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शुक्रिया दूरदर्शन बचपन के तमाम महानायकों के लिए

महाभूत चन्दन राय:

जब तक दूरदर्शन नहीं था रविवार हमारे लिए एक नीरस छुटकारे का दिन था, जिसमें स्कूल की झिकझिक तो नहीं थी पर बापू की खिटपिट ज़रूर थी। दूरदर्शन ने अपने आते ही रविवार के मतलब को बदल दिया। दूरदर्शन ने हमें रविवार को रोमियो होना सिखाया। हमने दूरदर्शन को देख-देख कभी राजकपूर की तरह प्यार किया कभी देवानन्द की तरह। हमने राजेश खन्ना के लिए आंसू बहाये तो ऋषिकपूर को गालियां दी। हमने धर्मेन्द्र को ईश्वर मान लिया और अमिताभ को उसका मुंशी।

हमने मिथुन की तरह टांग लचकाने की कोशिश की, कभी गोविंदा की तरह बाल बनाये, कभी रजनी की तरह सिगरेट उछाली। हम बिना मरे ही राजेन्द्र कुमार के साथ स्वर्ग चले गए। हमने दूरदर्शन की उंगली पकड़े राम के साथ चौदह वर्ष का वनवास काटा और मोगली के साथ बघीरा की पीठ पर बैठ चड्ढी पहनकर फूल खिलाये। हमने अर्जुन के अंतर्द्वन्द को कुरुक्षेत्र के मैदान में खड़े होकर जिया।

दूरदर्शन के साथ हमने मालगुड़ी के छोटे से कस्बे में “ता ना ना न ना” गुनगुनाना सीखा। दूरदर्शन ने हमें कभी द्वापर युग में पहुंचा दिया तो कभी त्रेता युग मे। दूरदर्शन के लिए हम कभी श्री 420 हुए, कभी व्योमकेश बख्शी, तो कभी लावारिस और जब बापू से दूरदर्शन से इस कदर प्रेम के लिए बेसुरे लहज़े में पिटे तो दूरदर्शन के सुर में चिल्लाये…”विशुम”।

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