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एम.पी. में मुस्लिम प्रिंसिपल पर लगा देशद्रोह का आरोप, 200 बच्चों नें रैली में किया विरोध

सिद्धार्थ भट्ट:

मध्यप्रदेश के रायसेन जिले के थाला डिघावन हायर सेकेंडरी स्कूल के करीब 200 छात्रों नें स्कूल के कार्यवाहक प्रधानाचार्य (प्रिंसिपल इन-चार्ज) ज़हीर अहमद खान पर लगाए गए देशद्रोह के आरोप के खिलाफ रैली निकाली। इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार कुछ दिनों पहले, इस सरकारी स्कूल के मुस्लिम प्रिंसिपल पर एक रैली के दौरान कुछ छात्रों को ‘भारत माता की जय’ बोलने पर उन्हें रैली से बाहर कर देने के कारण देशद्रोह का आरोप लगाया गया। इन आरोपों के झूठे होने की बात पर, इस स्कूल के छात्रों ने बुधवार 24 अगस्त को इस रैली का आयोजन किया।

प्रिंसिपल ज़हीर अहमद खान पर कथित रूप से छात्रों को ‘इन्कलाब जिंदाबाद’ की जगह ‘भारत माता की जय’ बोलने पर रैली से बाहर कर देने का आरोप लगाया गया। वहीं कई छात्रों के दस्तखत किये गए एक बयान के अनुसार, “प्रिंसिपल के खिलाफ लगाए गए आरोप पूरी तरह से गलत हैं, वो खुद भारत माता की जय के नारे लगा रहे थे और बच्चों को भी इसके लिए प्रोत्साहित कर रहे थे।”

स्कूल में केमिस्ट्री पढ़ाने वाले ज़हीर ने कहा, “जब भी मौका आता है तो मैं खुद भारत माता की जी के नारे लगता हूँ, उस दिन कुछ छात्र फ़िल्म अभिनेताओं के नाम के नारे लगा रहे थे तो मैंने उन्हें रैली से निकल जाने को कहा। मेरे मुस्लिम होने के कारण मुझे इस झूठे आरोप में फंसाया गया है।”

अंधे राष्ट्रवाद और धर्मान्धता के कारण कुछ लोगों को निशाना बनाए जाने की इस तरह की घटनाएं, पिछले कुछ सालों में काफी बढ़ी हैं। भाजपा शाशित मध्यप्रदेश में यह रैली एक सरकारी कार्यक्रम “आजादी 70: याद करो कुर्बानी” का हिस्सा थी, जिसमे ज़हीर पर देशद्रोह का आरोप लगाया गया। क्षेत्र के कलेक्टर लोकेश जाटव नें इसे ग़लतफहमी का मामला कहा है। निश्चित तौर पर यह सही भी होगा और संभवतया ज़हीर पर से यह आरोप हटा भी लिए जाएंगे, लेकिन किसी धर्म विशेष से होने के कारण से ही किसी पर भी देशद्रोह जैसा संगीन आरोप लगाया जाना अपने आप में एक चिंता का बड़ा विषय है।

इससे पूर्व 2013 में नासिक के सावित्रीबाई फुले सेकेंडरी स्कूल के टीचर संजय साल्वे के वेतनमान (पे ग्रेड) को 2008 से इसलिए नहीं बढाया गया था, क्यूंकि वो सुबह की प्रार्थना सभा में हाथ जोड़कर खड़े नहीं होते थे। स्कूल की एक गोपनीय रिपोर्ट के अनुसार उन्हें अनुशाशन का पालन ना करने का दोषी पाया गया, जिस कारण उनके वेतनमान को नहीं बढाया गया। यहाँ ध्यान देने वाली बात है कि संजय बौध धर्म में विश्वास रखते हैं और उन्होंने प्रार्थनाओं के धर्म विशेष से होने के कारण उनमें हाथ जोड़ने से इंकार कर दिया था।

स्कूल प्रशासन का यह कदम सीधे तौर पर साल्वे के संवैधानिक और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है, जो उन्हें धार्मिक विचारों की आज़ादी देता है। इसी मामले में 2014 में मुंबई हाई कोर्ट की एक बेंच नें संजय की याचिका पर फैसला देते हुए कहा था कि, “किसी को भी किसी धर्म विशेष की प्रार्थना में हाथ जोड़ने या उसे गाने पर मजबूर नहीं किया जा सकता। अच्छे प्रदर्शन के बावजूद याचिकाकर्ता के वेतनमान को केवल इस बात पर बढ़ाने से नहीं रोका जा सकता।” कोर्ट ने स्कूल प्रशासन को तुरंत साल्वे का वेतनमान बढाए जाने का आदेश दिया और नवम्बर 2013 तक का एरिअर देने का भी निर्देश दिया।

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Photo credit: www.gettyimages.in

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