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2015 में दलितों के खिलाफ दर्ज हुए 45000 से भी ज्यादा अपराध: नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो

Photo credit: Dalit Camera

सिद्धार्थ भट्ट:

हाल ही में गुजरात के ऊना में दलितों को सरेआम बेरहमी से पीटे जाने की घटना ने, ना सिर्फ दलितों के खिलाफ अपराधों पर देशभर में एक चर्चा छेड़ दी, बल्कि गुजरात में अब तक के सबसे बड़े दलित आन्दोलन को भी जन्म दिया। तमाम कानूनों के बाद भी भारत में जाति के आधार पर भेदभाव जारी है। छुआ-छूत कानूनी रूप से अपराध होने के बाद भी मौजूद है, कहीं ये खुले आम दीखता है तो कहीं सामाजिक बहिष्कार के रूप में यह देखने को मिलता है।

यह कहा जा रहा है कि सोशल मीडिया की बढती पहुँच से, इस तरह के मामलों को ज्यादा तूल मिलता है, लेकिन  असल में सोशल मीडिया से ऐसे मुद्दे सामने आ रहे हैं, जिन्हें अब तक मुख्यधारा की मीडिया द्वारा बेहद उदासीनता से देखा जा रहा था। दलितों के खिलाफ चाहे ऊना में हुई बर्बरता हो, या तमिलनाडु के मदुरइ के पास के गाँव में 10 साल से भी कम उम्र के दलित बच्चों पर ही पी.ओ.एस.सी.ओ. (प्रोटेक्शन ऑफ़ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्शुअल ओफेंस) के तहत मामला दर्ज किया जाना। इस तरह के मामले काफी बड़ी तादात में सामने आ रहे हैं।

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एन.सी.आर.बी.) के 2015 के आंकड़े सामने आ चुके हैं। एन.सी.आर.बी. के आंकड़ों के अनुसार 2015 में दलितों के खिलाफ अपराध के 45003 मामले दर्ज किए गए थे। इन आंकड़ों के अनुसार हर एक लाख दलितों में अपराध का आंकड़ा 22.3 का था। राजस्थान में दलितों के खिलाफ अपराध दर (क्राइम-रेट) 57.3 (प्रति एक लाख) थी, जहाँ दलितों के खिलाफ सबसे अधिक अपराध दर्ज किए गए। इसके बाद आंध्र प्रदेश में प्रति लाख 52.3, बिहार में 38.9 और मध्य प्रदेश में 36.9 अपराध दर्ज किए गए।

इसी तरह सालों से जंगलों पर आजीविका पर निर्भर आदवासियों के खिलाफ भी अपराधों के किस्से सामने आते रहते हैं। अभी हाल ही में पिछले काफी समय से शांत त्रिपुरा में आदिवासियों के खिलाफ हिंसा की खबरे सामने आई। आज़ादी से पूर्व त्रिपुरी आदिवासी बहुल इस राज्य में, 1949 के बाद बड़ी संख्या में पश्चिमी पकिस्तान (अब बांग्लादेश) से आये हिन्दू बंगाली विस्थापितों के कारण यहाँ के मूलनिवासी ही आज अल्पसंख्यक हो गए हैं। इसके अलावा पूर्वोत्तर और केंद्रीय पूर्वी राज्यों से भी आदिवासियों के खिलाफ समय-समय पर अपराधों की घटनाएं सामने आती रही हैं।

एन.सी.आर.बी. के आंकड़ों से पता चलता है कि प्रति एक लाख आदिवासियों पर अपराध दर 10.5 है। इसमें भी प्रति लाख दर में राजस्थान (आदिवासियों के खिलाफ दर्ज किये गए कुल 10914 मामलों में से 3207 के साथ) दूसरे स्थान पर है। पहले स्थान पर केरल आता है जहाँ केवल 176 मामले दर्ज किए गए हैं। एन.सी.आर.बी. के आंकड़ों के अनुसार असाम, प. बंगाल, और बिहार राज्यों में ही बच्चों की कुल ट्रैफिकिंग के मामलों में से 85% मामले दर्ज किए गए हैं। ध्यान देने वाली बात है की इन राज्यों में बड़ी संख्या में आदिवासी रहते हैं। असाम और पश्चिम बंगाल राज्यों में वयस्कों और नाबालिगों दोनों की ही मानव तस्करी के सबसे ज्यादा मामले दर्ज किए गए हैं। एन.सी.आर.बी. के आंकड़ों के अनुसार असाम, प. बंगाल, और बिहार राज्यों में ही बच्चों की कुल ट्रैफिकिंग के मामलों में से 85% मामले दर्ज किए गए हैं। इनके अलावा आदिवासी बहुल राज्यों छत्तीगढ़, झारखण्ड और ओडिशा में भी मानव तस्करी के कई मामले दर्ज किए गए हैं।

 

 

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