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क्यूँ इरफ़ान खान का रील और रियल लाइफ का अंदाज़ उन्हें मेरा पसंदीदा एक्टर बनाता है

मुकुंद वर्मा:

कुछ सही से याद तो नही आ रहा, लेकिन कॉलेज के ज़माने की ही बात है, ऐसा धुंधला सा याद आ रहा है। मूवी चल रही थी, और जब-जब वो शख्स स्क्रीन पर आता था, एक जोश पैदा कर देता था। हॉस्टल के 10 लड़के, एक पढ़ाकू लड़के के रूम में बड़े स्क्रीन वाले मॉनिटर पर मूवी लगा के, खिड़कियाँ बंद करके, अँधेरा कर के, सिनेमा हॉल जैसा माहौल बनाये बैठे थे। था तो वो विलन ही, माने खलनायक, लेकिन हीरो के माफिक नज़र आता था। वो मूवी ख़त्म हुई और हम उसके फैन बन गए, सारे डायलॉग्स जबानी रट लिए, विकिपीडिया पढ़ लिया और अपने फेवरेट एक्टर्स की लिस्ट में उसका भी  नाम डाल दिये। मूवी थी “हासिल” और एक्टर थे इरफ़ान खान।

“मारे लप्पड़ तुम्हारी बुद्धि खुल जाये….अबे तुम लोग गुरिल्ला हो, गुरिल्ला-उरिल्ला पढ़े हो कि नहीं….वो साले गुंडे हैं, हम क्रांतिकारी….गुरिल्ला वार किया जायेगा….”

“और जान से मार देना बेटा, हम रह गए ना, मारने में देर नही लगायेंगे….”

ऐसी ही कई धाँसू डायलॉग्स से लैस जब मूवी खत्म हुई, तो बॉस, हम तो फैन बन चुके थे इरफ़ान के। उसके बाद तो कई मूवीज आई और हमारा और इरफ़ान का रिश्ता और गहरा होता गया।

ये तो थी रील लाइफ। अब आते हैं रियल लाइफ पर। अभी कुछ दिनों पहले इरफ़ान ने रमज़ान में रोजे और मुहर्रम में होने वाली कुरबानी पर सवाल उठाया था। हालाँकि उनका कहना उनकी तरफ से जायज़ भी था, लेकिन अब लॉजिकल बात सुनता कौन है।

मौलवियों ने कह दिया कि इरफ़ान एक्टर हैं, एक्टिंग करें, धरम के मामले में दखल ना दें। अब ये कौन सी बिना सिर-पैर वाली बात हुई। मतलब क्या अल्लाह ने इरफ़ान के बोलने का अधिकार ख़तम कर दिया, सिर्फ इसलिए कि वो एक्टर बन गए।

अब ये मौलवियों को कौन समझाए, जिन्हें धरम के नाम पर ही इज्जत, शोहरत और पैसे मिलते हैं। फिर अब इरफ़ान ने सवाल उठाये कि आखिर बांग्लादेश में आइ.एस.आइ.एस. (ISIS) के हमले के बाद, सारे मुसलमान इसके खिलाफ क्यूँ नही खड़े होते, क्यूँ नही लोगों को बताते हैं, कि सच्चा इस्लाम क्या है, वो क्या सिखाता है। अब इस जगह भी इरफ़ान सही हैं, जो चाहते हैं कि सभी मुसलमान एक हो कर अपने खिलाफ बन रही गलत धारणा का विरोध करें।

अब इस मसले पर भी कई लोग उनके साथ होंगे, तो कई लोग उनके खिलाफ। आप सहमत भी हो सकते हैं, असहमत भी। वो मुद्दा नही है, वो तो ठीक बात है। लेकिन मुझे ख़ुशी है कि इरफ़ान बोलते हैं। जो उनके दिल को सच्चा लगता है, वो बेबाक कह देते हैं। वो उन अन्य फ़िल्मी हस्तियों जैसे नही हैं, जिन्हें अपने काम और अपने ए.सी. रूम को छोड़कर, शायद ही हिन्दुस्तान में हो रही और बातों से सरोकार होता है। वो जानते होंगे, सुनते होंगे, और अफ़सोस भी करते होंगे, पर जनाब कुछ कहते क्यूँ नही?

आपके पास मास फैन फोलोइंग है, अपनी आवाज पहुँचाने का तरीका है। आपके बस बोल देने से धारणाएं बदल सकती है, लोग बदल सकते हैं, पर आप ऐसा करते नही है। क्यूंकि आपमें जिगरा नही है। आप अपनी मूवी की कमाई को किसी भी एंगल से कम होते देखना नही चाहते। आप विवादों में पड़ना नही चाहते। लेकिन अपने “पान सिंह तोमर” ने ये कर के दिखाया है। इसलिए तो मुझे आज भी ख़ुशी है कि मैंने गलत इंसान को अपनी फेवरेट लिस्ट में नही डाला है। आज अगर इरफ़ान हमसे ना भी पूछें ना तो भी हम पान सिंह तोमर की गैंग में शामिल में हो जाएँ। इरफ़ान ये तुम्हारे लिए, तुम्हारी ही मूवी हासिल का एक डायलॉग: “तुमको याद रक्खेंगे गुरु हम।”

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