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“कैसे आज धर्म के रखवालों ने गाय को शाकाहारी से मांसाहारी बना दिया है”

बचपन में मास्टर साहब ने कई बार लेख लिखने को दिया। कहा जिस पर मन हो उस पर लिखो। हमारा भी सब फिक्स था। लेख या तो गाय पर लिखेंगे या 26 जनवरी पर। क्या है कि कुछ सोचना नही पड़ता था, जो देखा है लिख दो। गाय पर जब भी लेख लिखा, गाय एक चौपाया जानवर होती है, के बाद, उसकी दूसरी या तीसरी लाइन ये जरुर लिखता कि गाय एक शाकाहारी जानवर है, ये घास खाती है और दूध देती है। मास्टर साहब भी कभी गलत नही करते, 10 बट्टा 10 दे देते। कभी-कभी तो अच्छी लिखावट के लिए एक्सीलेंट या वैरी गुड तो जरुरे ही मिल जाते थे। बहुत खुश हुआ करते थे। आकर घर पर बताया करते थे कि आज कितने गुड, कितने वैरी गुड और कितने एक्सीलेंट मिले।

पर आज जब बड़े हो गए हैं तो लग रहा है कि जितना मास्टर साहब ने पढाया था या सिखाया था और जिस लेख पर एक्सीलेंट दिया था, वो सब झूठ था। दरअसल अब लग रहा है की गाय कभी, किसी ज़माने में शाकाहारी रही होगी, जब वो घास-फूस खा के दूध देती रही होगी, क्योंकि आजकल तो वो पूरी माँसाहारी हो गयी है। हमारी गायें नरभक्षी हो चुकी है। मुझे पता है आप ये बात नही मानेंगे, क्यूंकि आप बुद्धिजीवी हैं और आपको हर बात के लिए प्रूफ चाहिए। इसलिए मैं आपको प्रूफ दे रहा हूँ।

कहानी की शुरुआत होती है कोई पिछले साल बिहार चुनाव के आसपास। जब सबको अचानक से लगने लगा कि हमारी गायें खतरे मे हैं। यहाँ ध्यान दीजियेगा कि हर मिनट बलात्कार की शिकार होती औरतें किसी को खतरें में नहीं दिखी, ग्लोबल वार्मिंग से जलती धरती खतरे में नही दिखी, चाय की दूकान पर सिर्फ 5 रूपए रोज़ पर काम करता 10 साल के छोटू की जिंदगी खतरे में नहीं दिखी, सिर्फ गाय की जिंदगी खतरे में दिखी। इसलिए उसको बचाने को बिहार में धुंआधार कोशिश शुरू की गई। और उसी दौरान हमारी शाकाहारी गाय माँसाहारी बन गयी।

सबसे पहले उसने अख़लाक़ की जान ली। वही, अपने दादरी वाले, जिनका बेटा देश की सेवा करने फौज में भरती है। फिर उसके बाद हिमाचल में 5 लोगों को ट्रक से निकाल कर दौड़ा कर पीटा गया और ऐसा मारा गया जब तक उनमें से एक की मौत नही हो गयी। फिर कर्नाटक में कुछ परिवारों को सिर्फ इस शक की वजह से परेशान किया गया कि वे गाय का मांस पका रहे थे। उसके बाद गुजरात में दलितों को एक गाड़ी से बाँध कर मारा गया, खाल उधेड़ कर, क्यूंकि वो मरी गाय को ले जा रहे थे। फिर 2 दिन पहले मध्यप्रदेश में रेलवे स्टेशन पर 2 मुस्लिम महिलाओं को मारा गया, गालियाँ दी गयी और वो भी पुलिस के सामने, जबकि वो भैंस का मांस ले कर जा रही थी, गाय का नही।

अब कोई हमें बताये, की क्या हम सच में मान ले कि गाय एक शाकाहारी जानवर है, जबकि आये दिन वो किसी का खून पी ले रही है। आज़ाद देश में किसी को गुलाम की माफिक रस्सियों से बंधवा के खाल उधेड़ दे रही है, तो कभी दलितों का रोज़गार छीन ले रही है। गाय के हर अंग में कभी 100 करोड़ देवी-देवताओं का वास हुआ करता होगा, पर मुझे पूरा यकीन है की अब वो सारे देवी-देवता कहीं और ठिकाना ढूँढ कर जा चुके होंगे।

अब जाते-जाते ज़रा दो बात गौभक्तों से भी हो जाये। क्यूंकि हमें लगता है कि गाय खुद ऐसी नही बनी है, बल्कि बना दी गयी है। अब मरी गाय को ठिकाने ना लगायें तो क्या तुम्हारे घर भिजवा दें? बोलो, फिर पूजा करोगे उसकी? करोगे उसका दाह-संस्कार? तुम्हें सड़क पर आवारा घूमती, भूख-प्यास लगने पर कचड़ा-प्लास्टिक खाती और गटर का पानी पीती गायें नही दिखती? कभी-कभी सड़क किनारे ठोकर खायी लहू-लुहान बीमार गायें नही दिखती?

मुझे पता है कि तुम्हे गाय-कुत्ते-बिल्ली किसी की परवाह नही है। अब तो कभी लेख भी लिखने को दिया ना मास्टर साहब ने, तो 26 जनवरी पर लिख दूँगा, गाय पर ना लिख पाऊंगा क्योंकी तुमने तो हमारा गौभक्ति से विश्वास ही उठा दिया और किसी मज़बूरी में लिखना पड़ा ना, तो हम पहली लाइन यही लिखेंगे कि “गाय एक माँसाहारी जंतु है।”

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