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कैसे छत्तीसगढ़ के 10 साल से भी छोटे बच्चों ने नगरपालिका अध्यक्ष को सिखाया सफाई का पाठ

अनन्या पांडे:

बचपन में कई दफा हमें यह कह कर नकारा जाता था कि, “आप अभी छोटे हैं, चुप रहिए।” यही सुनते-सुनते हम बड़े भी हो गए। अब हम भी अपने से छोटों को जाने-अनजाने में वही सब कह जाते हैं, जो तब हमें सुनना अच्छा नहीं लगता था। कई बार तो हम समझने की भी कोशिश नहीं करते कि बच्चे कहना क्या कहना चाहते है? सही और गलत का निर्णय तो बाद की बात है।

मैं दिल्ली यूनिवर्सिटी से इतिहास में बी.ए. सेकंड इयर की स्टूडेंट हूँ, और मेरा परिवार छत्तीसगढ़ के कवर्धा जिले में रहता है। हाल ही में मेरी माँ ने मुझे फोन पर बताया कि, हमारे घर के आस-पास के कुछ बच्चों के स्कूल में हुए एक कार्यक्रम के दौरान उन्हें स्वच्छता अभियान के तहत कुछ जानकारी दी गयी थी। यह सभी बच्चे पाँच से दस वर्ष की उम्र के हैं। कार्यक्रम के बाद  कुछ बच्चों ने गौर किया कि वे सभी जिस मोहल्ले में रहते हैं, वहां पर काफी गन्दगी फैली रहती है।

इसके बाद  कुछ बच्चों ने इस समस्या को हल करने का फैसला किया। इन बच्चों नें वहां रह रहे सभी लोगों से कुछ पैसे जमा करने की बात कही, ताकि अगली सुबह वो सफाई कर्मचारी को बुलाकर वहां की साफ सफाई करवा सकें। तभी उन्हें पता चला की अगर वे सभी नगर पालिका अध्य्क्ष के पास जाएं, तो यह साफ सफाई नियमित रूप से हो पाएगी और वहां एक बड़ा कूड़ादान भी रखवाया जा सकता है जिससे गन्दगी कम होगी।

फिर सभी बच्चे नगर पालिका अध्यक्षा श्रीमती देव कुमारी चंद्रवंशी के पास पहुँच गए और उनसे मांग की कि, उनके मोहल्ले में सफाई नियमित रूप से हो और वहां बड़ा कूड़ादान भी रखवाया जाए। इन बच्चों के इस कदम के बाद नगर पालिका अध्यक्ष ने उन्हें धन्यवाद दिया और उन्हें आश्वस्त कराया कि उनके मोहल्ले में नियमित रूप से सफाई करवाई जाएगी और दस दिन के भीतर वहां पर एक बड़ा कूड़ादान भी रखवाया जाएगा।

इस पुरे सन्दर्भ में मैं, यह कहना चाहती हूँ कि बच्चों को उनकी बात रखने का मौका जरूर दिया जाना चाहिए। इसका यह मतलब नहीं है कि उनसे एक बालिग की तरह पेश आया जाए। बचपन की यही कुछ छोटी-छोटी बातें होती हैं, जो उनके अंदर समाज के प्रति जिमेदारी की भावना उत्पन्न करती हैं और उन्हें सोचने-समझने का एक नजरिया भी देती हैं। केवल यही नहीं, इससे उनके अंदर का आत्मविश्वाश भी बढ़ता है। बच्चे सभी बातें किताबों से नहीं सीख पाते बल्कि वे कई बातें अपने आस-पास की चीज़ों को देख कर सीखते हैं। इससे वो यह समझ पाते हैं कि समाज की जरूरतें क्या हैं और उनमें किस तरह के बदलाव की जरुरत है। इस तरह छोटी-छोटी चीजें  उन्हें एक अच्छे नागरिक बनाने की और लेकर जाती हैं। साथ ही हम बड़ों को भी बच्चों की इन छोटी-छोटी कोशिशों से सीख लेने की भी जरुरत है।

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