अतीत की एक घटना की कचोट मेरा पीछा नहीं छोड़ती। इस बार ‘गणेश चतुर्थी’ ने फिर इसकी याद दिला दी, ये बात साल 2013 की है। उन दिनों मैं अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् (ABVP) से जुड़ा था। इस घटना का संबंध रोहित और उसकी संस्थानिक हत्या के लिए ज़िम्मेदार (सुशील कुमार) से है। उन दिनों हैदराबाद यूनिवर्सिटी में गणेश चतुर्थी उत्सव के आयोजन और इसको लेकर राइट विंग द्वारा प्रचारित किये जा रहे स्यूडो साइंस को लेकर फेसबुक पर विभिन्न समूहों में बहसें छिड़ी थीं। एक कट्टर धार्मिक व्यक्ति के रूप में मैंने उन बहसों में उत्सव के आयोजन का भरपूर पक्ष लिया। उस बहस में मेरे विपक्ष में अनेक लोग शामिल थे, रोहित भी उनमें से एक था। एबीवीपी के काम करने के रहस्यमय तरीकों का एक प्रमाण था हमारा ग्रुप “गणेश उत्सव समीति”। इस ग्रुप के रूप में हम रोहित और अन्यों की नास्तिक सोच से परिचित थे।
यह बहस हमारे हाथ से छूटती जा रही थी क्योंकि इस उत्सव का विरोध करने वालों की संख्या हम से बहुत अधिक थी। और तब एबीवीपी ने अपना वह दाव खेला जिसमें इसे महारथ हासिल है, जिसे अंग्रेज़ी में “विच हंटिंग” कहा जाता है।
मैं तब तक संगठन में नया था (लगभग दो महीने) और नहीं जानता था कि ये लोग परदे के पीछे किस तरह काम करते हैं। यह तय किया गया कि यह लोग बहस में उनका विरोध करने वालों को सबक सिखाने के लिए उनके खिलाफ ब्लासफेमी (“ईश-निंदा”) का मुक़दमा दायर करेंगे।
मुझसे कहा गया कि मैं इन लोगों के पोस्ट और कॉमेंट के स्क्रीन शॉट लेकर कुछ लोगों को मेल कर दूं जो कि स्टूडेंट्स नहीं थे (इनमें से एक सुशील का भाई भी था)। मैंने उनकी बात मान कर स्क्रीन शॉट लिया और बताए गए लोगों को मेल कर दिया।
इन लोगों के बीच हुई गोपनीय चर्चाओं में ये तय किया गया कि रोहित उनका इकलौता लक्ष्य होगा। उनकी शिकायत का आधार रोहित के द्वारा अपने टाइम लाइन पर पोस्ट की गई एक कविता को बनाया गया। ये कविता हिन्दू देवता गणेश पर तेलुगु लेखक श्री श्री की लिखी कविता थी। इसी तरह एक और पोस्ट को निशाना बनाया गया जिसमें रोहित ने मज़ाक के लहज़े में यह प्रश्न किया था कि जिस तरह हम विनायक चतुर्थी मनाते हैं, उसी तरह सुपरमैन और स्पाइडरमैन जैसे सुपर स्टार्स का जन्मदिन क्यों नहीं मनाते? (दोनों स्क्रीन शॉट संलग्न हैं)
इस शिकायत का परिणाम ये हुआ कि रोहित को गिरफ्तार कर लिया गया और (जहाँ तक मुझे याद है) उसे दो दिन तक स्थानीय पुलिस की हिरासत में रखा गया। “रोहित को सबक सिखाने” में मिली इस सफलता को लेकर एबीवीपी के छात्र नेताओं में काफी उत्साह का माहौल था। रोहित को बाद में छोड़ दिया गया (इस प्रकरण की पूरी जानकारी उपलब्ध नहीं है) और उसने बाद में उसकी आवाज़ को जिस तरह दबाने की कोशिश की गयी उसे लेकर एक पोस्ट भी लिखा।
एबीवीपी के सदस्य के रूप में ऐसी कई घटनाएं हैं जिनमें अपनी भागीदारी को लेकर में शर्मिन्दा हूँ, लेकिन यह एक घटना ऐसी है जो मुझे सबसे ज़्यादा परेशान करती है और मेरा पीछा नहीं छोड़ती है क्योंकि इसमें रोहित को जिस तरह निशाना बनाया गया उसमें मेरी भी सीधी भागीदारी रही थी।
यह कोई अकेली घटना नहीं थी जिसमें रोहित को निशाना बनाया गया था। रोहित जिस किसी भी राजनीतिक दल से जुड़ा रहा वहां उसके निर्भीक और मुखर रवैये को लेकर एबीवीपी के वरिष्ठ सदस्यों में रोहित के प्रति ज़बरदस्त गुस्सा और नफ़रत थी। यही वजह थी कि वो लगातार ऑनलाइन और ऑफलाइन निशाने पर रहता था।
आज इसके बारे में माफी नहीं माँगी जा सकती क्योंकि रोहित अब इस दुनिया में नहीं है, लेकिन इस घृणा को जग जाहिर करना, जिसका शिकार उसे बनाया गया मुझे उस अपराध बोध से बाहर आने में मदद करता है जो मुझे इस संगठन से जुड़े रहने और इसके कृत्यों में शामिल होने के लिए कचोटता रहता है।
वे लोग जो आज इस बात को मानने से इनकार करते हैं की हिन्दुत्ववादी ताकतों ने रोहित को आत्महत्या के लिए मजबूर किया वो शायद ये नहीं जानते होंगे कि उसे लगातार किस तरह की गालियों, दुर्व्यवहारों और उत्पीड़नों का सामना करना पड़ता था जिनके चलते उसने संघ परिवार की जातिवादी-साम्प्रदायिक-फासीवादी राजनीति का डटकर मुकाबला करने का निर्णय लिया। इस तरह एक “संस्थागत क़त्ल” को अंजाम दिया गया।
इस तरह दलित, आदिवासी और धार्मिक अल्पसंख्यकों जैसे हाशिये के समूहों को राज्य, पुलिस और हिन्दुत्ववादी समूह मिल कर “विच हंट” करते हैं। इन समूहों की हरकतों को सामने लाना और इनकी घृणा की राजनीति के विरुद्ध आवाज़ उठाने में शामिल होने के लिए अभी भी बहुत देर नहीं हुई है।
(नोट-यह लेख सबसे पहले शिव साई राम ने अपने फेसबुक पर अंग्रेज़ी में पोस्ट किया था)
अनुवाद- देवयानी भारद्वाज: