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अगर भारतीय रिजर्व बैंक ने ब्याज़ दरें घटाई तो क्या होगा आम जनता पर इसका असर

मुकेश त्यागी:

आम जनता के लिए बुरी खबर सट्टाबाज़ारियों-मुनाफाखोरों के वास्ते अच्छी है! वैसे तो इस बात को बाढ़, सूखे, अकाल, आदि के सन्दर्भ में पहले से ही जाना जाता है, लेकिन अभी एक और सन्दर्भ में। 3 दिन पहले शेयर बाजार में अचानक तेजी आई, कारोबारी चैनलों पर भी ख़ुशी छाई, तो पता चला कि अमेरिका, यूरोप, पश्चिम एशिया समेत विश्व अर्थव्यवस्था के लड़खड़ाने की खबर है, रोजगार नहीं बढ रहे हैं! इसलिए अब ब्याज दरें नहीं बढ़ेंगी। ध्यान रहे कि यूरोप, जापान में ब्याज दरें पहले ही शून्य या ऋणात्मक हैं और अमेरिका में लगभग शून्य।

इन देशों के सेन्ट्रल बैंक वित्तीय पूंजीपतियों – बैंकों, हेज फंड्स, निवेश फंड्स, बड़े कॉरपोरेट्स, आदि को लगभग शून्य ब्याज दर पर बड़ी मात्रा में कोष उपलब्ध करा रहे हैं जिससे शेयर, प्रोपर्टी, आदि बाजार किसी तरह टिका रहे। लेकिन इस धन का एक हिस्सा भारत में आने की उम्मीद है जो यहाँ के शेयर तथा प्रोपर्टी बाजार में लगने की उम्मीद है, इससे सट्टा बाजारी खुश हैं।

लेकिन इसका भारत और इन देशों के आम लोगों पर क्या असर होने वाला है?

1. पहले ही निर्यात में कमजोरी है जिससे निर्यात आधारित उद्योग मंदी की चपेट में हैं। निर्यात बाजारों में अर्थव्यवस्था के लड़खड़ाने से यह हालात जारी रहेंगे और नए रोजगार के सपनों को भूल ही जाइये। मोदी जी के 2 करोड़ रोज़गार का वादा सपना ही रहेगा।

2. इन सब देशों में मध्य और निम्न मध्य वर्ग के जो लोग बचत कर रिटायरमेंट की आमदनी के लिए पैसा इकठ्ठा करते हैं, महंगाई से कम या शून्य ब्याज दरों से उनकी हालत और ख़राब होगी। भारत में भी अगर रिजर्व बैंक ब्याज दरें घटाएगा तो इस वर्ग के बचतकर्ताओं को नुकसान होगा हालाँकि निवेश के लिए कर्ज लेने वाले धनी लोग फायदे में रहेंगे।

3. लगता है कि अमेरिका, यूरोप, चीन, दुबई, आदि के बाद अगला बुलबुला अब भारत में फुलाने की तैयारी है; बड़े बैंकों का निर्माण (बैंकों का विलय चल रहा है), कम ब्याज दरें, आदि इसके जरुरी तत्व हैं। लेकिन बुलबुला फूलने के बाद फूटता जरूर है और फूटने से पड़ने वाली चोट हमेशा आम लोगों को ही झेलनी पड़ती है – बेरोजगारी, महंगाई, संपत्ति से बेदखली, बढ़े टैक्स के रूप में। शेयर बाजार और कॉमर्शियल प्रोपर्टी में इस बुलबुले को फुलाने की कोशिशें दिखाई पड़ रही हैं।

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