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सोशल मीडिया पर: ‘माय पर्सनल ओपिनियिन’ और आर्ट आॅफ बैड आर्ग्यूमेन्ट्स

सुमित श्रिवास्तव:

सोशल मीडिया के इस चंद्रमुखी दौर में आजकल हम सबके पास या तो एक ओपिनियन है या किसी भी मुद्दे पे अपना कोई सा भी ओपिनियन बना के जताने और दूसरे का नकारने की कुलबुलाहट। बहुत पहले मैंने आॅस्कर वाइल्ड की एक सूक्ति पढ़ी थी, ‘There are three sides to any argument: your side, my side and the right side.’ उस समय शायद फेसबुक नहीं था और गिने चुने ही लोग चीजें डिस्कस करते थे तो समय के हिसाब से ये बेहतरीन और ह्यूमरस था, पर कड़वी सच्चाई ये है कि आजकल के ज़माने में there is only one side to any argument: my side. बाकी या तो हम तुम्हारी बात सुनेंगे ही नहीं या फिर तुमको गरिया के चुप करा देंगे। अगर तुम सभ्य हो और पाइनेप्पल का जूस पीते हो तो चुप ही हो जाओगे या अंग्रेजी में कुछ बक दोगे और अगर मेरी तरह गन्ना का रस पीते हो तो पाँच मिनट बाद हममें से कोई एक, दूसरे को पाकिस्तानी कह ही देगा, बात भले ही मारिया शारापोवा की क्यों ना हो रही हो।

एक ये भी पैटर्न फैशन में है कि अगर आप बोलें कि फलाना ने ढिमका को क्यों मारा तो शायद मैं आपसे पूछ लूँगा कि उस समय तुम कहाँ थे जब ढिमका ने फलाना को मारा था भले ही इस बार फलाना ने ढिमका को मार मार के मार ही दिया हो। मुझे लगता है न्यूटन ने अगर अभी गुरुत्वाकर्षण का नियम दिया होता तो शायद किसी ना किसी ने पूछ ही लिया होता कि उस समय तुम कहाँ थे जब अमरूद तुम्हारे सर पर गिरा था। शायद इसी साइंटिफिक टेम्पर की बात हमारे संविधान में की गई है।

दूसरी बात, हमारे पास हर चीज के बारे में एक्सपर्ट ओपिनियन है। काश्मीर की समस्या हम यूँ सुलझा देंगे, भले ही जम्मू काश्मीर के बारे में सिर्फ राजधानी श्रीनगर सुना है वो भी Lucent में पढ़े थे SSC की तैयारी करते वक्त। पेलेट गन क्यों, एके सैंतालिस चलना चाहिए वहाँ और तुम सिर्फ ‘क्यों’ पूछ दो तो तुम्हें हम कहीं भी भेज सकते हैं, प्रेफरेबली पाकिस्तान।

जेएनयू को कैसे फंक्शन करना चाहिए, मुझे पता है। तो क्या हुआ जो मैं सदाशिव आदर्श महाविद्यालय से पढ़ा हूँ। अगर मैं देशभक्ति वाले साइड हूँ तो भी, देशद्रोह वाले साइड हूँ तो भी, मुझे पहले से पता है कि सॉल्यूशन क्या है और हाँ ये सब चीजें मैं सिर्फ फेसबुक पर लिख सकता हूँ। सामने तो कोई कुछ पूछ दे तो ‘सर’, ‘सर’ के अलावा कुछ नहीं निकल पाएगा।

और अगली और सबसे महत्वपूर्ण बात, देश की आधी आबादी पिछले 2-3 सालों में इतनी जटिल तरीके से एनिमल लविंग और फेमिनिस्ट हो गई है कि अंधेरे में मेरा पैर एक कुतिया के पैर पर पड़ गया तो मेरा दोस्त ‘काटी तो नहीं’ पूछने के बजाय मुझे एक घंटा लेक्चर दिया। आधा एनिमल केयर पर, आधा फेमिनिज़्म पर।

तो अगर आप भी ये सब देखते-सुनते हैं, आपके पास काश्मीर की समस्या का समाधान है और आप दूसरों की बातें मानना पसंद नहीं करते तो आइये, कभी चाय पर चर्चा करेंगे, मुझे भी पसंद नहीं दूसरों की बातें सुनना और मानना।

 

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