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भारत जैसे युवा देश में बेरोजगारी की समस्या को लेकर कितनी गंभीर है सरकार?

शुभम कमल:

एक रविवार के दिन तेज पानी और घने बादलों के बीच मेरी सुबह हुई। बाहर निकलकर देखा तो पास के स्कूल के बाहर हजारों युवाओं की भीड़ थी और ऐसी ही भीड़ पूरे शहर के स्कूलों के बाहर थी। वहां खड़े युवा सेंटर के बाहर चस्पा लिस्ट को बार-बार अपने एडमिट कार्ड के अनुरूप देख रहे थे। दरअसल उस दिन परीक्षा होने वाली थी संघ लोक सेवा आयोग के सिविल सर्विसेज की। अभी परीक्षा में काफी समय था, तो मैं उनसे बेरोजगारी पर बात करने निकल पड़ा। उस सेंटर पर खड़े युवा काफी दूर-दराज के इलाकों से लम्बा रास्ता तय करके वहां पहुंचे थे। उनसे बात करके मुझे काफी कुछ सीखने को मिला।

बेरोजगारी का शब्द सुनते ही भारत का नाम सबसे पहले दिमाग में आता है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि बाकी देशों में बेरोजगारी एक समस्या नहीं है। लेकिन शायद भारत में इसे गंभीरता से नही लिया गया है। इसका दुष्परिणाम यह हुआ बेरोजगारी की दर लगातार नई ऊंचाई को छूती जा रही है। सन 2011 तक बेरोजगारी की दर लगभग  9.6% तक पहुँच चुकी थी। आज लगभग 16 करोड़ युवा बेरोजगार हैं, अगर यही स्थिति रही तो 65% युवाओं के देश में यह समस्या बहुत ज्यादा खतरनाक रूप ले सकती है।

वहीं मौजूद युवाओं में से एक युवक शुरुआत करते हुए कहता है, बेरोजगारी का मुख्य कारण जनसँख्या वृद्धि है। जहाँ 1947 के दशक में जनसँख्या लगभाग 33 करोड़ थी, वो अब लगभग 125 करोड़ (2011 की जनगणना के अनुसार) पहुँच चुकी है। एक दुसरे युवक पहले वाले युवा के हाँ में हाँ मिलते हुए कहता है कि, यह एकदम सत्य है एन.एस.एस.ओ. (नेशनल सैंपल सर्वे आर्गेनाइजेशन ) की 2014 की रिपोर्ट के अनुसार कृषि क्षेत्र लगभग 53% रोजगार प्रदान करता है। जबकि सरकारी नौकरी केवल 2% तथा निजी क्षेत्र लगभग 34% व बाकि 9% व्यवसाय रोजगार प्रदान करता है।

वहां एक किसान परिवार से आया युवक कहता है, कृषि जो 53% रोजगार प्रदान करता है उस रोजगार में कब बेमौसम बारिश,ओले, या सूखा पड़ जाये कोई नही जानता। सूखे की हालत में कोई कैसे केवल कृषि पर निर्भर रह सकता है, जबकि सरकार से कोई उम्मीद ना की जा सके। हर वर्ष लगभग 5 लाख किसान आत्महत्या या पलायन करते हैं। कृषि की इस स्तिथि को देखकर युवा कृषि क्षेत्र से डरता है तथा वो मजदूरी की तरफ अग्रसर होता है।

एक अन्य युवक बाबा साहेब आंबेडकर की याद दिलाते हुए कहता है कि, देश में औद्योगिक विकास जरुरी है पर इसके साथ-साथ देश में फौरन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट यानी कि सीधा विदेशी निवेश, कौशल विकास (स्किल डेवेलपमेंट) और जिम्मेदार सरकार का होना भी जरुरी है। औद्योगिक विकास से ही हम विकसित देशों में शामिल हो सकते है।

