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“हर रोज 2 दलितों की हत्या कर दी जाती है, इस बारे में कोई बात नहीं होती”: जिग्नेश मेवानी

अभिषेक झा:

ऊना दलित अत्याचार लड़त समिति के संयोजक (कन्वीनर), 35 वर्षीय जिग्नेश मेवानी जोर देकर कहते हैं कि केवल वो ही गुजरात में दलित प्रतिरोध की अगुवाई नहीं कर रहे हैं, ये सभी का मिला-जुला संघर्ष है। 15 अगस्त को ऊना में दलित अस्मिता यात्रा की समाप्ति पर सरकार को उनकी मांगे पूरी करने के लिए एक महीने का अल्टीमेटम दिया गया। मरे हुए जानवरों की लाशों का निपटारा ना करने और सार्वजनिक सफाई ना करने का प्रण लिए जाने के बाद, सरकार से गुजरात के हर दलित परिवार को 5 एकड़ जमीन देने की मांग की गयी। मेवानी इस आन्दोलन की जानकारी देने के लिए अभी पूरे देश में भ्रमण कर रहे हैं। वो 20 और 21 अगस्त को 3 विभिन्न कार्यक्रमों में जनता से मिले, उन्हें गुजरात के आन्दोलन के बारे में जानकारी दी और लोगों के सवालों का जवाब दिया। इसके साथ उन्होंने सरकार द्वारा उनकी मांगे पूरी ना करने पर 15 सितम्बर से प्रस्तावित रेल रोको आंदोलन का लोगों से समर्थन करने की अपील की। गाँधी पीस फाउंडेशन में हुए उनके अंतिम कार्यक्रम के बाद यूथ की आवाज से हुई संक्षिप्त बात-चीत में उन्होंने गुजरात आन्दोलन की अपेक्षाओं और उनकी भविष्य की योजनाओं की जानकारी दी।

अभिषेक झा: पुरे देश और गुजरात में भी जिस तरह गौ रक्षकों पर कोई क़ानूनी कार्यवाही नहीं की जाती है, क्या आपने इस मुद्दे पर गुजरात में कोई ख़ास या अलग चीज देखी है?

जिग्नेश मेवानी: करीब पिछले चार या साढ़े चार सालों से मैंने देखा है कि गुजरात में विकास की बात की जा रही है, ‘वाइब्रेंट गुजरात’ की बात की जा रही है। जब चुनाव का समय पास आया तो मरी हुई गाय के विडियो फैलाए गए और ये कोशिश की गयी कि ऐसा लगे जैसे मुस्लिमों ने गाय मारी हो। अगर कहीं से मांस जब्त किया जाता, तो उसे तुरंत गाय का मांस घोषित कर दिया जाता और कहा जाता कि यह किसी मुस्लिम का काम है, जैसे मुस्लिमों के पास गाय मारने के सिवाय कोई और काम ही ना हो। इस तरह की राजनीति काफी समय तक चलती रही।

और अब जब वो दिल्ली में सत्ता में आ चुके हैं, तो उनके हौंसले और बुलंद हो चुके हैं। अब मुस्लिमों के साथ-साथ दलितों को भी निशाना बनाया जा रहा है, उन्हें भी प्रताड़ित किया जा रहा है। मोदी जी ने कहा कि गौ रक्षा के नाम पर अपनी दुकानें चला रहे लोगों पर उन्हें बेहद गुस्सा आता है, लेकिन 15 अगस्त को हमारे कार्यक्रम के ख़त्म होने के तुरंत बाद ही, गौ रक्षकों और भाजपा के अराजक तत्वों नें पूरे ऊना क्षेत्र के दलितों के साथ मार-पीट की और उन्हें डराया धमकाया। इस घटना में कम से कम 50 दलित घायल हो गए। जाहिर है कि मोदी जी के शब्दों और जमीनी हकीकत में जमीन आसमान का फर्क है।

अभिषेक: आपने कहा कि मुख्यधारा का मीडिया मनुवादी है और लोग बड़े पैमाने पर सोशल मीडिया- फेसबुक और व्हाट्सएप्प का प्रयोग ख़बरों को पहुंचाने के लिए कर रहे हैं। गुजरात से रिपोर्टिंग कर रहे हिन्दुस्तान टाइम्स के सुदिप्तो नें भी, गुजरात के मीडिया के दलितों के प्रति भेदभावपूर्ण रवैये की बात कही। आप भी पहले गुजरात मीडिया में ही काम कर रहे थे। आपने क्या देखा और क्यों मीडिया में काम करना छोड़ दिया?

