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बाल गंगाधर तिलक का वो भाषण जिसमें उन्होंने कहा “स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है”

प्रशांत झा:

1908 में विद्रोही लेखों की वजह से लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक को देशद्रोह का चार्ज लगाते हुए बर्मा के मंडालय के जेल भेज दिया गया था। 1914 में भारत वापस आने पर तिलक, राजनीति पर नरम दल के बढ़ते वर्चस्व और दम तोड़ते स्वदेशी और बॉयकॉट मूवमेंट को देखकर परेशान हुए। राष्ट्रवादी आंदोलनों की चिंगारी फिर से जलाने के लिए एनी बेसेंट और तिलक ने होम रूल लिग बनाया। इस लिग का उद्देश्य देश में स्वराज लाना था। एनी बेसेंट और तिलक दोनों इस बात को समझ चुके थे कि तत्कालीन कॉंग्रेस पार्टी में होम रूल पर सहमति बनाना आसान नहीं था। तिलक और ऐनी बेसेंट दोनों ने देश में घूम-घूमकर लोगों को आम भाषा में स्वराज के बारे में समझाया। इस अभियान को साल भर के अंदर ही पूरे देश में पुरज़ोर समर्थन मिला। होम रूल मूवमेंट ने देश भर में राष्ट्रवाद को नई दिशा दी और तिलक नायक बन कर उभरे।
यहां हम तिलक की जिस भाषण के अंश को प्रकाशित कर रहे हैं वो तिलक ने होम रूल लीग के पहले स्थापना दिवस पर नासिक में दी थी।

नासिक, 17 मई 1917

——————————————————————————————————————————————————————————-बेशक मेरी उम्र बहुत जवां नहीं है लेकिन मेरे जज़्बे में आज भी वही आग है। आज मैं आप से जो कुछ भी कहूंगा वो आपके लिए  हमेशा प्रेरणादायक होगा। ये शरीर भले ही ढल जाए, बूढ़ा हो जाए, जर्जर हो जाए लेकिन हमारी प्रतिज्ञा अमर होती है। ठीक उसी तरह हो सकता है हमारे स्वराज अभियान में थोड़ी शिथिलता आ जाए लेकिन इसके पीछे की सोच, और उद्देश्य शाश्वत है जो कभी खत्म नहीं होगी और हम स्वतंत्रता हासिल कर के रहेंगे।

स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है। मेरा स्वराज जबतक मेरे अंदर ज़िंदा है मैं कमज़ोर या बूढ़ा नहीं हो सकता। कोई भी हथियार इस हौसले को नहीं पस्त कर सकती, कोई आग इसे जला नहीं सकती, पानी की धारा इसे भिगो नहीं सकती, हवा के तेज़ झोंके भी इसे सुखा नहीं सकते। हम स्वराज की मांग करते हैं और हम इसे लेकर रहेंगे। जो विज्ञान स्वराज पर खत्म होती है वही राजनीति की भी विज्ञान होनी चाहिए, वो नहीं जो ग़ुलामी की ओर ले जाए। राजनीति का विज्ञान ही देश का वेद है। मैं आपकी अंतरआत्मा को जगाने आया हूं। मैं आप सबको झूठे, मक्कारों और ठगों के झांसे से बाहर निकालने आया हूं।

स्वराज का मतलब कौन नहीं जानता कौन स्वराज नहीं चाहता। अगर मैं आपके घर जबरन घुस आउं और आपके किचन को कब्ज़े में ले लूं तो क्या आप इसकी इजाज़त देंगे?  नहीं ना, मेरे घर की तमाम मसलों पर मेरा अधिकार होना चाहिए। एक सदी गुज़र गई लेकिन अंग्रेज़ी हुकूमत अब भी हमें स्वराज के काबिल नहीं मानती, लेकिन अब हम अपनी लड़ाई खुद लड़ेंगे। जब इंग्लैंड भारत का इस्तमाल कर बेल्जियम जैसे छोटे राष्ट्र को बचाना चाहता है फिर वो हमें किस मुंह से स्वराज के काबिल नहीं मानता? जो लोग हमें गलत ठहरा रहे हैं वो लालची और हमारे विरोधी हैं, लेकिन इससे विचलित होने की ज़रुरत नहीं है क्योंकि बहुत लोग इश्वर के निर्णय में भी खोट निकालते हैं। हमें इस वक्त बिना कुछ और सोचे हुए देश की आत्मा की रक्षा में जुटना होगा। हमारे देश का भविष्य और समृद्धि अपने जन्मसिद्ध अधिकार यानी स्वराज में नीहित है। कॉंग्रेस ने स्वराज का प्रस्ताव पास कर दिया है। 

हमारे स्वराज अभियान के रास्ते में कई अड़चने खड़ी हैं या खड़ी की जा रही हैं। बड़े स्तर पर अशिक्षा ऐसी ही एक बड़ी अड़चन है, लेकिन इस अड़चन को बहुत दिनों तक हम नहीं सह सकते। अगर हमारे देश के अशिक्षित लोगों को स्वराज की थोड़ी जानकारी भी हो तब भी बहुत बड़ा मसला हल हो सकता है, ठीक वैसे ही जैसे इश्वर का पूरा सत्य शायद ही हममें से कोई जानता है, फिर भी अटूट आस्था रखता है। जो अपना काम खुद कर सकते हैं वो अशिक्षित ज़रूर हो सकते हैं लेकिन मूर्ख नहीं। वो किसी भी पढ़े लिखे इंसान जैसे ही विद्वान हैं, और अगर वो अपनी ज़रुरतों और परेशानियों का फर्क समझ लें तो उन्हें स्वराज के मूल्यों को समझने में भी कोई दिक्कत नहीं होगी। अनपढ़ लोग भी इसी समाज का हिस्सा हैं और हम में से ही हैं उनको भी समाज में समान अधिकार है। इसिलिए जनमानस को जागृत करना हमारा कर्तव्य है।

परिस्थितियां बदली हैं और हमारे लिए ये बिलकुल सही मौका  है। इस वक्त हम सबकी एक ही आवाज़ है ” अभी नहीं तो कभी नहीं” आइये हम सब इंसाफ और संवैधानिक क्रांति की राह पर चलें। संकल्प करिए और पीछे मुड़ कर मत देखिए अंत परिणाम उपर वासे पर छोड़ दीजिए।

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