हाल ही में, शाम को टी.वी. पर एक डांस रियलिटी शो देखा, जहां पर एक बोलने और सुनने में अक्षम (Person With Hearing & Speech Impairment) के आते ही सब रोने लगे। ये देख कर जो सवाल मन में आया वो था ‘कोई मर गया है क्या जो ये सब रो रहे हैं?’
ये कहानी किसी टी.वी. शो की नहीं, आम ज़िन्दगी की है! हम लोगों को कभी डिसेबल्ड तो कभी डिफरेंटली एबल्ड तो कभी स्पेशली एबल्ड तो कभी दिव्यांग कहा जाता है। चलिए इसी बात को थोड़ा गहराई से देखते हैं। अगर हम लोग डिसेबल्ड हैं, तो क्या आप पूरी तरह एबल्ड हैं? अगर मैं आपको उसैन बोल्ट के साथ दौड़ लगाने को कहूं या स्टेफन हॉकिन्स या आइंस्टीन के साथ आपके आइ.क्यू. (IQ) की बराबरी करूं, तो क्या आप खुद को सक्षम (abled) समझ पायेंगे? बिल्कुल नहीं! और क्या हर इंसान की अपने आप में एक स्पेशल एबिलिटी या विशेष क्षमता नहीं होती? तो फिर किसी विशेष समूह को इस विशेष नाम से पुकारना ही क्यूं है?
हाल ही के नामकरण की बात करें तो कहूंगा कि खुद को ‘दिव्यांग’ पुकारे जाने से तो हम लोगों को इतना सक्षम महसूस होता है, जैसे पल में भगवान बना दिया गया हो। ऐसा लगता है मानो अभी तीसरा नेत्र खुल जायेगा या फिर भगवान विष्णु जैसे 8 हाथ निकल आएंगे! प्रधानमंत्री जी इस उपाधि के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया, मगर हम ऐसी कोई उपाधि नहीं चाहते। हम दिव्य नहीं आम हैं! हम जैसे हैं वैसे ही आप अपनाएं और समाज में मिलने के अवसर दें, इससे ज़्यादा हम नहीं चाहते।
हर इंसान की अपनी क्षमताएं और कमज़ोरियां हैं जिनकी दूसरे के साथ तुलना करना ही उस इंसान का अपमान है। जी हां, हम पर्सन विद डिसेबिलिटी हैं और ये पूरी तरह ‘नार्मल’ है। डिसेबिलिटी हमारा एक हिस्सा है, जो कि एक सच है और इसे अपनाने में हमें कोई तकलीफ़ या शर्म नहीं, तो आपको क्यूं? हां, कुछ काम करने में हमें थोड़ी कठनाई ज़रूर होती है और हम उसे अपने तरीके से सुलझा लेते हैं जैसे आप सब सुलझाते हैं। हमें मदद की ज़रूरत होगी, तो हम मांगने में सक्षम हैं!
मैं एक पर्सन विद डिसेबिलिटी हूं और ये एक सत्य है! मगर यह मेरी पहचान को कहीं से अलग नहीं करता। मैंने क्रिकेट, फुटबॉल, बैडमिंटन सब खेला है, 11 सालों से नाटक कर रहा हूं, कितने लोगों को शिक्षा और नाटक के क्षेत्र में ट्रेनिंग दे चुका हूं और दे रहा हूं और जहां भी रहा हूं वहां अपनी एक छोटी सी पहचान बना पाया हूं। इस पहचान के लिए मैं अपने साथियों का शुक्रगुज़ार हूं कि उन्होंने मुझे सम्मिलित होने के अवसर दिए क्यूंकि हममें से कई लोगों को ये अवसर ही नहीं मिल पाते।
इसलिए इस लेख के माध्यम से आप सब से एक अपील है, अगली बार जब आपको कोई पर्सन विद डिसेबिलिटी दिखे, तो उसे दया की नज़रों से ना देखें। ये वो आखिरी चीज़ भी नहीं जो वो चाहता है। वो कोई दिव्यांग या डिसेबल्ड या स्पेशली एबल्ड नहीं है बल्कि हम सब में से एक है, कृपया उसे वैसे ही देखें और जब उसे ज़रुरत हो, तभी मदद करें।
तुम हंसते हो मुझपे तो मेरी खुदी जाग उठती है, गर आंसू बहाओगे तो सच में बेबस कर दोगे।