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राजस्थान के बाड़मेर में एक दलित परिवार पर किया राजपूत सवर्णों ने जानलेवा हमला

सुरेश जोगेश

गुजरात की तरह पश्चिमी राजस्थान में भी दलित के साथ हो रही हिंसा चरम पर है। पश्चिमी राजस्थान के बाड़मेर में 6 अगस्त को एक दलित परिवार पर हमला किया गया, विवाद कृषि जमीन को लेकर था। चौहटन ब्लॉक अंतर्गत बावड़ी कल्ला गाँव में दलित(एस.सी.) कम्युनिटी के बच्चूराम (50) के परिवार पर कथित रूप से कुछ राजपूत लोगों नें हथियारों से लैस होकर हमला किया। बच्चूराम के खेत पर जबरन कब्ज़ा किए जाने के बाद, खेत राजपूत समुदाय के लोगों द्वारा जोता जा रहा था। इसी बीच खेत के मालिक बच्चूराम के पत्नी व परिवार के साथ अपने खेत में पहुंचने पर उन पर हमला कर दिया गया, महिलाओं के साथ भी मारपीट और बदसलूकी की गई। खेत के मालिक बच्चूराम के सिर में गहरी चोटें आने के बाद से ही उसकी हालत नाजुक बनी हुई है।

इस दलित परिवार के सभी सदस्य बाड़मेर शहर के राजकीय अस्पताल में हैं व अचानक हुए इस हमले से घबराये हुए हैं। इस परिवार के लोगों से बात करने पर उन्होने बताया कि इससे पहले भी इन्ही लोगों द्वारा हमला किया गया था, लेकिन पुलिस की लापरवाही से मामला ठंडे बस्ते में चला गया जिससे उनके हौंसले और बुलंद हुए। खेत में बने झोपड़े को भी सामान सहित उखाडकर फेंक दिया गया। वहीं बच्चूराम की पत्नी पुष्पा (45) के पेट और छाती पर चोटें आयी हैं। परिवार के कुल 5 सदस्यों का इलाज राजकीय चिकित्सालय में चल रहा है। समाजिक कार्यकर्त्ता जोगराज सिंह ने अस्पताल पहुँच, पीड़ितों से मिलने के बाद उन्होंने जानकारी दी कि बीच-बचाव में आये ए.एस.आइ. को भी चोटें आई है। जानकारी मिलने तक 8 लोगों की गिरफ़्तारी हुई है।

पश्चिमी राजस्थान में दलितों पर हमले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। 22 जून को बाड़मेर की चौहटन तहसील के ही सनाउ गाँव में भी इसी तरह का हमला हुआ था। जमीन विवाद को लेकर दलितों का कब्जा खाली कराने के लिए दबंगो ने दलितों के घरों पर हमला कर दिया था। धारदार हथियार से लैस दर्जन भर लोगों की ओर से किए इस हमले में करीब आधा दर्जन लोग गंभीर रूप से घायल हो गए थे। खबर है कि अभी तक एक भी आरोपी पुलिस की पकड़ में नही आया है।

उससे 15 दिन पहले ऐसी ही घटना जिले के धनाऊ कस्बे में हुई थी, जहाँ सवर्णों ने दलित महिला पर हमला किया था और कार्यवाही के लिए समाज को कलेक्ट्रेट के आगे धरना देना पड़ा था। वैसे यहाँ दलित हिंसा बढ़ने का एक कारण यह भी है कि दलित हिंसा के हर छोटे बड़े मामले में धरना देने के बाद भी कार्यवाही का दिलासा भर ही मिलता है।

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