जिग्नेश: जातिवात, भारत में हर क्षेत्र जातिवाद से बुरी तरह प्रभावित है। मीडिया भी उससे अलग नहीं है। गुजरात में आरक्षण के विरोध में हुए दंगों में भी मीडिया नें अपनी भूमिका ठीक से नहीं निभाई। मैंने भी देखा है कि मीडिया में भी इस आधार पर भेदभाव होता है, लेकिन मीडिया का व्यवहार इसे लेकर बेहद लापरवाही भरा और असंवेदनशील है। इस दलित आन्दोलन के बाद अच्छी चीज ये हुई, कि संवेदनशील पत्रकारों को एक ऐसा मौका मिला जिससे वो इस विषय पर लिख पाए। आज पुरे देश में लोग, ऊना में जो हो रहा है और गुजरात में दलितों के साथ जो हुआ उस पर चर्चा कर रहे हैं। ये इस आन्दोलन का एक सकारात्मक पहलु है।

जहाँ तक पत्रकारिता के मेरे अनुभव की बात है, मुझे लगता था कि हम लेखन के दम पर बदलाव ला सकते हैं। लेकिन फिर आप हकीक़त से रूबरू होते हैं, और ये सोच बस सोच ही रह जाती है। फिर मुझे लगा कि लेखन तो चलता ही रहेगा, लेकिन उसके साथ-साथ ज़मीनी स्तर पर भी काम करने की जरुरत है। इस तरह मैंने 2008 में एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में काम करने का फैसला लिया।

अभिषेक: असंवेदनशील व्यवहार से आपका का मतलब है?

जिग्नेश: जब किसी निर्भया का बलात्कार होता है, और मीडिया जिस तरह से उसे कवर करता है जो कि जरुरी भी है, लेकिन हर दिन भारत में 4.3 दलित महिलाओं का बलात्कार होता है यानी कि महीने में 120 से भी ज्यादा। इन दलित निर्भायाओं का क्या दोष है? उनके बारे में मीडिया में कोई चर्चा नहीं होती। हर दिन 2 दलितों की हत्या कर दी जाती है, उसकी मीडिया में कोई चर्चा नहीं होती। हर 18 मिनट में किसी दलित के खिलाफ अपराध होता है, उसकी भी मीडिया में कोई चर्चा नहीं होती। मुख्यधारा के मीडिया में दलितों पर होने वाले अत्याचारों की जिस प्रकार की सतत रिपोर्टिंग होनी चाहिये, वैसी मैंने कभी देखी नहीं है।

अभिषेक: क्या आप सवर्णों से आपके साथ मिलकर काम करने की उम्मीद करते हैं और आप उनसे किस तरह के सहयोग की उम्मीद करते हैं?                           

जिग्नेश: सवर्णों में ब्राह्मणों से, पाटीदारों से और अन्य पिछड़ी जाति के समुदायों (ओ.बी.सी.) इन सभी समुदाय के लोगों से मुझे सहयोग मिल रहा है। इन सभी समुदायों के लोग मुझे कॉल करके कह रहे हैं कि ऊना में जो हुआ वो गलत था, इस तरह से और नहीं चल सकता, जो नारा तुमने दिया है वो बहुत सही है। सभी लोग कह रहे हैं कि अगर दलित उन पर थोपे गए परंपरागत काम नहीं करना चाहते तो उन्हें ज़मीनें दी जानी चाहिए। इसलिए जैसा कि मैंने पहले भी कहा है कि हम चाहते हैं कि इस आन्दोलन में सभी लोग शामिल हों। सभी लोगों का, चाहे वो किसी भी जाति या धर्म के हैं अगर वो हमारा समर्थन करते हैं तो उनका स्वागत है।

