कानून केवल बेईमानी है। वसूली का एक औजार मात्र है। नोएडा की यह स्थिति प्रदेश के अन्य शहरों की स्थिति की भी गवाही देती है।

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