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मच्छरों ने लगाया दिल्ली पर ब्रेक, डेंगू और चिकनगुनिया के कारण वर्कफोर्स की भारी कमी

सिद्धार्थ भट्ट:

दिल्ली में डेंगू और चिकनगुनिया की समस्या गंभीर रूप लेती जा रही है। 31-अगस्त तक पूरे देश में डेंगू के 27879 और चिकनगुनिया के 12000 से भी अधिक मामले दर्ज किये जा चुके हैं, और डेंगू के कारण इस साल 60 मौतें हो चुकी हैं। पिछले साल 2015 में भी डेंगू के करीब 1 लाख मामले सामने आए थे और 200 से भी ज्यादा लोगों की मौत हो गयी थी। खासकर दिल्ली में इस बार ये समस्या काफ़ी बड़े पैमाने पर उभरकर सामने आई है। 2015 में जहाँ चिकनगुनिया के केवल 64 मामले दिल्ली में आधिकारिक रूप से दर्ज किए गए थे, वहीं इस साल अभी तक 560 मामले दर्ज किये जा चुके हैं।

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, इन बीमारियों ने बड़े पैमाने पर वर्कफोर्स को प्रभावित किया है। जिसके कारण पी.डब्लू.डी. की सड़क और फ्लाईओवर के निर्माण और मरम्मत की विभिन्न परियोजनाएं प्रभावित हुई हैं। पिछले महीने, पी.डब्लू.डी. के द्वारा काम पर रखे गए 140 श्रमिकों की संख्या घटकर लगभग आधी हो चुकी है। वहीं दिल्ली की विभिन्न औधोगिक इकाइयों में श्रमिकों की उपस्थिति में 20% की कमी आई है। पूर्वी दिल्ली में बीमारियों से प्रभावित सफाई कर्मचारियों की गैरहाज़िरी से सफाई पर गहरा असर पड़ा है। यहाँ ध्यान देने वाली बात है कि दिल्ली में श्रमिकों की कुल संख्या में प्रवासी श्रमिकों की बड़ी तादाद है।

ज़्यादातर श्रमिकों के जाने का कारण, दिल्ली के बाहर सस्ती स्वास्थ्य सेवाओं की तलाश और घर पर मिलने वाली देखभाल को बतााया जा रहा है। दिल्ली में डेंगू और चिकनगुनिया की समस्या से निपटने के लिए सभी अस्पतालों में विशेष वार्ड बनाए जा रहे हैं। इसी बीच नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ मलेरिया रिसर्च (एन.आइ.एम.आर.) की एक रिपोर्ट में इस बीमारियों पर नियंत्रण के लिए डोमेस्टिक ब्रीडिंग चेकर्स (डी.बी.सी.) के सर्वे को 8 महीनों की जगह पूरे वर्ष किए जाने की बात की गई है।

एन.आइ.एम.आर. ने पश्चिमी दिल्ली के डेंगू से सबसे ज्यादा प्रभावित 20 जगहों के 7 हज़ार घरों का एक सर्वे किया। जुलाई 2012 से मई 2014 के बीच किये गए इस सर्वे में सामने आया कि बीमारी के वेक्सिनेशन के साथ इसके वाहक (वेक्टर) की रोकथाम पर भी ख़ास ध्यान देने की ज़रूरत है। मच्छरों की रोकथाम के लिए उनकी लार्वा अवस्था में ही उन्हें रोका जाना ज़रूरी है। बारिश और नमी के उपयुक्त होने पर लार्वा से वयस्क मच्छर बनने में केवल एक हफ्ते का समय लगता है।  एन.आइ.एम.आर. के सर्वे से सामने आया है कि घरों के ऊपर पानी के टैंक और पानी जमा करने के अन्य बर्तन मच्छरों के पनपने की प्रमुख जगह हैं। जिनसे ये सीमेंट के वाटर-टैंक, कूलर और सॉलिड वेस्ट (ठोस कचरा) में फैलते हैं।

भारत में इस समस्या से निपटने के लिए मलेशिया, इंडोनेशिया और कोलंबिया जैसे देशों से सीख ली जा सकती है जहाँ सरकार, सामाजिक संस्थाओं और लोगों की भागीदारी से इन खतरनाक बीमारियों पर काबू करने के लिए उल्लेखनीय काम किया गया है। साथ ही श्रीलंका में मलेरिया के खिलाफ अपनाई गयी नीतियों से भी सबक लिया जा सकता। सितम्बर महीने में ही मालदीव के बाद श्रीलंका को, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लू.एच.ओ.) ने विश्व का दूसरा मलेरिया मुक्त देश घोषित किया है।

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