उन्हें तन-मन-धन से सहयोग करना चाहिए। जब हम रेल रोको आन्दोलन शुरू करेंगे और जब हम पर लाठीचार्ज किया जाएगा, तो उन्हें हमारे साथ आना चाहिए। जब वो मन से काम करें तो उन्हें मोदी जी की तरह मन की बात नहीं करनी चाहिये। धन से सहयोग करने से मेरा मतलब है कि वो हमें संसाधनों को लेकर सहयोग करें। वो इस सन्देश को सोशल मीडिया के जरिए फैला सकते हैं। अगर गुजरात के बाहर उनके संपर्क हैं तो वो, लोगों से 15 सितम्बर को गुजरात आने को कह सकते हैं, ताकि दलितों को ज़मीन मिल सके और उनकी अन्य मांगे पूरी हो सकें।

अभिषेक: कल की चर्चा में और आज भी लेफ्ट(वामपंथ) की दलित आन्दोलनों में भूमिका पर सवाल उठाया गया। इस बार उन्हें क्या नहीं करना चाहिए?

जिग्नेश: लेफ्ट को हमारे आन्दोलन में शामिल हो जाना चहिये। उन्हें पूरे मन से, पूरे दिल से इसमें शामिल हो जाना चहिये। जब वो लम्बे समय तक पूरे मन से हमारा सहयोग करेंगे, तो दलित भी उन्हें पूरे दिल से इस आन्दोलन में स्वीकार कर पाएंगे। और साथ ही जब वो इसमें शामिल हों तो उन्हें किसी दलित की जाति, उपजाति या धर्म के बारे में नहीं सोचना चाहिए। साथ ही दलितों को भी उन्हें पूरे मन से अपनाना चाहिए।

अभिषेक: अगर पाटीदार और जाट आन्दोलनों की बात करें, जिनमे आय के आधार पर आरक्षण की मांग की गयी। आपका इस बारे में क्या सोचना है?

जिग्नेश: आरक्षण का मुद्दा सामाजिक न्याय का है, नेतृत्व का है, वित्तीय उत्थान का नहीं- बस इतना ही कहूंगा।

अभिषेक: आपके आन्दोलन में भी सामजिक न्याय को, दलितों को आर्थिक रूप से मजबूत करने से जोड़ कर देखा जा रहा है, क्या इसे आपके आन्दोलन को ख़ारिज करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है?

जिग्नेश: नहीं, हम जिस तरह के आर्थिक उत्थान की बात कर रहे हैं वो अलग है हम किसानों, आदिवासियों और भूमिहीन लोगों की भी बात कर रहे हैं। इसका मतलब ही कि समय के साथ हमारे आन्दोलन को और भी अधिक समर्थन मिलेगा। दलित समुदाय के अलावा हम समाज के अन्य शोषित तबकों की जितनी ज्यादा बात करेंगे, हमें उतना ही अधिक समर्थन मिलेगा।

अभिषेक: यहाँ (दिल्ली) के अलावा आप और कहाँ जाने वाले हैं?

जिग्नेश: मैं केरल जाने वाला हूँ, तमिलनाडु और लखनऊ भी जाने वाला हूँ, वापस दिल्ली आने की भी योजना है और मुंबई भी जाऊँगा। साथ ही गुजरात में भी विभिन्न जगहों का फिर से दौरा करने की योजना है।

अभिषेक: क्या आप छात्रों के साथ भी काम कर रहे हैं?

जिग्नेश: जी हाँ, गुजरात में हम अम्बेडकर स्टूडेंट एसोसिएशन की एक विंग शुरू करने वाले हैं।

Featured and banner image credit: fb.com/DalitCameraDC

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