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तमिलनाडु में 6 बच्चों पर दर्ज हुआ लैंगिक अपराध का मामला, क्या उनका दलित होना था इसका कारण?

सिद्धार्थ भट्ट:

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार 5 अगस्त को तमिलनाडु के मदुरई के पास एक गाँव के 6 दलित बच्चों जिनमे एक लड़की भी है पर, पी.ओ.सी.एस.ओ. (प्रिवेंशन ऑफ़ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्शुअल ओफेंस एक्ट) के तहत मामला दर्ज करने की ख़बरें आयी हैं। बताया जा रहा है कि इन सभी बच्चों की उम्र 9 से 10 साल के बीच है। बच्चों के 2 ग्रुप्स के बीच किसका स्कूल बेहतर है को लेकर हुई मामूली कहासुनी की घटना के बाद एक “पीड़ित” बच्चे के पिता के द्वारा शिकायत किए जाने के बाद पुलिस ने सभी “आरोपी” बच्चों के खिलाफ एफ.आई.आर. दर्ज की। इन 6 बच्चों पर इंडियन पीनल कोड की धारा 341, 294b, 324, 596-ii और पी.ओ.सी.एस.ओ. के तहत मामला दर्ज किया गया है। यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि इन सभी बच्चों पर लगाई गई ये धाराएं गलत तरीके से बंदी बनाने, अपशब्द और गलत बयानबाजी, जानबूझ कर खतरनाक हथियारों से हमला करने, अपराधिक रूप से धमकाने और बच्चों के खिलाफ लैंगिक अपराध करने पर लगाई जाती हैं।

बताया जा रहा है कि पीड़ित बच्चे, क्षेत्र में सामाजिक और राजनैतिक प्रभाव रखने वाले थेवर समुदाय से आते हैं जो कि स्वयं एक अन्य पिछड़ी जाति (ओ.बी.सी.) में आने वाला समुदाय है। पुलिस नें ए.आइ.ए.डी.एम.के. के विधायक ए. करुनास जो खुद थेवर समुदाय से आते हैं और उनकी पार्टी के अन्य लोगों के कई दफा फोन करने के बाद इन सभी बच्चों के खिलाफ मामला दर्ज किया। एक रिपोर्ट के अनुसार विधायक ए. करुनास से इस बारे में पूछे जाने पर, उन्होंने इस प्रकरण की जानकारी होने की बात स्वीकार की, लेकिन इसमें उनके किसी भी तरह से शामिल होने से इनकार कर दिया। वहीं पुलिस के डिप्टी एस.पी. एस. रामकृष्णन ने थेवर समुदाय के भारी दबाव की बात को स्वीकार भी किया।

अंग्रेजी दैनिक द हिन्दू की एक रिपोर्ट के अनुसार बच्चों पर पी.ओ.सी.एस.ओ. लगाए जाने का जवाब देते हुए क्षेत्र के एस.पी. विजयेन्द्र बिदारी ने इस एक्ट के अंतर्गत उम्र के बाधा ना होने की बात कही। वहीं डिस्ट्रिक्ट चाइल्ड प्रोटेक्शन ऑफिसर एम. विविलियाराजा नें बच्चों के खिलाफ एफ.आइ.आर. दर्ज किए जाने से पहले पुलिस के द्वारा उनसे किसी भी तरह की चर्चा ना करने की बात कही।

पुलिस सूत्रों के अनुसार बहुसंख्यक थेवर समुदाय वाले इस गाँव के दलितों के साथ पहले भी भेदभाव और उनके उत्पीड़न के मामले सामने आते रहे हैं। इसी मामले में स्थानीय आँगनवाड़ी का उदाहरण बताया गया जहाँ दलित बच्चों के बर्तन से लेकर उनके बैठने की चटाई तक अलग है। दलित और सवर्ण बच्चों के कमरे अलग-अलग हैं। यहाँ दलित बच्चों को सवर्ण बच्चों के साथ नहीं बैठने दिया जाता हैं और ना ही दलित बच्चों को कुर्सी पर बैठने की इजाजत हैं।

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