एक युवक नाराजगी के साथ कहता है कि, सरकारों को ना केवल स्किल डेवलपमेंट पर जोर देना होगा बल्कि युवाओं को भरोसा दिलाना होगा कि सरकार उन्हें रोजगार दिलाने के लिए प्रतिबद्ध है। कांग्रेस ने असम में 10 लाख युवाओं को रोजगार देने का वादा किया था, तो प्रधानमंत्री मोदी जी ने 1 करोड़ रोजगार देने का, पर बाद में यह सियासी जुमले बनकर रह गए। एक अन्य युवक कहता है कि, सरकारी नौकरी एक व्यवस्थित जीवन प्रदान करती है (भले ही इसका हिस्सा 2% हो) इसीलिए ज्यादातर युवा इसके पीछे भाग रहें है। जबकि भारत विकसित देश तभी बनेगा जब इसका औद्योगिक विकास हो और साथ ही साथ कृषि को भी प्राथमिकता दी जाये तथा युवा इससे जुड़ें।

एक दूर खड़ा युवक कहता है कि, भले ही सरकारी क्षेत्र 2% रोजगार ही पैदा करता हो, पर यह रोजगार उन्ही को मिलना चहिये जो इसके हक़दार हैं। यानी आरक्षण को समाप्त कर देना चाहिए,  सरकार को आरक्षण ख़त्म करके कृषि पर जोर देना चाहिए जिससे युवा कृषि और व्यवसाय की तरफ अग्रसर हो। एक दुसरा युवक इसका कड़ा विरोध करते हुए कहता है कि, जब तक सामाजिक भेदभाव की स्थिति ख़त्म ना हो जाए और देश की शिक्षा व्यवस्था प्रणाली सुधर नही जाये तब तक आरक्षण रहना चाहिए, ताकि समाज में समानता जल्द से जल्द आ सके।

एक मुस्लिम युवक कहता है कि, मुस्लिम समाज को सरकारी नौकरी या निजी क्षेत्र में रोजगार नही मिलेगा, ऐसी आम सोच बन चुकी है। आज लोग इस्लाम को गलत और अपने तरीके से देखते हैं और रोजगार देने से हिचकते है, ऐसा क्यूँ है? हम भी भारतीय हैं और हमे भी एक भारतीय की ही नज़र से देखा जाना चाहिए। इसी श्रंखला में कश्मीर से आया हुआ एक युवक कहता है कि, हमें तो अन्य राज्यों के लोग आतंकवादी और देशद्रोही ही समझते हैं और रोजगार नही देते। सितम्बर 2011 के अंत तक एक आंकड़े के अनुसार कश्मीर में लगभग 6 लाख युवा बेरोजगार थे

काफी देर से खड़ी युवतियों में से एक युवती कहतीं हैं कि, देश की तरक्की देश की महिलाओं की स्थिति पर भी निर्भर करती है। देश में लगभग आधी आबादी महिलाओं की है, लेकिन पुरुषों के मुकाबले महिलाएं काफी पीछे हैं। ऐसे में उनको आगे करने के लिए आरक्षण ही एक रास्ता है, तो बतौर महिला आरक्षण उन्हें भी मिलना चाहिए। ताकि वो भी रोजगार पाकर बेहतर समाज और विकसित देश के निर्माण में मजबूती के साथ हाथ बटा सकें।

एक अन्य युवती कहती है कि, चुनाव के समय ज्यादातर नेता महिलाओं से वोट निकलवाने के लिए उनके परिवार जनों से अपील करते हैं, पर महिलाओं को ज्यादा महत्त्व नही दिया जाता। वह हाल ही में आए एक विवादित बयान ‘महिलाओं को केवल घर का ही काम करना चाहिए’ की तरफ भी इशारा करती है।

वहां खड़े सारे युवा व् युवतियां एक आवाज़ में कहतें हैं कि, वो अब सरकार को आइना दिखाना चाहते है। सरकार से अब वे अपने हक की बात करने से नही हिचकिचाएँगे और बेरोजगारी की समस्या को सरकार के साथ हल करने का फैसला करेंगे। आने वाले समय में उसी सरकार का चुनाव करेंगे जिस पार्टी के पास बेरोजगारी को कम करने का मूलभूत सिद्धांत हो। वो अब अपने भविष्य के प्रति सजग हैं और ज्यादा दिनों तक बहकावे में आने वाले नही हैं।

 

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