राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने हाल ही में शिक्षक दिवस के मौके पर देश में शिक्षा के स्तर में सुधार की ज़रूरत की बात कही। लेकिन अगर शिक्षा के रूप और प्राईमरी स्कूलिंग की बात करें तो देश ने लगातार बहुत बदलाव देखे हैं, और इन्हीं लगातार हो रही बदलाव में भारी होता गया स्कूल जाने वाले बच्चों का स्कूल बैग।
स्कूल बैग्स का लगातार बढ़ता वजन, बच्चों के लिए कितनी बड़ी मुसीबत है ये एसोचैम की ताज़ा शोध के नतीजों से पता चलता है। सवेर्क्षण के मुताबिक लगातार भारी हो रहे स्कूल बैग से 7 से 13 साल के 68 फ़ीसदी बच्चे गंभीर रूप से पीठ दर्द और पीठ संबंधित अन्य गंभीर बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। 13 साल से कम के बच्चों में पीठ में हल्की दर्द की शिकायत लगातार बढ़ती जा रही है, जो बाद में स्पॉन्डलाइटिस, स्लिप डिस्क जैसी गंभीर सम्स्याओं में बदल जाती है।
रिपोर्ट पढ़ने के बाद Youth Ki Awaaz ने स्कूल जाने वाले बच्चों, अभिभावकों और स्कूल शिक्षकों से भी इस बारे में बात की
विशाल, स्टूडेंट, क्लास-7, दिल्ली, उम्र- 12 साल
‘बहुत ज़्यादा वेट (वजन) हो जाता है बैग का, हर दिन सभी सब्जेक्ट्स के बुक्स और कॉपी ले जाना ज़रूरी है,
शोल्डर और कमर में बहुत दर्द होता है, लेकिन हर दिन सारे सब्जेक्ट्स ले जाना स्कूल का रूल है।’
निर्भय झा, (विशाल के पिता)
‘अक्सर विशाल और गौरव (बड़ा बेटा, क्लास 9), कंधे और पीठ में दर्द की शिकायत करते हैं, कई बार तो स्कूल से आकर इतना थक जाते हैं कि बिना यूनिफॉर्म उतारे और बिना खाना खाए सो जाते हैं। दोनो पैदल ही स्कूल जाते और आते हैं, कई बार घर आने के बाद थके होने के कारण अपनी पढ़ाई नहीं कर पाते।’
प्रार्थना कपूर, स्टूडेंट, क्लास 8, दिल्ली, उम्र- 13 साल
टाईम टेबल होने के बाद भी असाइनमेंट बुकलेट इतनी ज़्यादा भारी होती है कि बस स्टॉप तक जाना में भी प्रॉब्लेम होती है। दो-तीन असाइनमेंट बुकलेट के साथ साथ, म्यूज़िक क्लास के लिए जब गीटार या कोई और इंस्ट्रूमेंट ले जाना होता है तो बहुत मुसीबत होती है।
प्रेरणा कपूर, (प्रार्थना की बड़ी बहन)
बैग्स लगातार भारी होते जा रहे हैं, ऐसा दो बार हुआ है जब प्रार्थना स्कूल जाते हुए बैग की वजन से पीछे की तरफ गिर गई।
डॉ. अजय कुमार, हिंदी शिक्षक, डी.ए.वी पब्लिक स्कूल, फुलवारी, पटना
भारी होते बैग्स में पब्लिक स्कूल कल्चर बहुत बड़ा कारण है, पैरेंट्स भी चाहते हैं कि छोटी उम्र से ही बच्चे सबकुछ सीख जाएं। क्लास 1 या क्लास 2 के बच्चों को जो चीज़ें प्रैक्टिकली सिखाई जा सकती हैं उसके लिए भी उन्हें अभी से किताबें दी जाती हैं। जैसे अगर बहुत छोटा बच्चा म्यूज़िक या डांस क्लास में जाता है तो उसे म्यूज़िक और डांस की 2 किताबें और 3 कॉपियां देने की क्या ज़रूरत है? प्रैक्टिकल लर्निंग पर ज़्यादा ध्यान देना होगा।
साक्षी भाटिया, प्राईमरी टीचर,पंडित दीन दयाल उपाध्याय स्कूल, पुणे
स्कूल में टाईम टेबल सही से छोटे बच्चों तक पहुंच नहीं पाती और बच्चे सभी सब्जेक्ट्स लेकर स्कूल जाते हैं। हमने अपने स्कूल में पिछले साल इसको ले के कुछ कदम उठाए हैं जो बहुत कारगर हैं और हर जगह इस्तेमाल में लाए जा सकते हैं। छोटे बच्चों के लिए एक दिन में एक सब्जेक्ट पर फोकस करना, होमवर्क और क्लासवर्क की अलग-अलग कॉपी के बदले एक ही कॉपी, वर्कशीट बेस्ड क्लास, क्लासरूम टीचिंग पर हो फोकस ताकी होमवर्क के अलग कॉपियों और नोटबुक से बचा जा सके, छोटे बच्चों के सारी किताब और कॉपियां स्कूल में ही रखने की हो व्यव्स्था।
कानून में नियम –
स्कूल बैग अधिनियम 2006 के मुताबिक बैग का वजन बच्चे के वजन के 10 प्रतिशत से ज़्यादा नहीं हो सकता। इससे पहले साल 2015 में भी महाराष्ट्र सरकार के एक पैनल ने भी स्कूल बैग्स से होने वाले नुकसान और इससे बचने के लिए उपाय बताए थे।
किताब-कॉपियों के अलावा क्रिकेट किट, म्यूज़िक इंस्ट्रूमेंट्स, स्विम बैग्स आदि के वजह से बढ़ते भार से भी छोटे बच्चों की मुश्किलें बढ़ रही है।