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धार्मिक दंगों में कौन मरता है, किसका रोज़गार बर्बाद होता है और किसका फायदा होता है?

संजय जोठे:

धार्मिक दंगों में कौन मरता है? किसका घर और रोज़गार बर्बाद होता है? किसके बच्चों का भविष्य खराब होता है? इसका एक ही उत्तर है– गरीब और दलित। इन दंगों से किसे फायदा होता है? किसके बच्चे इन दंगों से सुरक्षित रहते हैं? और किसका रोजगार पक्का होता जाता है? इनका एक उत्तर है– धर्मगुरु, राजनेता और धनिक वर्ग।

अब दूसरी तरफ से देखिये। धर्म के मेलों, जगरातों, पंडालों में और भंडारों में कौन सबसे अधिक जाता है? इसका उत्तर भी यही है– गरीब, दलित या किसी भी धर्म का पिछड़ा हिस्सा। क्या आपने ऐसे भंडारों, मेलों, यात्राओं में धनिकों, राजनेताओं, व्यापारियों और अधिकारियों के बच्चों को उस तरह भाग लेते देखा है जैसा वो गरीबों के बच्चों को सिखाते हैं? वो गलती से कभी-कभी ‘आशीर्वाद’ या ‘भाषण’ देने भर आते है। शेष समय में वो कहां होते हैं ये हम जानते हैं।

अब इन बातों का मतलब क्या है? सीधा मतलब यही निकलता है कि जो वर्ग चलताऊ किस्म के धार्मिक आयोजनों में सबसे ज़्यादा भागीदारी करता है, उसी के बच्चे दंगों में सबसे ज़्यादा मारे जाते हैं, उन्हीं का रोज़गार और भविष्य खराब होता है। इन्हीं बच्चों की भीड़ को आपस में झंडों और धर्म के नाम पर लड़ाया जाता है। आपका बच्चा अगर किसी तरह के भगवान, देवी, देवता या शास्त्र का बिना शर्त समर्थन करता है या उसके बारे में उत्तेजित होकर घूमता फिरता है तो तय मानिए कि उसने ना सिर्फ अपनी बुद्धि पर ताला लगा लिया है, बल्कि वह जल्दी ही किसी राजनीतिक या धार्मिक दंगों का चारा बनेगा।

हमें ये समझना चाहिए कि गरीब हिन्दुओं, मुसलमानों सहित सबसे अधिक दलितों को धर्म और आध्यात्म सिखाने का भयानक प्रयास क्यों हो रहा है। हर गली मोहल्ले में पोंगा पंडित, मुल्ला और तकरीर-बाज़ उतर गये हैं। अगर इन्हें अकेला छोड़ दें, अपने बच्चों को इन शातिर अपराधियों के चंगुल से बचा लें तो आप अपने परिवार सहित इस देश की सबसे बड़ी सेवा कर सकते हैं। इसके लिए किसी क्रान्ति की या झंडा लहराने की ज़रूरत नहीं है।

कुछ मित्रों के परिवारों में ये हमने करके देखा है। उनके छोटे-छोटे बच्चों को सिखाया है कि कोई ईश्वर, भगवान, देवी-देवता या भूत-प्रेत नहीं होता, ये सब बकवास है। सारे धर्म ग्रन्थ घर से निकाल बाहर किये। धर्मों और मिथकों पर आधारित सीरियल्स और कार्टून दिखाना बंद कर दिया। इनकी जगह डिस्कवरी चैनल, हिस्ट्री चैनल दिखाये। आस्था और संस्कार जैसे चैनल बंद कर दिए। उन्हें बताया कि सारे त्यौहार सिर्फ उत्सव मनाने के लिए हैं जो आप कभी भी मना सकते हैं। किसी ख़ास दिन का कोई ठेका नहीं है। जिन शास्त्रों की तारीफ की जाती है उनमे जो लिखा है उसका सरल भाषा में अर्थ समझा दीजिये, बच्चे हंसते हुए कहते हैं कि इन बातों में ऐसा क्या ख़ास है जिसके लिए इतना ढोल बजाये जाए? वो खुद उन शास्त्रों से बेहतर कहानियां और कवितायें लिखकर दिखाते हैं।

ये आप भी करके देखिये।

आपके बच्चों की मानसिकता में ज़मीन-आसमान का अंतर आ जाएगा। वो पहले से अधिक निडर, वैज्ञानिक और स्वतंत्र सोच वाले बन जाते हैं। वो अचानक बहुत नए किस्म के प्रश्न पूछने लगते हैं। वो विज्ञान और तकनीक समझने का प्रयास करते हैं। अचानक से बहुत सृजनात्मक हो जाते हैं। और जिन बच्चों को आप भक्ति भाव सिखाते हैं वो डरपोक, अतार्किक और भीड़ के भगत ही बने रहते हैं। उनमे से बहुत कम लोग सच में ही अपना जीवन अपनी सोच के साथ जी पाते हैं।

जिन बच्चों को धर्म की सड़ांध से निकाल लिया जाता है, वो विज्ञान, तकनीक और मशीनों सहित साहित्य, कविता और कहानी आदि में रूचि लेने लगते हैं। उनसे जुड़े प्रश्न पूछते हैं। वहीं धार्मिक बच्चे देवी-देवताओं और भूत-प्रेत से जुड़े सवाल पूछते हैं। वो हवाई जहाज कैसे उड़ता है ये नहीं पूछते, वो पूछते हैं कि कैसा मन्त्र पढ़ने से कोई देवता हवा में उड़ता है या कैसी प्रार्थना करने से भगवान प्रसन्न होकर पहाड़ उखाड़ने की ताकत दे देता है?

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