शहीदों के सपनों का देश यह नहीं है। शहीद-ए-आज़म भगत सिंह के भतीजे किरणजीत सिंह का कहना है कि ताऊ जी ने जिस आज़ादी की खातिर फांसी के फंदे को चूमा था वह सपना आज तक अधूरा है। वह आज़ादी नहीं आई, बल्कि देश उल्टी दिशा को चल पड़ा। आज किसान की क्या हालत है? मज़दूरों की क्या हालत है? ज़िन्दा रहना मुश्किल हो गया है, बेरोज़गारी चरम पर है। भ्रष्टाचार और साम्प्रदायिकता जिस तरीके से बढ़ रही है, आज देश की हालत देखकर तकलीफ होती है। आज देश को जाति, धर्म, सम्प्रदाय की दीवारों में बांटा जा रहा है।
परिवार के सहारनपुर कनेक्शन के बारे में उन्होंने बताया कि हमारा पुश्तैनी गांव तो खटखट कला है जो पहले जालंधर का हिस्सा था अब अलग से ज़िला बना दिया गया है जिसका नाम शहीद भगत सिंह नगर रखा गया है। हमारे पूर्वज, 1880 में जब लायलपुर आबाद हुआ तब और लोगों के साथ वहा शिफ्ट हो गये। भगत सिंह और मेरे पिता कुलतार सिंह का जन्म लायलपुर और लाहौर में हुआ। भगत सिंह की ज़्यादातर पॉलिटिकल एक्शन, मुकदमें, फांसी सब वहीं हुई।
1947 मे दुर्भाग्य से देश बंटवारे के बाद हमारे परिवार को लाहौर से खटखट कलां आना पड़ा, परिवार के पास ज़मीन कम थी तो मेरे पिता कुलतार सिंह और कुलवीर सिंह दोनों सहारनपुर आ गये। सहारनपुर के ठाकुर यशपाल जी लाहौर में पढ़ते थे और परिवार के मित्र थे उनके बहुत जोर देने पर यहां आ गए। सहारनपुर से जुड़ाव यह भी था कि यहां बम फैक्ट्री थी जिससे क्रांतिकारियों का यहां आना जाना लगा रहता था। मेरे दादा सरदार किशन सिंह जी भगत सिंह की फांसी के बाद उत्तर भारत के कई शहरों में गए थे सहारनपुर भी आए थे।
यह कोई अनजाना शहर नहीं था बल्कि यमुना नगर तक पंजाब था। 1950 में यहां आ गए थे। कई दशकों तक लंबा संघर्ष करने के बाद परिवार के लोग थक गए थे। यहां के लोगों के बहुत दबाव के बाद पिता जी चुनाव लड़े और 1974-1977 तक विधायक रहे। उत्तर प्रदेश के क्रांतिकारी आंदोलन के साथ भगत सिंह का अभिन्न रिश्ता रहा है चंद्रशेखर आज़ाद, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्ला खां के साथ। वे कानपुर रहे अपने फरारी के दिनो में अलीगढ़ रहे , शिव वर्मा, दुर्गा भाभी और डॉ. गया प्रसाद, जयदेव कपूर के साथ परिवार का अंतिम समय तक पिता जी का मिलना जुलना, कार्यक्रमों में युवा पीढ़ी को संदेश देने के लिए आना जाना लगा रहा। हमारे परिवार के साथ उत्तर प्रदेश का बहुत गहरा रिश्ता रहा है।
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